महान धार्मिक नेता?
हैरानी की बात यह है कि यीशु ने कभी धार्मिक नेता होने का दावा नहीं किया। उन्होंने कभी धार्मिक राजनीति में हिस्सा नहीं लिया, या किसी महत्वाकांक्षी कार्य को आगे नहीं बढ़ाया, और वे लगभग पूरी तरह से स्थापित धार्मिक तंत्र के बाहर से सेवा करते रहे।
जब यीशु की तुलना अन्य महान धार्मिक नेताओं से की जाती है, तो कुछ विशिष्ट अंतर उभर कर आते हैं। रवि ज़कारिया, जो हिन्दू संस्कृति में पले-बढ़े, ने विश्व के धर्मों का अध्ययन किया है तथा ईसा मसीह और अन्य धर्मों के संस्थापकों के बीच एक बुनियादी अंतर पाया।
“इन सबमें एक निर्देश, जीवन जीने का तरीका उभर कर सामने आता हैI आप ज़रथुश्त्र नहीं बन जाते; आप ज़रथुश्त्र की बात सुनते हैं। यह बुद्ध नहीं जो आपको ज्ञान देते हैं; यह उनके महान सत्य हैं, जो आपको निर्देश देते हैं। यह मोहम्मद नहीं जो आपको रूपांतरित करते हैं; यह कुरान की खूबसूरती है जो आपको लुभाती है। इसके विपरीत, यीशु कोई शिक्षा नहीं देते या अपने संदेश की व्याख्या नहीं करते। वे अपने संदेश के समरूप हैं।”[5]
जकारिया की बातों की सच्चाई ईसा चरित में यीशु के संदेश केवल “मुझ तक आओ” या “मेरा अनुसरण करो” या “मेरी आज्ञा का पालन करो” की पुनरावृत्ति से रेखांकित होती है। साथ ही, यीशु ने यह स्पष्ट किया था कि उनका प्रमुख उद्देश्य पापों को क्षमा करना है, जो केवल ईश्वर ही कर सकते हैं।
दुनिया के महान धर्मों में, ह्यूस्टन स्मिथ ने पाया, “केवल दो ही व्यक्तियों ने अपने समकालीनों को इतना चकित किया कि उनके बारे में पूछा जाने वाला प्रश्न ‘वह कौन है?’ नहीं होता था कि बल्कि ‘वह क्या है?’ होता था। वे यीशु और बुद्ध थे। उनके द्वारा दिए उत्तर एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत थे। बुद्ध ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे मानव मात्र हैं, न कि देवता—बिल्कुल ऐसे कि उन्हें यह पूर्वानुमान हो गया था कि भविष्य में उन्हें पूजने का प्रयास किया जाएगा। दूसरी तरफ, यीशु ने दावा किया कि …वे ईश्वरीय हैं।”[6]
और यह हमें इस प्रश्न की ओर ले जाता है कि यीशु ने स्वयं अपने बारे में किस चीज़ का दावा किया था; विशेष रूप से, क्या यीशु ने दिव्य होने का दावा किया था?