क्या अनुयायी मतिभ्रमित हो गए थे
लोग अभी भी समझते हैं कि उन्होंने एक मोटे, सफेद बालों वाले एल्विस को डंकिन डोनट्स में घुसते देखा। और कुछ ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि उन्होंने पिछली रात एलियंस के साथ बड़े जहाज पर बिताई और उन्हें अकथ्य परीक्षण से गुजरना पड़ा। कभी-कभी कुछ विशेष लोग वही चीज़ें “देखते” हैं जो वे देखना चाहते हैं, चीज़ें जो वास्तव में होती ही नहीं हैं। और इसलिए कुछ लोग दावा करते हैं कि अनुयायी सूली की घटना से इतने परेशान थे कि उनकी यीशु को जीवित देखने की इच्छा के कारण सामूहिक मतिभ्रम हुआ। विश्वास योग्य है?
ईसाई धर्म सलाहकारों के अमेरिकी संगठन के पूर्व अध्यक्ष, मनोवैज्ञानिक गैरी कोलिन्स से अनुयायियों के व्यवहार में मूल बदलाव के पीछे मतिभ्रम की संभावना के बारे में प्रश्न पूछा गया। कोलिन्स ने टिप्पणी की, “मतिभ्रम व्यक्तिगत घटनाएँ होती हैं। उनकी स्वयं की प्रकृति के अनुसार, एक समय में केवल एक ही व्यक्ति किसी विशेष मतिभ्रम को देख सकता है। वे निश्चित रूप से ऐसा कुछ नहीं है, जो लोगों के समूह द्वारा देखा जा सकता हो।”[27]
मतिभ्रम की दूर तक संभावना भी नहीं है, मनोवैज्ञानिक थॉमस जे. थोरबर्न के अनुसार। “यह पूरी तरह से समझ से बाहर है कि …औसत समझदारी वाले, पाँच सौ लोगों को…सभी प्रकार की इन्द्रिय सम्बन्धी प्रभावों—दृश्यात्मक, श्रवण-संबंधी, स्पर्श-संबंधी सभी का अनुभव हो—और कि ये सभी…अनुभव पूरी तरह से मतिभ्रम पर निर्भर … हो।”[28]
इसके अतिरिक्त, मतिभ्रम के मनोविज्ञान में, व्यक्ति को उस मानसिक स्थिति में होना चाहिए जहाँ उसे किसी व्यक्ति को देखने की इतनी इच्छा होती है कि उनका मस्तिष्क इसकी कल्पना करने लगता है। प्रारंभिक ईसाई धर्म के दो प्रमुख नेता, जेम्स एवं पॉल, दोनों का सामना पुनर्जीवित यीशु से हुआ, और दोनों ने ही इस आनंद की उम्मीद, या आशा नहीं की थी। ईसाई धर्म प्रचारक पॉल ने वास्तव में ईसाईयों के आरंभिक उत्पीड़न का नेतृत्व किया, और उनका मत परिवर्तन व्याख्या न करने योग्य बना हुआ है, सिवाय उनके स्वयं के कथन के कि यीशु उनके सामने, पुनर्जीवित रूप में, प्रकट हुए।
असत्य से किंवदंती की ओर
कुछ न मानने वाले संशयवादी व्यक्तियों ने पुनरुत्थान के वृत्तांत को एक ऐसे किंवदंती से जोड़ देते हैं जो एक या अधिक लोगों द्वारा झूठ बोलने या यह सोचने के साथ आरंभ हुआ कि उन्होंने पुनर्जीवित यीशु को देखा। समय गुजरने के साथ-साथ, चारो तरफ प्रचलित हो जाने के कारण किंवदंती को अधिक विशाल और सुंदर हो जाना चाहिए था। इस सिद्धांत में, यीशु का पुनरुत्थान राजा आर्थर के गोलमेज, छोटे जॉर्जी वाशिंगटन के झूठ न बोल पाने की अक्षमता, और सोशल सेक्युरिटी के संपन्न हो जाने के भरोसे के समकक्ष है।
लेकिन इस सिद्धांत के साथ तीन प्रमुख समस्याएँ हैं।
1. किंवदंतियाँ तब बिरले ही विकसित होती हैं, जब उनका खंडन करने के लिए अनेक चश्मदीद जीवित हों। प्राचीन रोम एवं यूनान के एक इतिहासकार, ए. एन. शेर्विन-व्हाइट, ने तर्क दिया कि पुनरुत्थान का समाचार इतनी जल्दी और तेज़ी से फैला कि वह किंवदंती नहीं हो सकता।[29]
2. किंवदंतियाँ जबानी परंपरा के कारण विकसित होती हैं और समकालीन ऐतिहासिक दस्तावेजों के साथ नहीं आती, जिनका सत्यापन किया जा सकता हो। इसके बावजूद पुनरुत्थान के तीन दशकों के अंदर ही ईसा चरित लिखे गए।[30]
3. किंवदंती सिद्धांत, खाली कब्र का तथ्य या यीशु के जीवित होने से संबंधित ऐतिहासिक रूप से पुष्ट धर्म प्रचारकों की आस्था का पर्याप्त रूप से व्याख्या नहीं कर पाता।[31]
ईसाई धर्म क्यों विजयी हुआ?
मॉरिसन इस तथ्य से आश्चर्यचकित थे कि “एक छोटा महत्वहीन आंदोलन यहूदी संस्थाओं की धूर्ततापूर्ण चंगुल, साथ ही साथ रोमन साम्राज्य के पराक्रम से भी जीत गया।” इतनी सारी असंभावनाओं के बावजूद, इसकी जीत क्यों हुई?
उन्होंने लिखा, “बीस वर्षों के अंदर, इन गैलिलियाई किसानों के दावे ने यहूदी चर्च को बाधित किया। … पचास वर्षों के अंदर ही इसने रोमन साम्राज्य की शांति को भंग करना आरंभ कर दिया। जब हम सब कुछ कह चुके हैं जो कहा जा चुका है … हमारा सामना अब तक के सबसे बड़े रहस्यों से होता है। यह क्यों विजयी रहा?”[32]
हर हालत में, ईसाई धर्म को तभी समाप्त हो जाना चाहिए था जब यीशु सूली पर चढ़ाए गए थे और उनके अनुयायी अपनी जान बचाने के लिए भाग निकले। लेकिन धर्म प्रचारकों ने एक विकासशील ईसाई धर्म आंदोलन की स्थापना की।
जे. एन. डी. एंडरसन ने लिखा, “एक ऐसे चित्र की मनोवैज्ञानिक विसंगति की कल्पना करें, जिसमें एक ऊपरी कमरे में दुबके पराजित कायरों का एक समूह जो अगले ही दिन एक ऐसे जनसमूह में परिवर्तित हो जाता है जिसे कोई उत्पीड़न भी मौन न कर पाए—और फिर इस नाटकीय परिवर्तन का कारण किसी विश्वसनीय चीज़ नहीं, बल्कि तुच्छ पाखंड को बताना। … इसका बिल्कुल ही कोई मतलब नहीं निकलता है।”[33]
कई विद्वानों का मानना है कि (प्राचीन टीकाकार के शब्दों में) “शहीदों का लहू चर्च का बीज बना।” इतिहासकार विल ड्यूरंट का कहना है, “सीज़र और यीशु एक अखाड़े में मिले और यीशु विजयी रहे।”[34]
एक आश्चर्यजनक निष्कर्ष
मिथक, मतिभ्रम और दोषपूर्ण शव-परीक्षा को दरकिनार करते हुए, खाली कब्र के निर्विवाद प्रमाण, पुनरुत्थान के पर्याप्त चश्मदीद, और गूढ़ रूपांतरण तथा उनको देखने वाले लोगों का दुनिया पर प्रभाव के साथ, मॉरिसन को यह भरोसा हो गया कि यीशु के पुनरुत्थान के बारे में उनका पूर्वकल्पित पूर्वाग्रह गलत था। उन्होंने अपने निष्कर्षों को विस्तारपूर्वक दर्ज करने के लिए हूमूव्डदस्टोन?नामकएक अलग पुस्तक लिखना आरंभ किया। मॉरिसन, सुराग दर सुराग, प्रमाणों का पीछा करते चले गए जब तक मामले की सच्चाई उन्हें स्पष्ट नहीं हो गई। उन्हें आश्चर्य हुआ कि प्रमाण पुनरुत्थान के प्रति विश्वास की ओर संकेत कर रहे थे।
अपने पहले ही अध्याय, “द बुक दैट रेफ़्यूज़्ड दू बी रिटेन” में इस पूर्व संशयवादी व्यक्ति ने इस बात का वर्णन किया कि किस प्रकार प्रमाण ने उन्हें यीशु के पुनरुत्थान के वास्तविक ऐतिहासिक घटना होने के बारे में भरोसा दिलाया। “यह कुछ ऐसा हुआ जैसे कोई व्यक्ति जंगल पार करने के लिए चिरपरिचित तथा अकसर प्रयुक्त मार्ग पर निकला और अचानक एक ऐसे स्थान पर जा पहुँचा जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी।”[35]
मॉरिसन अकेले नहीं थे। अनगिनत संशयवादी व्यक्तियों ने यीशु के पुनरुत्थान के प्रमाणों की जाँच-पड़ताल की, और स्वीकार किया कि यह मानव इतिहास के सर्वाधिक आश्चर्यजनक तथ्यों में से एक है। लेकिन यीशु का पुनरुत्थान एक सवाल भी खड़ा करता है: यीशु द्वारा मृत्यु को पराजित करने के तथ्य का मेरे जीवन से क्या लेना-देना? इस प्रश्न का उत्तर न्यू टेस्टामेंट ईसाई धर्म का सार है।
क्या यीशु ने बताया कि हमारी मृत्यु के बाद क्या होता है?
यदि यीशु सचमुच मृत्यु से वापस लौट आए थे, तो केवल उन्हें पता होना चाहिए कि दूसरी तरफ क्या है। यीशु ने जीवन का अर्थ और हमारे भविष्य के बारे में क्या बताया? क्या परमेश्वर तक पहुँचने के अनेक मार्ग हैं या यीशु ने केवल एक मार्ग के बारे में बताया था? चौंका देने वाले उत्तरों के लिए “यीशु क्यों?” पढ़ें।
क्या यीशु जीवन को एक उद्देश्य प्रदान कर सकते हैं?
“यीशु क्यों?” उन प्रश्नों की तरह देखता है कि क्या यीशु आज प्रासंगिक हैं। क्या यीशु जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं: “मैं कौन हूँ?” “मैं यहाँ क्यों हूँ?” और, “मैं कहाँ जाने वाला हूँ?” प्राणहीन गिरजे और सूलियों ने कुछ लोगों को ऐसा विश्वास दिलाया कि वे ऐसा नहीं कर सकते, और कि यीशु ने हमें अनियंत्रित दुनिया से निपटने के लिए अकेला छोड़ दिया। परंतु यीशु ने जीवन और धरती पर हमारे उद्देश्य के बारे में कुछ दावे किए, जिनकी जाँच उन्हें अस्नेही या अशक्त बताने से पहले करने की जरूरत है। यह लेख इस रहस्य का पड़ताल करता है कि यीशु धरती पर क्यों आए।
यहाँक्लिककरकेजानेकिकिसप्रकारयीशुजीवनकोएकउद्देश्यप्रदानकरसकतेहैं।

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