यीशु और सृजन
यीशु के प्रत्यक्षदर्शी हमें बताते हैं कि वे प्रकृति के नियमों पर निरंतर अपनी रचनात्मक शक्ति का प्रदर्शन किया करते थे। नवविधान हमें बताता है कि यीशु मनुष्य बनने से पहले, अनंतकाल से ही अपने परमपिता के साथ स्वर्ग में विद्यमान थे। यहूदियों के लेखक समेत धर्मदूत यूहन्ना और पौलुस यीशु का वर्णन रचयिता के रूप में करते हैं। पौलुस कुलुस्सियों को कहते हैं:
“वह अदृश्य परमेश्वर का दृश्य रूप है। वह सारी सृष्टि का सिरमौर है। क्योंकि जो कुछ स्वर्ग में है और धरती पर है उसी की शक्ति से उत्पन्न हुआ है। कुछ भी चाहे दृश्यमान हो चाहे अदृश्य, चाहे सिंहासन हो चाहे राज्य, चाहे कोई शासक हो चाहे अधिकारी, सबकुछ उसी के द्वारा रचा गया है और उसी के लिए रचा गया है। सबसे पहले उसी का अस्तित्व था, उसी की शक्ति से सब वस्तुएं बनी रहती हैं।” कुलुस्सियों 1:15-17 जे.बी. फिलिप्स
जब पौलुस कहते हैं कि “शून्य से जीवन का आरंभ उनके [यीशु] माध्यम से हुआ,” तो वह एक ऐसा बयान दे रहे थे जिसका उस समय कोई वैज्ञानिक समर्थन नहीं था। वास्तव में वैज्ञानिकों का यह विचार था कि पदार्थ हमेशा से ही किसी न किसी रूप में मौजूद था।
भौतिकवादियों ने तर्क किया कि अगर पदार्थ हमेशा से मौजूद था, तो फिर कभी निर्माण हुआ ही नहीं था। इसने नास्तिक कार्ल सेगन को अंतर्राष्ट्रीय टीवी पर यह घोषणा करने की प्रेरणा दी कि “ब्रह्मांड ही सब कुछ है या कभी था या कभी रहेगा।”[2]
सेगन का भौतिकवादी विश्वदर्शन और ईसाई विश्वदर्शन दोनों ही एक साथ सही नहीं हो सकते। प्रश्न यह है कि, “क्या विज्ञान हमारी उत्पत्ति पर कोई प्रकाश डालता है”? तो हम किस पर विश्वास करें? यही वह प्रश्न था जिसका सामना सत्रह वर्षीय जेफ़ स्मिथ कर रहा था।
जेफ़ परेशान था।एक कैंप में उसने सुना कि ईसा मसीह पापों के लिए क्षमा और शाश्वत जीवन प्रदान करते हैं।इससे भी अधिक, उसने पाया कि यीशु ने हमें अर्थवान, उद्देश्य, और आशा पूर्ण जीवन जीने के लिए बनाया है।अपने जीवन में पहली बार जेफ़ ने यह महसूस किया की वह यहाँ पृथ्वी पर क्यों है।वह अपने पापों के लिए क्षमा चाहता था, और वह अपने जीवन का एक अर्थ और उद्देश्य चाहता था।
परंतु जेफ़ को बौद्धिक संघर्ष करना पड़ा।वह विश्वास करना चाहता था कि यीशु वास्तव में हैं, परंतु वह विज्ञान से प्रेम करता था।उसने सोचा, “क्या सृजन और विज्ञान दोनों में विश्वास करना संभव है?”
जेफ़ और दूसरे ऐसे लोगों के लिए एक सुसमाचार है जो ईश्वर और विज्ञान दोनों में विश्वास करना चाहते हैं।
पिछले कुछ दशकों में अनेक अग्रणी वैज्ञानिकों ने हैरान करने वाले ऐसे नए प्रमाणों के बारे में सार्वजनिक तौर पर बताया जो सृजन के बाइबिल के विचार का समर्थन करते हैं। और इनमें से अनेक वैज्ञानिकों की निजी रूप से ईश्वर में कोई आस्था नहीं है।
तो ऐसा कौन सा प्रमाण है कि जिसने अनेक वैज्ञानिकों को अचानक सृष्टिकर्ता की बातें करने पर मजबूर किया है? उन प्रश्नों के उत्तर के लिए हमें खगोल-विज्ञान और आणविक जीव-विज्ञान में हुई हाल की खोजों पर दृष्टि डालने की ज़रूरत है जिनमें प्रमाण स्वयं बोलेंगे। [अधिक गहराई से अध्ययन करने के लिए, www.y-Origins.com पर लेखों को पढ़ें।]