क्या धर्मदूत यीशु को परमेश्वर मानते थे
नाज़ारेथ के यीशु ने गलिली नामक छोटे से गाँव में एक अघोषित बढ़ई के रूप में कार्य करते हुए अपने पहले तीस साल अपेक्षाकृत गुमनामी में बिताए। लेकिन अगले तीन वर्षों में उन्होंने ऐसे बोल बोले जिसने हर सुनने वाले को अचंभित किया, ऐसे बोल जिसने अंततः हमारी दुनिया को बदल दिया। उन्होंने ऐसे कारनामे भी किए जिसे पहले किसी भी व्यक्ति ने नहीं किया था, जैसे तूफान को शांत करना, बीमारियों का इलाज करना, आंखों की रोशनी बहाल करना, और यहां तक की मृत व्यक्ति को जीवित कर देना।
लेकिन ईसा मसीह और अन्य सभी धार्मिक अगुआओं में बुनियादी फर्क यह है कि उन्होंने ईसाईयों के अनुसार, परमेश्वर होने का दावा किया (“क्या यीशु ने परमेश्वर होने का दावा किया?” देखें)। यदि उनका यह दावा गलत है, तो ईसा चरित का संदेश अपनी पूरी विश्वसनीयता खो देता है। वह संदेश यह है कि ईश्वर हम लोगों से इतना प्रेम करते थे कि वे हमारे पापों के लिए प्राण त्यागने हेतु और हमें अपने साथ अनंत जीवन प्रदान करने हेतु मनुष्य बने। इस तरह, यदि यीशु परमेश्वर नहीं थे, तो हम सबसे झूठ बोला गया है।
कुछ धर्म बताते हैं कि यीशु एक मनुष्य थे। और डा विंची कोड जैसी पुस्तकें यह बता कर सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में शुमार हो गईं कि न तो यीशु और न ही धर्मदूतों ने कभी कहा कि वे परमेश्वर हैं (“मोना लिसा की कृत्रिम मुस्कराहट” देखें)।
यीशु के देवत्व पर ये हमले, यह सवाल उठाते हैं कि लगभग 2000 वर्ष पहले ऐसा क्या हुआ जिसके कारण ईसाई धर्म यह दावा करता है कि इसके संस्थापक, ईसा मसीह, वास्तव में परमेश्वर थे। “क्या यीशु ने परमेश्वर होने का दावा किया” में हम पाते हैं कि नवविधान के प्रमाण इस तथ्य की ओर दृढ़ता से इशारा करते हैं कि यीशु ने परमेश्वर होने का दावा किया था। लेकिन क्या यीशु की बातों को सुनने वाले और उनके चमत्कारों को देखने वाले प्रत्यक्षदर्शी इस बात से आश्वस्त थे कि वे हर मायने में अपने परम पिता के समान हैं? या वे यह सोचते थे कि यीशु महज़ एक महान व्यक्ति थे या मूसा की तरह एक महान पैगम्बर थे?
कल्पना को वास्तविकता से अलग करने के लिए, हमें यीशु के समय के धर्मदूतों के शब्दों पर वापस जाना पड़ेगा जिन्होंने देखी और सुनी बातों की गवाही लिखी।
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