सर्वश्रेष्ठ
प्रारंभिक ईसाईयों पर रोमियों द्वारा सीज़र के वैभव को चुराने, यहूदियों द्वारा परमेश्वर (यहोवा) के वैभव छीनने का आरोप लगा। कुछ लोगों द्वारा ईसाई धर्म के “अति यीशु केंद्रित” होने पर आलोचना होती है। परंतु क्या धर्मदूतों ने ऐसा ही सोचा था? आइए पौलुस से पुनः जानते हैं क्योंकि वे कुलुस्सियों को यीशु के बारे में लिखते हैं।
“वही आदि है और शून्य से पहली उत्पत्ति हैं ताकि हर बात में पहला स्थान उसी को मिले। क्योंकि अपनी समग्रता में परमेश्वर ने उसी में वास करना चाहा” (कुलुस्सियों 1:19 ईएसवी)।
पौलुस लिखते हैं कि परमेश्वर यीशु को ब्रह्मांड के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति के रूप में बनाते हुए खुश हैं। परंतु पूर्व विधान स्पष्ट रूप से सिखाता है कि परमेश्वर किसी मनुष्य के लिए अपनी श्रेष्ठता नहीं छोड़ेंगे (व्यवस्था विवरण 6:4, 5; भजन संहिता 83:18; नीतिवचन 16:4; यशायाह 2:11). यशायाह स्पष्ट रूप से परमेश्वर (यहोवा) की श्रेष्ठता के बारे में बताता है।
“हे हर कहीं के लोगों तुम्हें मेरा अनुसरण करना चाहिए! क्योंकि मैं परमेश्वर हूँ; और मुझसे अन्य कोई परमेश्वर नहीं। मैंने स्वयं अपनी शक्ति को साक्षी करके प्रतिज्ञा की है और मैं कभी अपने शब्दों से पीछे नहीं हटूँगा: हर व्यक्ति मेरे आगे झुकेगा और हर व्यक्ति मेरा अनुसरण करने का वचन देगा।” (यशायाह 45:22, 23 एनएलटी)
लेकिन यीशु और यहोवा दोनों सर्वश्रेष्ठ कैसे हो सकते हैं? उत्पत्ति में एक संकेत हो सकता है, जहाँ परमेश्वर के लिए प्रयोग किया गया यहूदी शब्द (अलोहिम) बहुवचन है। और, जब यशायाह कहते हैं कि केवल परमेश्वर ने ही सभी वस्तुओं का निर्माण किया है, तो परमेश्वर (यहोवा) के लिए यहूदी शब्द भी बहुवचन है। डॉ. नॉर्मन गिज़्लर निष्कर्ष निकालते हैं, “बाइबिल के संबंध में बोल रहा हूँ कि इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए पर्याप्त प्रमाण हैं कि परमेश्वर का मूल सत्व धर्मग्रंथों में बहुवचन के रूप में वर्णित है।”[16]
पौलुस यीशु के लिए उसी शब्द का उपयोग करते हैं जिसका उपयोग यशायाह यहोवा के सम्मान में करते हैं:
“यद्यपि वे परमेश्वर थे, उन्होंने ईश्वर के रूप में अपने अधिकार की मांग नहीं की और उससे चिपके नहीं। उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं बनाया; उन्होंने दास का नम्र स्थान लिया और मानवीय रूप में प्रकट हुए। और मानव रूप में यहाँ तक कि सूली पर एक अपराधी के रूप में मौत पा कर भी उन्होंने स्वयं को नम्र बनाए रखा।
इसके कारण, परमेश्वर ने उन्हें स्वर्ग की ऊँचाइयों तक उठाया और उन्हें वह नाम दिया जो अन्य सभी नामों से ऊपर है, ताकि परम पिता परमेश्वर के वैभव के लिए यीशु के नाम पर हर व्यक्ति झुके, स्वर्ग में, धरती पर, और धरती के नीचे भी, और हर ज़बान ईसा मसीह को परमेश्वर के रूप में स्वीकार करें।” (फिलिप्पियों 2:6-11 एनएलटी)
यह अंश दर्शाता है कि यीशु के मानव बनने से पहले, उनके पास परमेश्वर के पूर्ण अधिकार थे। पौलुस हमें यह भी बताते हैं, “कि हर कोई व्यक्ति झुकेगा और हर ज़बान स्वीकार करेगी कि ईसा मसीह ही परमेश्वर हैं।”
यीशु से सात सौ वर्ष पहले, परमेश्वर हमें यशायाह के माध्यम से बताते हैं कि वे ही एकमात्र परमेश्वर, प्रभु, और उद्धारक हैं:
“मुझसे पहले कोई ईश्वर नहीं हुआ, न ही मेरे बाद कोई होगा। मैं, केवल परमेश्वर हूँ और मेरे सिवाय और कोई मुक्तिदाता नहीं है” (यशायाह 43:10, 11)।
हमें पूर्व विधान में यह भी बताया गया कि केवल यहोवा ने ही ब्रह्मांड की रचना की। कि “हर व्यक्ति उसके लिए झुकेगा।” कि वे “इज़राइल के प्रभु, राजा हैं।” “मुक्तिदाता।” “आदि एवं अंत।” दानिय्येल उन्हें “प्राचीन काल” का कहते हैं। जकर्याह परमेश्वर के बारे में “राजा, स्वर्गदूतों के प्रभु जो धरती का निर्णय करेंगे” के रूप में तरह उल्लेख करते हैं।
परंतु नवविधान में हम यूहन्ना को यीशु के लिए “उद्धारक,” “अल्फ़ा एंड ओमेगा,” “आदि एवं अंत,” “राजाओं के राजा” और प्रभुओं के प्रभु” कहते सुनते हैं। पौलुस हमें बताते हैं “हर व्यक्ति यीशु के लिए झुकेगा।” यह केवल यीशु हैं जो धर्मदूतों के अनुसार हमारी नियति के बारे में निर्णय लेंगे। यीशु ब्रह्मांड के सर्वश्रेष्ठ प्रभु हैं।
पैकर तर्क देते हैं कि ईसाई धर्म का केवल तभी मतलब है जब यीशु पूर्ण रूप से परमेश्वर हों:
“यदि यीशु महज़ एक उत्कृष्ट, धार्मिक व्यक्ति के अलावा और कुछ नहीं होते, तो उनके जीवन और कार्यों के बारे में नवविधान द्वारा कही गई बातों पर भरोसा करना बहुत मुश्किल काम होता।
“परंतु यदि यीशु अनंत शब्द के समान व्यक्ति थे, सृष्टि रचना में परम पिता के अभिकर्ता, ‘जिसके माध्यम से उन्होंने दुनिया का भी निर्माण किया’ (इब्रानियों 1:2 RV), तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि रचनात्मक शक्ति के नवीन कार्य इस दुनिया में उनके आगमन, यहाँ उनके जीवन, और यहाँ से उनकी विदाई के बारे में बताते हैं। यह बिल्कुल अद्भुत नहीं कि, जीवन के रचयिता, मृत्यु के बाद पुनः जीवित हो जाए….पुनरुत्थान अपने आप में एक अगाध रहस्य है, लेकिन यह उन सब बाकी चीज़ों की व्याख्या करता है जो नवविधान में समाविष्ट हैं।”[17]
निष्कर्ष
यदि यीशु ही यहोवा हैं, तो ईसाई धर्म का यह संदेश कि परमेश्वर स्वयं धरती पर आए, लोगों को स्वयं पर थूकने दिया, उनका मजा़क उड़ाने दिया और हमारे पापों के लिए परम बलिदान के स्वरूप में उन्हें सूली पर चढ़ाया गया। हमारे पाप और अनैतिकता के लिए अदायगी के रूप में परमेश्वर का उत्तम न्याय केवल परमेश्वर द्वारा ही किया जा सकता था। कोई फ़रिश्ता या सृजित प्रतिनिधि पर्याप्त नहीं होता। कृपालुता का ऐसा कार्य परम पिता के प्रेम और साथ ही हम सब को दिए गए उसके उच्च मान की विशालता को दर्शाता है (“यीशु क्यों?” देखें)। और धर्मदूतों ने बिल्कुल यही सिखाया और उत्साहपूर्वक ऐसा ही उपदेश दिया।
इफिसि बुजुर्गों से विदाई के शब्दों में, पौलुस ने उन लोगों को ईश्वर के गिरजे की रखवाली करने हेतु प्रोत्साहित किया, जिसे उन्होंने स्वयं अपने रक्त के बदले मोल लिया था (प्रेरितों के काम 20:28 एनएएसबी)। पौलुस जकर्याह की ही भविष्यवाणी को दोहरा रहे हैं जहाँ परमेश्वर (यहोवा) कहते हैं,
“उस दिन परमेश्वर यरुशलम के लोगों की रक्षा करेंगे….और वे लोग मेरी ओर देखेंगे जिसे उन लोगों ने छेद दिया और वे लोग बहुत दुखी होंगे, ऐसे ही दुखी होंगे जैसे कोई अपने इकलौते पुत्र के लिए शोक करता है (जकर्याह 12:8a, 10b)।
जकर्याह यह बताते हैं कि सूली पर छेद दिए जाने वाला स्वयं परमेश्वर के अलावा और कोई नहीं था। इस प्रकार, हम देखते हैं कि ईसा मसीह पूर्व और नवविधान को एक साथ लाते हैं जैसा कि अलग-अलग साज़ मिलकर एक खूबसूरत स्वर समता बनाते हैं। क्योंकि, अगर यीशु परमेश्वर नहीं हैं, तो ईसाई धर्म अपना केंद्रीय मूल विषय खो देगा। परंतु अगर यीशु परमेश्वर हैं, तो सभी अन्य प्रमुख ईसाई सिद्धांत पहेली के टुकड़ों की तरह एक साथ सज जाएँगे।” क्रीफ़्ट और टाचेली बताते हैं:[18]
1. “यदि यीशु देवीय हैं, तो फिर परमेश्वर का अवतरण या ‘शरीर-धारण’ इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है। यह इतिहास का चूल है। यह सब कुछ परिवर्तित कर देता है।”
2. “यदि यीशु परमेश्वर हैं, तो जब वे सूली पर चढ़े, पाप के कारण बंद स्वर्ग का द्वार अदन के बाद से हम लोगों के लिए पहली बार खुला। इतिहास की कोई और घटना पृथ्वी पर सभी लोगों के लिए इससे अधिक महत्वपूर्ण नहीं हो सकती है।”
3. “यदि यीशु परमेश्वर हैं, तो चूँकि वे सर्वशक्तिमान हैं और अब भी मौजूद हैं, वे आपको और आपके जीवन को बदल सकते हैं जो किसी और के लिए कर पाना संभव नहीं है।”
4. “यदि यीशु दैवीय हैं, तो उनका हमारे संपूर्ण जीवन पर अधिकार है जिसमें हमारा मन और हमारे विचार भी शामिल हैं।”
धर्मदूतों ने यीशु को अपने जीवन का प्रभु बना लिया, सृष्टिकर्ता के रूप में उनका वर्णन किया और सर्वश्रेष्ठ के रूप में उनकी आराधना की। सभी प्रत्यक्षदर्शी इस बात पर पूर्ण रूप से आश्वस्त थे कि परमेश्वर ईसा मसीह के रूप में अवतरित हुए, जो राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु, और साथ ही हमारे अनंत न्यायाधीश के रूप में लौटेंगे। पौलुस, तीतुस को लिखे गए अपने पत्र में यीशु की पहचान बताते हैं और हमारे जीवन में परमेश्वर के उद्देश्य को प्रकट करते हैं:
“क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह सब मनुष्यों के उद्धार के लिए प्रकट हुआ है। इससे हमें सीख मिलती है कि हम परमेश्वर विहीनता को नकारें और सांसारिक इच्छाओं का निषेध करें। हमें उस अद्भुत घटना की प्रतीक्षा करते हुए इस पापमय दुनिया में विवेकपूर्ण, उचित आचरण और परमेश्वर के प्रति श्रद्धा के साथ तब तक जीवन व्यतीत करना चाहिए जबतकहमारेमहानपरमेश्वरऔरउद्धारक, ईसामसीहकावैभव प्रकट होगा। 19 (तीतुस 2:11-13 एनएलटी)।
क्या यीशु ने बताया कि मृत्यु के बाद क्या होता है?
यदि यीशु सचमुच मृत्यु के बाद पुनर्जीवित हो गए थे, तो केवल उन्हें ही पता होना चाहिए कि इस जीवन की दूसरी तरफ क्या है। यीशु ने जीवन के अर्थ और हमारे भविष्य के बारे में क्या बताया? क्या परमेश्वर तक पहुँचने के अनेक मार्ग हैं या यीशु ने केवल एक मार्ग के बारे में बताया था? चौंका देने वाले उत्तरों के लिए “यीशु क्यों” पढ़ें।
“यीशु क्यों?” पढ़ने और यीशु द्वारा मृत्यु पश्चात् जीवन के बारे में कही बातें जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
क्या यीशु जीवन को एक उद्देश्य प्रदान कर सकते हैं?
“यीशु क्यों?” उन प्रश्नों की तरफ देखता है कि क्या यीशु आज प्रासंगिक हैं। क्या यीशु जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं: “मैं कौन हूँ?” “मैं यहाँ क्यों हूँ?” और, “मैं कहाँ जाने वाला हूँ?” प्राणहीन गिरजे और सूलियों ने कुछ लोगों को ऐसा विश्वास दिलाया कि वे ऐसा नहीं कर सकते और यह कि यीशु ने हमें अनियंत्रित दुनिया से निपटने के लिए अकेला छोड़ दिया। परंतु यीशु ने जीवन और धरती पर हमारे उद्देश्य के बारे में कुछ दावे किए जिनकी जाँच उन्हें अस्नेही या अशक्त बताने से पहले करने की ज़रूरत है। यह लेख इस रहस्य की पड़ताल करता है कि यीशु धरती पर क्यों आए।
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