क्या यीशु मृत्यु के बाद फिर से जीवित हो उठे थे?
हम सब इस बात पर विचार करते हैं कि हमारी मृत्यु के बाद हमारा क्या होगा। जब हमारे किसी प्रिय का निधन होता है, तो हम अपनी बारी आने पर उससे फिर से मिलने की इच्छा करते हैं। क्या हमारा अपने प्रिय लोगों के साथ आनंदमय पुनर्मिलन हो पाएगा या मृत्यु हमारी सारी चेतनाओं का अंत है?
यीशु ने सिखाया कि हमारे शरीर की मृत्यु के बाद जीवन समाप्त नहीं हो जाता । उन्होंने यह चौंकाने वाला दावा किया: “मैं पुनरुत्थान और जीवन हूँ। मुझ पर विश्वास करने वाले दोबारा जीवित हो उठेंगे, बावजूद इसके कि वे भी दूसरों की तरह कालग्रस्त होते हैं।” उनके निकटतम चश्मदीदों के अनुसार, फिर यीशु ने सूली चढ़ाए जाने और दफ़नाए जाने के तीन दिन बाद, फिर से जीवित होकर मृत्यु के ऊपर शक्ति का प्रदर्शन किया। इसी विश्वास ने लगभग 2000 वर्षों से ईसाईयों को आशा प्रदान की है।
लेकिन कुछ लोगों को मृत्यु पश्चात् जीवन हेतु कोई भरोसा नहीं है। नास्तिक दार्शनिक, बर्टराण्ड रसेल ने लिखा है, “मेरा मानना है कि मैं अपनी मृत्यु के बाद सड़-गल जाऊँगा और मेरा ज़रा भी दंभ नहीं बचेगा।”[1] स्पष्ट रूप से रसेल को यीशु के शब्दों में विश्वास नहीं है।
यीशु के अनुयायियों ने लिखा कि वे सूली पर चढ़ने और दफ़नाए जाने के बाद फिर से जीवित प्रकट हुए। उन लोगों ने न केवल उन्हें देखने बल्कि उनके साथ भोजन करने, उन्हें छूने और उनके साथ 40 दिन बिताने का दावा भी किया।
तो क्या यह केवल एक कहानी है जो समय के साथ बढ़ती चली गई, या यह किसी ठोस प्रमाण पर आधारित है? इस प्रश्न का उत्तर ईसाई धर्म के लिए बुनियादी है। क्योंकि यदि यीशु सचमुच मृत्यु से लौट आए थे, तो यह उनके द्वारा स्वयं अपने बारे में, जीवन का अर्थ और मृत्यु पश्चात् हमारी नियति के बारे में कही गई सभी बातों का सत्यापन कर देगा।
यदि यीशु मृत्यु से वापस लौट आए थे तो केवल वे ही इस बात उत्तर दे सकते हैं कि जीवन का क्या उद्देश्य है और मृत्यु के बाद हमारा किस चीज़ से सामना होगा। दूसरे शब्दों में, यदि यीशु के पुनरुत्थान संबंधी वृत्तांत सही नहीं है, फिर तो ईसाई धर्म का आधार असत्य पर टिका होगा। धर्मशास्त्री आर. सी. एस्प्रौल इसे निम्न प्रकार से व्यक्त करते हैं:
“पुनरुत्थान का दावा ईसाई धर्म के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यदि यीशु को उनकी मृत्यु के बाद परमेश्वर द्वारा वापस भेजा गया, तो फिर उनके पास वह प्रमाण-पत्र एवं प्रमाणन होगा जो किसी भी अन्य धार्मिक नेता के पास नहीं है। बुद्ध मृत हैं। मोहम्मद मृत हैं। मूसा मृत हैं। कन्फ्यूशियस मृत हैं। लेकिन, ईसाई धर्म के…अनुसार, यीशु जीवित हैं।”[2]
अनेक संशयवादी व्यक्तियों ने पुनरुत्थान का खंडन करने का प्रयास किया है। जॉश मैकडोवेल ऐसे ही एक संशयवादी थे, जिन्होंने पुनरुत्थान के प्रमाण पर शोध करने के लिए सात सौ घंटों से ज्यादा समय व्यतीत किए। मैकडोवेल ने पुनरुत्थान की महत्ता के बारे में निम्न बात कही:
“मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि ईसा मसीह का पुनरुत्थान मनुष्यों के मस्तिष्क पर थोपे गए सबसे दुष्ट, अनैतिक, निर्दयी छल में से एक है, या यह इतिहास का सर्वाधिक शानदार तथ्य है।”[3]
तो, क्या यीशु का पुनरुत्थान एक शानदार तथ्य या दुष्ट मिथक है? इसका पता लगाने के लिए, हमें इतिहास के प्रमाणों पर नजर डालना होगा और स्वयं अपना निष्कर्ष निकालना होगा। आइए देखें कि पुनरुत्थान की जाँच-पड़ताल करने वाले संशयवादियों ने स्वयं क्या पता लगाया।
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