ईश्वर के नैतिक उपदेशों के प्रति विद्रोह
सी. एस. लुईस तर्क देते हैं कि हालाँकि हम लोगों में ईश्वर को जानने की इच्छा अंदर से ही प्रोग्राम किया गया है, हम अपने जन्म के साथ इसका विद्रोह आरंभ कर देते हैं।[7] लुईस स्वयं अपने ही उद्देश्यों की जाँच भी आरंभ करते हैं, जिससे उन्हें यह ज्ञात होता है कि उनमें स्वभावतः ही सही और गलत का फर्क करने की क्षमता थी।
लुईस ताज्जुब करते हैं कि सही और गलत के अंतर का विवेक कहाँ से आया। हम सब सही और गलत के विवेक अनुभव करते हैं जब हम हिटलर द्वारा साठ लाख यहूदियों को मार डालने, या किसी हीरो द्वारा किसी और के लिए अपने प्राण त्यागने के बारे में पढ़ते हैं। हम सहज रूप से ही जान जाते हैं कि झूठ बोलना और धोखा देना गलत है। यह मान्यता कि हम लोग अंदरूनी नैतिक नियम के साथ प्रोग्राम किए गए हैं ने पूर्व नास्तिक को इस निष्कर्ष पर पहुँचाया कि कोई एक नैतिक “कानून निर्माता” होना चाहिए।
वाकई, यीशु और धर्मग्रंथों दोनों के अनुसार, ईश्वर ने हमें पालन करने के लिए नैतिक नियम प्रदान किए हैं। और हम लोगों ने न केवल उनके साथ संबंध से पीठ मोड़ लिया है, हमने ईश्वर द्वारा स्थापित इन नैतिक कानूनों को भी तोड़ा है। हममे से अधिकतर टेन कमांडमेंट्स में से कुछ जानते हैं:
“झूठ न बोलें, चोरी नहीं करें, हत्या नहीं करें, व्यभिचार न करें” इत्यादि। यीशु ने इन सबका सार यह कहते हुए कहा कि हम सबको पूर्ण तल्लीनता के साथ ईश्वर से प्रेम करना चाहिए और अपने पड़ोसियों से स्वयं की तरह प्रेम करना चाहिए। इसलिए, पाप केवल हमारे द्वारा नियम भंग करना ही नहीं बल्कि सही कार्य करने में हमारी विफलता भी होता है।
ईश्वर ने ब्रह्मांड की रचना सभी चीज़ों का संचालन करने वाले नियमों के साथ की। वे अलंघनीय एवं अपरिवर्तनीय हैं। जब आइंस्टाइन ने E=MC2 फॉर्मूला निकाला तो उन्होंने नाभिकीय ऊर्जा के रहस्य को उजागर किया। सख्त परिस्थितियों में सही घटकों को एक साथ रखने से विशाल ऊर्जा उत्पन्न होती है। धर्मग्रंथ हमें बताते हैं कि ईश्वर के नैतिक कानून इससे जरा भी कम मान्य नहीं हैं, क्योंकि यह सीधे उनके चरित्र से उत्पन्न होता है।
पहले ही आदमी और औरत से, हम लोगों ने ईश्वर के नियमों का उल्लंघन किया, बावजूद इसके कि वे हमारे लिए सर्वोत्तम हैं। और हम लोग सही कार्य करने में असफल रहे हैं। हमें यह स्थिति पहले मनुष्य, आदम से विरासत में मिली है। बाइबिल इसे अवज्ञा, पाप कहता है जिसका अर्थ “लक्ष्य से भटकना” है, जैसे कोई तीरंदाज अपने नियत लक्ष्य से चूक जाता है। इस तरह हमारे पापों ने ईश्वर के साथ हमारे नियत संबंध को तोड़ा है। तीरंदाज के उदाहरण की तरह, हम अपने निर्माण के प्रयोजन के लक्ष्य से चूक गए।
पाप के कारण हमारे सभी संबंध टूट जाते हैं: मानव जाति अपने परिवेश से (विरक्ति), व्यक्ति का स्वयं अपने आप से (अपराध बोध एवं अपमान), लोगों का दूसरे लोगों से (युद्ध, हत्या), और लोगों को ईश्वर से (आध्यात्मिक मृत्यु)। चेन की कड़ियों की तरह, ज्योंही ईश्वर और मनुष्य के बीच पहली कड़ी टूटी, सभी निर्भर कड़ियाँ अलग-अलग हो गईं।
और हम लोग टूट गए। जैसा कैन वेस्ट इल्जाम लगाते हैं, “और मुझे नहीं लगता कि मैं अपने गलतियों को ठीक करने के लिए कुछ कर सकता हूँ…मैं ईश्वर से बात करना चाहता हूँ परंतु मैं भयभीत हूँ, क्योंकि हमने काफी समय से बातचीत नहीं की…” वेस्ट के गीत हमारे जीवन में पापों के कारण होने वाले वियोग के बारे में बोलते हैं। और बाइबिल के अनुसार, यह वियोग किसी रैप गीत के बोल से बहुत ज्यादा है। यह एक घातक परिणाम है।
हमारे पापों ने हमें अपने ईश्वर के प्रेम से अलग कर दिया है
हमारे विद्रोह (पाप) ने ईश्वर और हमारे बीच अलगाव की एक दीवार बना दी है (यशयाह 59:2 देखें)। धर्मग्रंथों में, “वियोग” का अर्थ आध्यात्मिक मृत्यु है। और आध्यात्मिक मृत्यु का अर्थ ईश्वर के प्रकाश और जीवन से पूर्णतः अलग हो जाना है।
“लेकिन एक मिनट रुकिए,” आप कह सकते हैं। “क्या ईश्वर को यह सब हमें बनाने से पहले नहीं पता था?
वे यह क्यों नहीं देख पाए कि उनकी योजना असफलता के लिए अभिशप्त थी?” निस्संदेह, सर्वज्ञ ईश्वर को पता होना चाहिए था हम लोग विद्रोह करेंगे और पाप में लिप्त होंगे। वास्तव में, यह हमारी विफलता है कि हमें उनकी योजना इतना हक्का-बक्का कर देने वाली लगती है। इसी कारण ईश्वर मनुष्य के रूप में धरती पर आए। और इससे भी अधिक अविश्वसनीय—उनकी मृत्यु का अनूठा कारण है।