क्या यीशु स्वयं को ही धोखा दे रहे थे?
अल्बर्ट स्वाइत्ज़र, जिन्हें 1952 में मानवीय प्रयासों के कारण नोबल पुरस्कार मिला था, के यीशु के बारे में अपने ही विचार थे। स्वाइत्ज़र इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि यीशु के भगवान होने के दावे के पीछे पागलपन था। दूसरे शब्दों में, यीशु अपने दावों के बारे में गलत थे, परंतु उन्होंने जानबूझ कर झूठ नहीं बोला। इस सिद्धांत के अनुसार, यीशु को इस बात का भ्रम हो गया था कि वे मसीहा हैं।
लुईस ने इस विकल्प पर ध्यानपूर्वक विचार किया। उन्होंने इसका यह मतलब निकाला कि यदि यीशु के दावे सही नहीं थे, तो उन्हें विक्षिप्त होना चाहिए था। लुईस तर्क देते हैं कि ईश्वर होने का दावा करने वाला व्यक्ति एक महान नैतिक गुरु नहीं हो सकता। “वह एक पागल हो सकता है—उस व्यक्ति के स्तर का जो यह कहता हो कि वह एक पकाया गया अंडा है—या फिर वह नर्क का शैतान होगा।”[24]
यीशु के जीवन और उपदेशों का अध्ययन करने वाले अधिकतर व्यक्ति मानते हैं कि वे अत्यंत विवेकशील थे। यद्यपि फ़्रांसीसी दार्शनिक जौं-ज़ाक़ रूसो (1712–78) के स्वयं का जीवन अनैतिकता और निजी संशयवाद से परिपूर्ण था, उन्होंने यह कहते हुए यीशु के श्रेष्ठ चरित्र और प्रत्युत्पन्नमतित्व को माना, “जब प्लेटो ने अपने काल्पनिक न्याय परायण मनुष्य का वर्णन किया…उसने बिल्कुल यीशु के चरित्र का ही वर्णन किया। …यदि सुकरात का जीवन एवं मृत्यु किसी दार्शनिक का जीवन एवं मृत्यु है, तो यीशु का जीवन एवं मृत्यु किसी ईश्वर का जीवन एवं मृत्यु है।”[25]
बोनो निष्कर्ष निकालते हैं कि यीशु को “पागल” करार देना बिल्कुल अंतिम विकल्प होता।
“तो आपके पास जो शेष रह जाता है कि या तो यीशु वही थे जिसका वे दावा करते थे—या पूरे पागल थे। मेरा मतलब है कि हम लोग चार्ल्स मैन्सन के स्तर के पागलपन की बात कर रहे हैं…. मैं यहाँ मज़ाक नहीं कर रहा। यह विचार कि आधी दुनिया के लिए उनकी सभ्यता की दिशा का भविष्य एक पागल के कारण परिवर्तित और ठीक उलट सकता है, मेरे लिए यह अवास्तविक है….”[26]
तो, क्या यीशु एक झूठे या पागल थे, या वे पिता परमेश्वर की संतान थे? क्या यीशु के बारे में उनके देवत्व को नकारने के साथ-साथ “केवल एक अच्छे नैतिक गुरु” का लेबल लगा कर जैफ़रसन सही थे? दिलचस्प रूप से, यीशु को सुनने वाली श्रोताओं—अनुयायी और विरोधी दोनों—ने कभी भी उन्हें महज एक नैतिक गुरु नहीं माना। यीशु ने स्वयं से मिलने वाले व्यक्तियों पर तीन प्रमुख प्रभाव छोड़े: द्वेष, आतंक या श्रद्धा।
ईसा मसीह के दावे हमें निर्णय लेने के लिए मजबूर करते हैं। जैसा लुईस ने कहा, हम यीशु को महज एक महान धार्मिक नेता या महान नैतिक गुरु की श्रेणी में नहीं डाल सकते। यह पूर्व संशयवादी हमें यह कहते हुए यीशु के बारे में अपना मत निर्धारित करने की चुनौती देते हैं कि,
“आपको अपना चुनाव करना पड़ेगा। या तो यह व्यक्ति पिता परमेश्वर की संतान था, और है: या कोई पागल व्यक्ति या कुछ और खराब चीज़। आप उसे मूर्ख कह कर चुप कर सकते हैं, आप उस पर थूक सकते हैं और उन्हें शैतान की तरह मार सकते हैं या उनके चरणों में गिर कर उन्हें भगवान और ईश्वर पुकार सकते हैं। परंतु हमें उनके बारे में एक महान मानवीय गुरु वाली निरर्थक अवधारणा नहीं बनानी चाहिए। उन्होंने हमें इस बारे में उन्मुक्त नहीं छोड़ा है। उनका ऐसा कोई इरादा नहीं था।”[27]
मियर क्रिश्चियानिटी में, लुईस यीशु की पहचान से संबंधित विकल्पों पर विचार करते हैं, और इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वे बिल्कुल वही थे, जिसका वे दावा करते थे। इस महान प्रतिभाशाली साहित्यिक व्यक्ति की यीशु के जीवन और उपदेशों की ध्यानपूर्वक पड़ताल ने उनकी अपनी नास्तिकता त्यागने और प्रतिबद्ध ईसाई बनने को प्रेरित किया।
मानव इतिहास का सबसे बड़ा प्रश्न “असली ईसा मसीह कौन है?” है। बोनो, लुईस और अनेकों ने इस बात को माना कि ईश्वर मानव के रूप में इस धरती पर आए। परंतु यदि यह सत्य है, तो हम उन्हें आज जीवित होने आशा करेंगे। और उनके अनुयायी बिल्कुल यही मानते हैं।
क्या यीशु वास्तव में मृत्यु से वापस लौट आए थे?
ईसा मसीह के प्रत्यक्षदर्शी वास्तव में इस प्रकार बोलते और कार्य करते थे, जैसे कि उन्हें विश्वास था कि यीशु सूली चढ़ाए जाने के बाद वास्तव में मृत्यु से वापस लौट आए। यदि वे गलत थे, तो ईसाई धर्म एक झूठ की नींव पर बनी है। परंतु अगर वे सही थे, तो ऐसा चमत्कार उन सब बातों को सिद्ध करेगा जो उन्होंने परमेश्वर, स्वयं, और हमलोगों के बारे में कहा था।
परंतु, क्या हमें ईसा मसीह के पुनरुत्थान को केवल आस्था के रूप में मानना चाहिए, या इसका कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण भी है? अनेक संशयवादी व्यक्तियों ने पुनरुत्थान की बातों को गलत साबित करने के लिए ऐतिहासिक रिकॉर्ड की पड़ताल आरंभ कर दी। उन्होंने क्या पता लगाया?
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क्या यीशु ने बताया कि मृत्यु के बाद क्या होता है?
यदि यीशु सचमुच मृत्यु से वापस लौट आए थे, तो उन्हें पता होना चाहिए कि दूसरी तरफ क्या है। यीशु ने जीवन का अर्थ और हमारे भविष्य के बारे में क्या बताया? क्या परमेश्वर तक पहुँचने के अनेक मार्ग हैं या यीशु ने केवल एक मार्ग के बारे में बताया था? चौंका देने वाले उत्तरों के लिए “यीशु क्यों?” पढ़ें।
क्या यीशु जीवन को एक उद्देश्य प्रदान कर सकते हैं?
क्या यीशु जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं: “मैं कौन हूँ?” “मैं यहाँ क्यों हूँ?” और, “मैं कहाँ जाने वाला हूँ?” यीशु ने जीवन और धरती पर हमारे उद्देश्य के बारे में कुछ दावे किए, जिनकी जाँच उन्हें अस्नेही या अशक्त बताने से पहले करने की जरूरत है। यह आलेख, “यीशु क्यों,” यीशु के धरती पर आगमन का रहस्य, और हम लोगों के लिए इसके अर्थ की पड़ताल करता है।
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