वास्तविक यीशु कौन हैं?

यीशु के बारे में सत्य की खोज

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एक परमेश्वर

बाइबिल ने परमेश्वर को सृष्टिकर्ता के रूप में प्रकट किया है। वह अनंत, अनादि, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञाता, स्वयी, धर्मी, प्रेम करने वाला, न्याय करने वाला, और पवित्र है। उसने हमें अपनी छवि में और अपने आनंद के लिए पैदा किया। बाइबिल के अनुसार परमेश्वर ने हमें अपने साथ अनादि संबंध बनाने के लिए पैदा किया।

ईसा के 1500 वर्ष पहले जब परमेश्वर ने जलती झाड़ी के पीछे मूसा से बात की थी तब उसने स्वयं सिर्फ एक परमेश्वर होने की पुनःपुष्टि की थी। परमेश्वर ने मूसा को बताया कि उसका नाम यहोवा (मैं हूँ) है। (हम में से अधिकतर अंग्रेज़ी अनुवाद, जेहोवा या लॉर्ड से अधिक परिचित हैं।[6]) उसी समय से, यहूदी धर्म का बुनियादी धर्मग्रंथ (शेमा) निम्न हो गया है:

“इज़राइल के लोगों, ध्यान से सुनो: यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है।” (व्यवस्था विवरण 6:4)

यही वह एकेश्वरवादी आस्था की दुनिया है जिसमें यीशु ने प्रवेश किया, सेवा की, और ऐसे दावे किए जिसने सभी सुनने वालों को विस्मित कर दिया था। और रे स्टेडमेन के अनुसार यीशु इब्रानी धर्मग्रंथों के केंद्रीय विषय हैं।

“यहाँ, जीवित, श्वास लेने वाला यह वह व्यक्ति है जो मलाकी के माध्यम से प्रतीकों और उत्पत्ति की भविष्यवाणियों को संतुष्ट और पूरा करता है। जैसे-जैसे हम पूर्वविधान से नवविधान की ओर बढ़ते हैं हम पाते हैं कि एक व्यक्ति, नज़ारेथ का यीशु, दोनों विधानों का केंद्र बिंदु है।”[7]

परंतु यदि यीशु पूर्वविधान के पूरक हैं, तो उनके दावों को “यहोवा एक ही है” की पुष्टि करनी चाहिए, जिसकी शुरुआत उससे होनी चाहिए जो उन्होंने स्वयं को कहा था। आइये आगे देखें।

परमेश्वर का पवित्र नाम

जब यीशु ने अपनी सेवा आरंभ की, उनकी चमत्कारी और विलक्षण शिक्षा ने तत्काल ही उत्साह का एक उन्माद पैदा करते हुए बहुत भारी भीड़ को आकर्षित किया। जैसे-जैसे उनकी प्रसिद्धि आम जनता में बढ़ती गई, यहूदी अगुआ (फरीसियों, सदूकियों, और लेखकों) ने यीशु को खतरे की तरह देखना आरंभ कर दिया। अचानक ही वे उन्हें फंसाने का तरीका खोजने लगे।

एक दिन यीशु कुछ फरीसियों के साथ मंदिर में तर्क-वितर्क कर रहे थे, तभी अचानक उन्होंने उन लोगों से कहा कि मैं “संसार का प्रकाश हूँ।” इस दृश्य की कल्पना करना भी विचित्र है, जहाँ गलिली की तराई भूमि का एक बढ़ई यात्री, धर्म के इन सभी महारथियों को बताता है कि वह “संसार का प्रकाश है?” यहोवा को संसार का प्रकाश मानते हुए उन्होंने क्रोध में उत्तर दिया:

“तू अपनी साक्षी अपने आप दे रहा है, इसलिए तेरी साक्षी उचित नहीं है” (यूहन्ना 8:13 एनएलटी)।

तब यीशु ने उनसे कहा कि 2,000 वर्ष पहले इब्राहीम ने उन्हें पहले ही देख लिया था। उनकी प्रतिक्रिया अविश्वासपूर्ण थी:

“तुम अभी पचास बरस के भी नहीं हो। तुम कैसे कह सकते हो कि तुमने इब्राहीम को देखा लिया?” (यूहन्ना 8:57 एनएलटी)

फिर यीशु ने उन्हें और अधिक चकित किया:

“मैं तुमसे सत्य कहता हूँ इब्राहीम से पहले मैं था।” (यूहन्ना 8:58 एनएलटी)

अनपेक्षित रूप से, धर्म की किसी शैक्षिक उपाधि के बिना ही इस अवारा बढ़ई ने अनादि अस्तित्व होने का दावा किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने मैं हूँ पद (ईगो ऐमी)[8], परमेश्वर के पवित्र नाम का उपयोग अपने लिए किया! ये धार्मिक विशेषज्ञ यहोवा को एकमात्र परमेश्वर बताने वाले पूर्वविधान धर्मग्रंथों के साथ जीते और सांस लेते थे। वे यशायाह द्वारा कहे गए धर्मग्रंथ को जानते थे:

“केवल मैं ही परमेश्वर हूँ। मुझसे पहले कोई परमेश्वर नहीं हुआ और मेरे बाद भी कोई परमेश्वर नहीं होगा। मैं ही यहोवा हूँ, मेरे अतिरिक्त और कोई दूसरा उद्धारकर्ता नहीं है।” यशायाह 43:10, 11 एनएलटी)

यहूदी नेताओं ने यीशु की हत्या करने के लिए पत्थर उठा लिए चूंकि ईश-निंदा का दंड पत्थर मार कर मौत देना था। उन्होंने सोचा कि यीशु अपने आप को “परमेश्वर” कह रहे हैं। उसी समय यीशु कह सकते थे, “रुको! तुम लोगों ने मुझे गलत समझा—मैं यहोवा नहीं हूँ।” परंतु हत्या किए जाने के जोखिम के बावजूद यीशु ने अपने कथन को नहीं बदला।

लुईस ने उनके क्रोध की व्याख्या की:

“वे कहते हैं… ‘मैं एक परमेश्वर से उत्पन्न हुआ हूँ, इब्राहीम से पहले, मैं हूँ,’ और याद करो कि ‘मैं हूँ’ शब्द यहूदी में क्या थे। ये परमेश्वर के नाम थे, जिसे किसी भी मनुष्य को नहीं कहना चाहिए था और जिसे बोलने पर मौत मिलती थी।”[9]

कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि ये अकेला उदाहरण है। परंतु यीशु ने “मैं हूँ” का उपयोग कई अन्य अवसरों पर भी किया था। आइए यीशु के विलक्षण दावों पर अपनी प्रतिक्रिया की कल्पना करने का प्रयास करते हुए उनमें से कुछ को देखें:

  • “मैं संसार का प्रकाश हूँ” (यूहन्ना 8:12)
  • “मैं मार्ग, सत्य और जीवन हूँ” (यूहन्ना 14:6)
  • “परम पिता तक पहुँचने का मैं ही एकमात्र मार्ग हूँ” (यूहन्ना 14:6)
  • “मैं पुनरुत्थान और जीवन हूँ” (यूहन्ना 11:25)
  • “मैं अच्छा चरवाहा हूँ” (यूहन्ना 10:11)
  • “मैं द्वार हूँ” (यूहन्ना 10:9)
  • “मैं सजीव रोटी हूँ जो स्वर्ग से उतरी है” (यूहन्ना 06:51:00)
  • “मैं ही सच्ची दाखलता हूँ” (यूहन्ना 15:1)
  • “मैं अल्फ़ा और ओमेगा हूँ” प्रकाशित वाक्य 1:7,8)

लुईस के अनुसार, अगर ये दावे स्वयं परमेश्वर के नहीं थे, तो यीशु को पागल समझा गया होता। परंतु यीशु को जिस चीज़ ने उनके श्रोताओं के लिए विश्वसनीय बनाया वह उनके द्वारा किए गए रचनात्मक चमत्कार और उनकी विवेकी प्रमाणिक शिक्षा थी।

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