लाभ
अनेक व्यक्तियों ने निजी लाभ के लिए झूठ बोला है। वास्तव में, अधिकतर झूठों के पीछे खुद को मिलने वाला लाभ होता है। अपनी पहचान के बारे में झूठ बोलने से यीशु को क्या लाभ हो सकता था? सबसे स्पष्ट उत्तर सत्ता होगा। यदि लोग मानते थे कि वे ईश्वर थे, तो उनके पास अथाह शक्ति होती। (इसीलिए सीज़र जैसे अनेक प्राचीन नेताओं ने दिव्य उद्गम का दावा किया।)
इस व्याख्या के पीछे एक बाधा है कि यीशु ने स्वयं को आसीन सत्ता की दिशा में ले जाने वाले सारे प्रयासों को नकारा, और ऐसी शक्तियों का दुरुपयोग करने वाले तथा उनके लिए अपना जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्तियों को दंडित किया। उन्होंने बगैर सामर्थ्य वाले परित्यक्त लोगों (वेश्याएँ तथा कुष्ठरोगियों) तक पहुँचने का भी प्रयास किया, और नगण्य प्रभाव वाले लोगों का एक समूह बनाया। एक तरह से इसे विचित्र ही कहा जा सकता है, वह सब, जो यीशु ने किया और कहा, सत्ता के विपरीत दिशा में ही गए।
ऐसा प्रतीत होता है कि यदि सत्ता ही यीशु की प्रेरणा थी, तो उन्होंने हर हाल में सूली चढ़ना टालने का प्रयास किया होता। तथापि, अनेक अवसरों पर उन्होंने अपने अनुयायियों को कहा कि सूली उनकी नियति एवं लक्ष्य है। रोमन सूली पर चढ़ने से किसी को शक्ति कैसे प्राप्त होती?
निस्संदेह, मृत्यु हर चीज़ को उचित केंद्र में ले आती है। और हालाँकि अनेक शहीदों ने अपने ध्येय के लिए प्राण त्यागे, शायद ही कोई किसी ज्ञात झूठ के लिए मरने को इच्छुक हो। निश्चित रूप से यीशु के निजी लाभ की सारी आशाएँ सूली के साथ ही समाप्त हो जातीं। फिर भी, उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक पिता परमेश्वर के अनन्य पुत्र होने का दावा नहीं त्यागा। न्यू टेस्टामेंट विद्वान, जे. आई. पैकर बताते हैं कि यह पदवी यीशु के निजी देवत्व की ओर दृढ़तापूर्वक संकेत करती है।[22]