क्या विज्ञान और ईसाई धर्म सुसंगत हैं?
ऑक्सफोर्ड से नास्तिक रिचर्ड डॉकिंस और प्रसिद्ध आनुवांशिकी विज्ञानी फ्रांसिस कोलिंस ने टाइम पत्रिका के प्रदर्शित लेख में ईश्वर बनाम विज्ञान विषय पर वाद-विवाद किया।[1] मुद्दा यह था कि क्या विज्ञान और ईश्वर में आस्था सुसंगत है।
द गॉड डेल्युज़न के लेखक, डॉकिंस यह तर्क देते हैं कि विज्ञान की नई खोजों के कारण ईश्वर में आस्था अप्रासंगिक हो रही है। मानव आनुवांशिक ब्लूप्रिंट बनाने में 2400 वैज्ञानिकों का नेतृत्व करने वाले एक ईसाई, कोलिंस, इसे दूसरी तरह से देखते हैं और यह बताते हैं कि ईश्वर और विज्ञान दोनों में विश्वास करना पूर्ण रूप से तर्कसंगत है।
हालाँकि बाइबिल स्पष्ट रूप से बताती है कि ईश्वर ने ब्रह्मांड का निर्माण किया परंतु यह इस बारे में कुछ भी नहीं बताती कि उसने यह कैसे किया। तथापि ईश्वर के न्यायसंगत और व्यक्तिगत होने के इसके संदेश ने कोपेरनिकस, गैलीलियो, न्यूटन, पास्कल और फैराडे जैसे वैज्ञानिकों को गहराई से प्रभावित किया। उन्हें यह विश्वास था कि संसार की रचना ज्ञानवान ईश्वर द्वारा की गई है जिसके द्वारा उनमें वैज्ञानिक अवलोकन और प्रयोग में आत्मविश्वास पैदा हुआ।
ईसाइयों के समान ये वैज्ञानिक सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञाता रचयिता को मानते थे जो यद्यपि प्राकृतिक नियमों से बंधा नहीं था तब भी ब्रह्मांड में इनका इस्तेमाल करने का निर्णय लिया। ये उत्कृष्ट पुरुष और महिलाएं हमारे आस-पास की दुनिया को ईश्वर की रचना मानते थे, उससे मंत्रमुग्ध थे और उसके पीछे के रहस्यों का पता लगाने का प्रयास करते थे।
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