वास्तविक यीशु कौन हैं?

यीशु के बारे में सत्य की खोज

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परमेश्वर के साथ एकात्मकता का दावा

जिन लोगों ने यीशु को सुना, उन्होंने उनकी नैतिक उत्कृष्टता को देखा, उन्हें चमत्कार करते हुए देखा, और सोचा कि कहीं वे ही बहुप्रतीक्षित मसीहा तो नहीं थे। अंततः उनके विरोधियों ने उन्हें मंदिर में घेर लिया, और पूछा:

“तू हमें कब तक तंग करता रहेगा? अगर तू मसीहा हो तो साफ-साफ बता।”

यीशु ने उत्तर दिया, “वे काम जिन्हें मैं परम पिता के नाम पर कर रहा हूँ, स्वयं मेरी साक्षी हैं।” उन्होंने यह कहते हुए अपने अनुयायियों की तुलना भेड़ों से की, “मैं उन्हें अनंत जीवन प्रदान करता हूँ और उनका कभी नाश नहीं हगा।” फिर उन्होंने ज़ाहिर किया कि “परम पिता सबसे महान है,” और उनके कार्य “परम पिता के निर्देश पर ही हुए।” यीशु की नम्रता शांति देने वाली होना चाहिए थी। लेकिन फिर यीशु ने उन्हें यह कहते हुए बम फोड़ दिया कि (यूहन्ना 10:25-30)

“मेरे परम पिता और मैं एक हैं।”

अगर यीशु का तात्पर्य यह था कि वे परमेश्वर के साथ सहमत हैं, तो इतनी तीव्र प्रतिक्रिया नहीं होती। लेकिन, यहूदियों ने फिर से उन्हें मारने के लिए पत्थर उठा लिए। फिर यीशु ने उनसे कहा, “परम पिता की ओर से मैंने लोगों की मदद के लिए अनेक अच्छे कार्य दिखाए हैं। उनमें से किस अच्छे कार्य के लिए तुम मुझ पर पथराव करना चाहते हो?”

उन्होंने उत्तर दिया, “हम तुझ पर किसी अच्छे कार्य के लिए पथराव नहीं कर रहे हैं बल्कि इसलिए कर रहे हैं कि तूने ईश-निंदा की है और तू केवल एक मनुष्य होते हुए अपने आप को परमेश्वर घोषित कर रहा है” (यूहन्ना 10:33)।

जब यीशु सूली पर अपनी आगामी मृत्यु और विदाई के लिए अपने अनुयायियों को तैयार कर रहे थे, तो थोमा जानना चाहता था कि वे कहां जा रहे हैं और वहां जाने का रास्ता क्या है। यीशु ने थोमा को जवाब दिया:

“मैं ही मार्ग, सत्य और जीवन हूँ। बिना मेरे द्वारा कोई भी परम पिता के पास नहीं आता। यदि तूने मुझे जान लिया होता तो तू परमपिता को भी जानता। अब तू उसे जानता है और उसे देख भी चुका है।” (यूहन्ना 14:5-9)

वे चकरा गए थे। फिर फिलिप्पुस ने यीशु से कहा कि “हमें परमपिता दिखा दें।” यीशु इन झटका देने वाले शब्दों के साथ फिलिप्पुस का जवाब देते हैं:

“फिलिप्पुस, तुम अब तक नहीं जान पाए कि मैं कौन हूँ, बावजूद इसके कि मैं इतने लंबे समय से तुम्हारे साथ हूँ? जिस किसी ने भी मुझे देखा है उसने परमपिता को देखा है!”

यीशु प्रभावी हो कर कह रहे थे, “फिलिप्पुस, अगर तुम परम पिता को देखना चाहते हो, तो मुझे देखो!” यूहन्ना 17 में यीशु बताते हैं कि परमपिता के साथ उनकी एकात्मकता अनंत काल से है, “दुनिया की शुरूआत के पहले से।” यीशु के अनुसार, ऐसा कभी नहीं हुआ जब उन्होंने परमेश्वर की महिमा और उनका सार को अपने साथ साझा नहीं किया हो।

परमेश्वर का सत्ता

यहूदियों ने हमेशा से परमेश्वर को परम सत्ता माना। रोम अधिकृत इज़राइल में सत्ता एक भली-भांति समझा गया शब्द था। उस दौरान, सीज़र का राजादेश फौज को तत्काल युद्ध में धकेल सकता था, अपराधियों की निंदा या उन्हें रिहा कर सकता था और सरकार के कानून और नियम को स्थापित कर सकता था। वास्तव में, सीज़र की सत्ता कुछ ऐसी थी कि वह स्वयं देवत्व का दावा करता था।

पृथ्वी छोड़ने से पहले, यीशु ने अपनी सत्ता के प्रसार का वर्णन किया:

“यीशु ने कहा, ‘स्वर्ग में और पृथ्वी पर संपूर्ण अधिकार मुझे सौंपे गए हैं’” मत्ती 28:18, एनएलटी)।

इन असाधारण शब्दों में, यीशु न केवल धरती पर बल्कि स्वर्ग में भी सर्वोच्च सत्ता होने का दावा करते हैं। जॉन पाइपर कहते हैं,

“इसीलिए यीशु के मित्र और शत्रु उनके वचनों और कार्यों के कारण बार-बार विचलित हो जाते थे। वह किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह सड़क पर चल रहे होते, फिर मुड़ते और कुछ यूँ कहते, ‘अब्राहम से पहले, मैं था।’ या, ‘यदि तुमने मुझे देख लिया, तो तुमने परमपिता को देख लिया।’ या, ईश-निंदा का आरोप लगने के बाद बहुत शांतिपूर्वक कहते, ‘मनुष्य के पुत्र को धरती पर पापों को क्षमा करने का अधिकार है।’ मृतकों को वे साधारणतः कहते थे, ‘प्रकट हो,’ या ‘उठो।’ और वे लोग आज्ञापालन करते। समुद्र के तूफान को वे कहते, ‘शांत हो जाओ।’ और पावरोटी को वे कहते, ‘हजारों भोजन बन जाओ।’ और ऐसा तत्काल हो जाता था।”[14]

कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि चूंकि सत्ता उनके परमपिता से आई है तो इसका यीशु के परमेश्वर होने से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन परमेश्वर कभी अपनी सत्ता किसी बनाए गए जीव को इस कारण नहीं देते कि उन्हीं की आराधना होने लगे। ऐसा करना उनके आदेश का उल्लंघन करना होगा।

आराधना स्वीकार करना

इब्रानी धर्मग्रंथों में इस बात से ज़्यादा बुनियादी और कुछ नहीं है कि केवल परमेश्वर की ही आराधना की जानी चाहिए। वास्तव में, दस आदेश में से पहला है,

“तुम्हें मेरे अतिरिक्त किसी अन्य देवता को नहीं मानना चाहिए” (निर्गमन 20:3 NLT)।

इस प्रकार, किसी यहूदी द्वारा हो सकने वाला सबसे घोर पाप यह होगा कि वह किसी अन्य जीव की परमेश्वर के रूप में आराधना करे या उसे स्वीकार करे। इसलिए यदि यीशु परमेश्वर नहीं थे तो आराधना स्वीकार करना ईश-निंदा होगा।

यीशु के पुनरुत्थान के बाद, अनुयायियों ने थोमा से कहा कि उन्होंने प्रभु को देखा था (यूहन्ना 20:24-29)। थोमा ने कहा कि वह केवल तभी विश्वास करेगा जब तक वह उसके हाथों पर कीलों के निशान न देख ले और उसके पंजर में अपना हाथ न डाल ले। आठ दिनों बाद जब अनुयायी एक साथ कमरे में बंद थे तब यीशु अचानक उनके सामने प्रकट हुए। यीशु ने थोमा की ओर देखा और बोले “अपनी उंगलि यहाँ रखो और मेरे हाथों को देखो। अपने हाथ मेरी पसली के ज़ख़्मों में डालो।”

थोमा को और सबूत की ज़रूरत नहीं थी। उसने तत्काल विश्वास कर लिया और यीशु से बोला:

“मेरे प्रभु और मेरे परमेश्वर!”

थोमा ने परमेश्वर के रूप में यीशु की आराधना की! अगर यीशु परमेश्वर नहीं हैं, तो उन्हें निस्संदेह वहाँ थोमा को फटकार देना चाहिए था। लेकिन परमेश्वर के रूप में उनकी आराधना करने पर थोमा को फटकारने के बजाय यीशु ने उसकी सराहना की और कहा:

“तुम मानते हो क्योंकि तुमने मुझे देख लिया है। धन्य हैं वे जिन्होंने मुझे नहीं देखा और फिर भी मुझ पर विश्वास करते हैं।”

यीशु ने नौ दर्ज मौक़ों पर आराधना स्वीकार की। यहूदी धारणा के संदर्भ में, यीशु द्वारा उनकी आराधना की स्वीकृति उनके देवत्व के दावे के बारे में बहुत कुछ कहती है। लेकिन जब तक कि यीशु स्वर्ग पर नहीं उठा लिए गए थे उनके अनुयायी पूरी तरह से नहीं समझे थे। धरती छोड़ने से पूर्व उन्होंने अपने धर्मदूतों से कहा, “नए अनुयायियों को परमपिता के नाम में, पुत्र के नाम में और पवित्र आत्मा के नाम में बपतिस्मा दो” (मत्ती 28:19), इस प्रकार स्वयं और पवित्र आत्मा दोनों को परमपिता के स्तर पर रख दिया।[15]

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