वास्तविक यीशु कौन हैं?

यीशु के बारे में सत्य की खोज

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निंदक एवं संशयवादी

लेकिन कोई भी व्यक्ति प्रमाण की निष्पक्ष रूप से पड़ताल करने को इच्छुक नहीं है। बर्टराण्ड रसेल मानते हैं कि यीशु के बारे में उनका विचार ऐतिहासिक तथ्यों से “संबंधित नहीं” था।[4] इतिहासकार जोसेफ कैम्पबेल ने, बगैर किसी प्रमाण का हवाला दिए, टेलीविज़न के अपने श्रोताओं को शांतिपूर्वक बताया कि यीशु का पुनरुत्थान कोई वास्तविक घटना नहीं है।[5] अन्य विद्वान, जैसे कि जीसस सेमीनार के डॉमिनिक क्रॉसन उनसे सहमत हैं।[6] इनमें से कोई भी संशयवादी व्यक्ति अपने विचारों के लिए कोई प्रमाण नहीं देते हैं।

असली संशयवादी, निंदकों के विपरीत, प्रमाण में रुचि रखते हैं। एक संशयवादी पत्रिका में “संशयवादी क्या है?” शीर्षक वाली संपादकीय में निम्नलिखित परिभाषा दी गई है: “संशयवाद… किसी या सभी विचारों पर तर्क का उपयोग है—किसी भी अकारण मानित चीज़ की अनुमति नहीं है। दूसरे शब्दों में… संशयवादी व्यक्ति इस संभावना को समाप्त करते हुए जाँच पड़ताल नहीं करते कि घटना वास्तविक हो सकती है या कोई दावा सच हो सकता है। जब हम कहते हैं कि हम “संशयी” हैं, हमारा तात्पर्य यह होता है कि विश्वास करने के पूर्व हमें अकाट्य प्रमाण देखने चाहिए।”[7]

रसेल और क्रॉसन के विपरीत, कई सच्चे संशयवादी व्यक्तियों ने यीशु के पुनरुत्थान से संबंधित प्रमाण की जाँच की है। इस आलेख हम ऐसे ही कुछ व्यक्तियों की बात सुनेंगे और देखेंगे कि मानव जाति के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न के प्रमाण का किस प्रकार विश्लेषण किया: क्या यीशु वाकई मृत्यु के बाद फिर से जीवित हो उठे थे?

आत्म भविष्यवाणी

अपनी मृत्यु के पहले ही, यीशु ने अपने अनुयायियों को बताया कि उनके साथ विश्वासघात होगा, उन्हें गिरफ़्तार किया जाएगा और सूली पर चढ़ा दिया जाएगा, और वे तीन दिनों के पश्चात् पुनः जीवित हो उठेंगे। यह एक असाधारण योजना है! इसके पीछे क्या था? यीशु कोई मनोरंजन करने वाले व्यक्ति नहीं थे, जो दूसरों की मांग पर प्रदर्शन करते थे; बल्कि, उन्होंने यह विश्वास दिलाया कि उनकी मृत्यु और पुनरुत्थान लोगों को यह साबित कर देगा कि (यदि उनके मस्तिष्क और हृदय मुक्त हो) वे वाकई मसीहा थे।

बाइबिल विद्वान विल्बर स्मिथ ने यीशु के बारे में कहा:

“जब उन्होंने कहा कि वे सूली पर चढ़ाए जाने के तीन दिन बाद, स्वयं पुनः जीवित हो जाएँगे, तो उन्होंने जो कहा उसका साहस केवल कोई मूर्ख ही कर सकता था, जब वह अपने अनुयायियों से दीर्घ निष्ठा की अपेक्षा रखता हो—बशर्ते वह आश्वस्त हो कि वह सचमुच पुनः जीवित होने जा रहा है। मनुष्य को ज्ञात किसी भी धर्म के किसी भी संस्थापक ने ऐसी कोई बात कहने का साहस नहीं जुटा पाया।”[8]

दूसरे शब्दों में, चूँकि यीशु ने अपने अनुयायियों को स्पष्ट रूप से कहा था कि वे अपनी मृत्यु के बाद पुनः जीवित हो उठेंगे, ऐसे में वचन के पालन में असफलता उन्हें ढोंगी साबित कर देती। परंतु हम स्वयं से आगे बढ़ रहे हैं। पुनरुत्थान के पूर्व यीशु की मृत्यु (यदि हुई तो) किस प्रकार हुई?

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