डीएनए:जीवन की भाषा
यद्यपि बाइबिल हमें बताता है कि यीशु ने प्रत्येक जीवन का निर्माण किया परंतु इसके बारे में कुछ नहीं बताया कि उन्होंने यह कैसे किया। हालाँकि, अब सृजन के कुछ रहस्यों की खोज होने लगी है।
उदाहरण के लिए, पिछली अर्ध सदी में, वैज्ञानिकों ने डीएनए नामक एक बहुत ही छोटे अणु के बारे में जाना जो हमारे और अन्य सभी जीवित प्राणियों के शरीरों की प्रत्येक कोशिका के पीछे का “मस्तिष्क” है। इसके बावजूद जितना अधिक वे डीएनए के बारे में पता लगाते हैं, वे इसके पीछे की उत्कृष्टता से उतने ही ज़्यादा विस्मित हो जाते हैं।
हालाँकि विकासवादियों का मानना है कि डीएनए का विकास प्राकृतिक चयन के माध्यम से हुआ, उनके पास इस बात का कोई उत्तर नहीं है कि ऐसा जटिल अणु महज़ एक संयोग से किस प्रकार बना होगा। डीएनए की जटिलता ने इसके सह-खोजकर्ता, फ़्रांसिस क्रिक को यह मानने पर मजबूर किया कि यह पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से कभी उत्पन्न नहीं हो सकता था। विकासवादी क्रिक का मानना था कि जीवन इतना जटिल है कि यह किसी बाह्य स्थान से आया होगा, उन्होंने लिखा:
“व र्तमान में उपलब्ध सभी जानकारी से लैस एक ईमानदार व्यक्ति ही यह कह सकता है कि कुछ मायनों में, वर्तमान में जीवन का उद्गम एक चमत्कार प्रतीत होता है, शर्तें इतनी सारी हैं कि इसके आरंभ होने से पहले उन सबको पूरा करना पड़ेगा।”[10]
डीएनए के पीछे का कूटलेखन ऐसा ज्ञान प्रकट करता है जो कल्पना को अचंभे में डाल देता है। इस ज्ञान की महज़ पिन के सिरे जितनी जानकारी इतनी सारी पत्रावरणबद्ध पुस्तकों के ढेर की जानकारी में समाविष्ट है जो 5,000 बार पृथ्वी को घेरा लगा देगी। और डीएनए, स्वयं के अपने एक जटिल सॉफ़्टवेयर कोड के साथ एक भाषा के रूप में संचालित होता है। माइक्रोसॉफ़्ट के संस्थापक बिल गेट्स कहते हैं कि डीएनए का सॉफ़्टवेयर “हम लोगों द्वारा अब तक विकसित किसी भी सॉफ़्टवेयर के मुकाबले बहुत, बहुत अधिक जटिल है।”[11]
भौतिकवादियों का मानना है कि यह जटिलता प्राकृतिक चयन के माध्यम से उत्पन्न हुई। फिर भी, जैसा कि क्रिक टिप्पणी करते हैं, प्राकृतिक चयन प्रथम अणु का निर्माण भी नहीं कर सकता है। चूँकि प्राकृतिक चयन समेत कोई भी वैज्ञानिक प्रक्रिया, डीएनए के उद्गम की व्याख्या नहीं कर सकती, अनेक वैज्ञानिक मानते हैं कि इसे अवश्य ही डिज़ाइन किया गया होगा।
डीएनए को रचयिता के प्रमाण के रूप में देखना ईसाइयों के लिए स्वाभाविक है। लेकिन 50 वर्षों तक ईश्वर के विरोध में शिक्षा देने और वाद-विवाद करने के बाद किसी प्रख्यात नास्तिक के लिए, विशेष रूप से भौतिकवादियों के लिए अपने दृष्टिकोण बदलना भूकंपीय प्रभाव की एक घटना होगी।
फिर भी दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक, एंटनी फ़्लीव के साथ बिल्कुल यही हुआ। पचास वर्षों से विश्वविद्यालय की कक्षाओं, पुस्तकों और उपदेशों में नास्तिकता का ढिंढोरा पीटने के बाद, फ़्लीव की नास्तिकता, डीएनए के पीछे के ज्ञान के बारे में जानने के बाद अप्रत्याशित रूप से समाप्त हो गई। फ़्लीव बताते हैं कि वे अब नास्तिक क्यों नहीं हैं:
“मेरे ख्याल से डीएनए सामग्री ने जो हमें दिखाया है वह यह है कि इन असाधारण भिन्न प्रकार के तत्वों को इकट्ठा करने में ज्ञान की ज़रूरत पड़ी होगी। अत्यंत जटिलता मुझे ज्ञान का कार्य प्रतीत होता है जिसके कारण परिणाम प्राप्त हुए….मुझे अब ऐसा प्रतीत होता है कि डीएनए के पचास वर्षों से अधिक के शोध ने डिज़ाइन के पक्ष में नए और सशक्त तर्क हेतु सामग्री प्रदान की है।”[12]
हालाँकि फ़्लीव ईसाई नहीं हैं, वे अब मानते हैं कि डीएनए के पीछे का “सॉफ़्टवेयर” इतना जटिल है कि यह बिना किसी “डिज़ाइनर” के उत्पन्न नहीं हो सकता। और फ़्लीव निस्संदेह अकेले नहीं हैं। डीएनए के पीछे के अविश्वसनीय ज्ञान की खोज ने अनेक पूर्व अनीश्वरवादियों और नास्तिकों को यह भरोसा दिला दिया कि हमारे ब्रह्मांड में जीवन कोई आकस्मिक घटना नहीं है।