किंको की किसे आवश्यकता है?
ईसाई धर्म प्रचारकों के मूल लेख श्रद्धेय थे। गिरजाघरों ने उनका अध्ययन किया, उन्हें साझा किया, उन्हें गढ़े हुए खजाने की तरह सावधानीपूर्वक संरक्षित और संग्रहीत किया।
परंतु, हाय, 2,000 वर्षों की यात्रा, रोमन अधिकरण, और ऊष्मा-गतिकी (थर्मोडायनामिक्स)के दूसरे नियम का दुष्प्रभाव हुआ। तो, आज, हमारे पास उन मूल लेखों में से क्या है? कुछ नहीं। सभी मूल हस्तलिपियां लुप्त हो गईं (यद्यपि प्रत्येक सप्ताह बाइबिल के विद्वान, निस्संदेह इस आशा के साथ एंटिक्सरोडशो देखते हैं कि शायद कुछ प्रकट हो जाए)।
फिर भी यह अकेला नवविधान का दुर्भाग्य नहीं है; प्राचीन इतिहास का कोई अन्य तुलनायोग्य दस्तावेज भी आज मौजूद नहीं है। इतिहासकारों के पास अगर परीक्षण के लिए विश्वसनीय प्रतिलिपियां होती हैं तो वे मूल हस्तलिपियों के अभाव के कारण परेशान नहीं होते हैं। परंतु क्या नवविधान की प्राचीन प्रतिलिपियां उपलब्ध हैं, और हैं, तो क्या वे मूल के हूबहू हैं?
जैसे-जैसे गिरजाघरों की संख्या में गुणात्मक वृद्धि हुई, गिरजाघर प्रधानों के निरीक्षण में सैकड़ों प्रतिलिपियां सावधानीपूर्वक तैयार करवाई गईं। प्रत्येक अक्षर कुशलतापूर्वक चर्मपत्र या भोजपत्र पर लिपिबद्ध किए गए। और इसलिए, आज, विद्वान बची हुई प्रतिलिपियों (और प्रतिलिपियों की प्रतिलिपियां, और प्रतिलिपियों की प्रतिलिपियों की प्रतिलिपियां—आप समझ गए न) की प्रामाणिकता के निर्धारण और मूल दस्तावेजों के अत्यंत निकट के अनुमान पर पहुँचने के लिए उसका अध्ययन कर सकते हैं।
वास्तव में, प्राचीन साहित्य का अध्ययन करने वाले विद्वानों ने पाठ-आलोचना विज्ञान को दओडिसी जैसे दस्तावेजों की प्रामाणिकता के निर्धारण के उद्देश्य से जाँच करने, और अन्य प्राचीन दस्तावेजों से उनकी तुलना करने के लिए विकसित किया है। बहुत हाल ही में, सैन्य इतिहासकार चार्ल्स सैंडर ने तीन-खंड परीक्षण करके पाठ-आलोचना को संवर्धित किया है जो न केवल प्रतिलिपि की यथार्थता बल्कि लेखकों की विश्वसनीयता पर भी विचार करता है। उनके परीक्षण निम्नलिखित हैं:
1. ग्रंथ-सूची संबंधी परीक्षण
2. आंतरिक प्रमाण परीक्षण
3. बाहरी प्रमाण परीक्षण[7]
आइए देखें कि इन परीक्षणों को प्रारंभिक नवविधान की हस्तलिपियों पर लागू करने पर क्या होता है।