क्या विज्ञान और ईसाई धर्म सुसंगत हैं?
ऑक्सफोर्ड से नास्तिक रिचर्ड डॉकिंस और प्रसिद्ध आनुवांशिकी विज्ञानी फ्रांसिस कोलिंस ने टाइम पत्रिका के प्रदर्शित लेख में ईश्वर बनाम विज्ञान विषय पर वाद-विवाद किया।[1] मुद्दा यह था कि क्या विज्ञान और ईश्वर में आस्था सुसंगत है।
द गॉड डेल्युज़न के लेखक, डॉकिंस यह तर्क देते हैं कि विज्ञान की नई खोजों के कारण ईश्वर में आस्था अप्रासंगिक हो रही है। मानव आनुवांशिक ब्लूप्रिंट बनाने में 2400 वैज्ञानिकों का नेतृत्व करने वाले एक ईसाई, कोलिंस, इसे दूसरी तरह से देखते हैं और यह बताते हैं कि ईश्वर और विज्ञान दोनों में विश्वास करना पूर्ण रूप से तर्कसंगत है।
हालाँकि बाइबिल स्पष्ट रूप से बताती है कि ईश्वर ने ब्रह्मांड का निर्माण किया परंतु यह इस बारे में कुछ भी नहीं बताती कि उसने यह कैसे किया। तथापि ईश्वर के न्यायसंगत और व्यक्तिगत होने के इसके संदेश ने कोपेरनिकस, गैलीलियो, न्यूटन, पास्कल और फैराडे जैसे वैज्ञानिकों को गहराई से प्रभावित किया। उन्हें यह विश्वास था कि संसार की रचना ज्ञानवान ईश्वर द्वारा की गई है जिसके द्वारा उनमें वैज्ञानिक अवलोकन और प्रयोग में आत्मविश्वास पैदा हुआ।
ईसाइयों के समान ये वैज्ञानिक सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञाता रचयिता को मानते थे जो यद्यपि प्राकृतिक नियमों से बंधा नहीं था तब भी ब्रह्मांड में इनका इस्तेमाल करने का निर्णय लिया। ये उत्कृष्ट पुरुष और महिलाएं हमारे आस-पास की दुनिया को ईश्वर की रचना मानते थे, उससे मंत्रमुग्ध थे और उसके पीछे के रहस्यों का पता लगाने का प्रयास करते थे।
यीशु और सृजन
यीशु के प्रत्यक्षदर्शी हमें बताते हैं कि वे प्रकृति के नियमों पर निरंतर अपनी रचनात्मक शक्ति का प्रदर्शन किया करते थे। नवविधान हमें बताता है कि यीशु मनुष्य बनने से पहले, अनंतकाल से ही अपने परमपिता के साथ स्वर्ग में विद्यमान थे। यहूदियों के लेखक समेत धर्मदूत यूहन्ना और पौलुस यीशु का वर्णन रचयिता के रूप में करते हैं। पौलुस कुलुस्सियों को कहते हैं:
“वह अदृश्य परमेश्वर का दृश्य रूप है। वह सारी सृष्टि का सिरमौर है। क्योंकि जो कुछ स्वर्ग में है और धरती पर है उसी की शक्ति से उत्पन्न हुआ है। कुछ भी चाहे दृश्यमान हो चाहे अदृश्य, चाहे सिंहासन हो चाहे राज्य, चाहे कोई शासक हो चाहे अधिकारी, सबकुछ उसी के द्वारा रचा गया है और उसी के लिए रचा गया है। सबसे पहले उसी का अस्तित्व था, उसी की शक्ति से सब वस्तुएं बनी रहती हैं।” कुलुस्सियों 1:15-17 जे.बी. फिलिप्स
जब पौलुस कहते हैं कि “शून्य से जीवन का आरंभ उनके [यीशु] माध्यम से हुआ,” तो वह एक ऐसा बयान दे रहे थे जिसका उस समय कोई वैज्ञानिक समर्थन नहीं था। वास्तव में वैज्ञानिकों का यह विचार था कि पदार्थ हमेशा से ही किसी न किसी रूप में मौजूद था।
भौतिकवादियों ने तर्क किया कि अगर पदार्थ हमेशा से मौजूद था, तो फिर कभी निर्माण हुआ ही नहीं था। इसने नास्तिक कार्ल सेगन को अंतर्राष्ट्रीय टीवी पर यह घोषणा करने की प्रेरणा दी कि “ब्रह्मांड ही सब कुछ है या कभी था या कभी रहेगा।”[2]
सेगन का भौतिकवादी विश्वदर्शन और ईसाई विश्वदर्शन दोनों ही एक साथ सही नहीं हो सकते। प्रश्न यह है कि, “क्या विज्ञान हमारी उत्पत्ति पर कोई प्रकाश डालता है”? तो हम किस पर विश्वास करें? यही वह प्रश्न था जिसका सामना सत्रह वर्षीय जेफ़ स्मिथ कर रहा था।
जेफ़ परेशान था।एक कैंप में उसने सुना कि ईसा मसीह पापों के लिए क्षमा और शाश्वत जीवन प्रदान करते हैं।इससे भी अधिक, उसने पाया कि यीशु ने हमें अर्थवान, उद्देश्य, और आशा पूर्ण जीवन जीने के लिए बनाया है।अपने जीवन में पहली बार जेफ़ ने यह महसूस किया की वह यहाँ पृथ्वी पर क्यों है।वह अपने पापों के लिए क्षमा चाहता था, और वह अपने जीवन का एक अर्थ और उद्देश्य चाहता था।
परंतु जेफ़ को बौद्धिक संघर्ष करना पड़ा।वह विश्वास करना चाहता था कि यीशु वास्तव में हैं, परंतु वह विज्ञान से प्रेम करता था।उसने सोचा, “क्या सृजन और विज्ञान दोनों में विश्वास करना संभव है?”
जेफ़ और दूसरे ऐसे लोगों के लिए एक सुसमाचार है जो ईश्वर और विज्ञान दोनों में विश्वास करना चाहते हैं।
पिछले कुछ दशकों में अनेक अग्रणी वैज्ञानिकों ने हैरान करने वाले ऐसे नए प्रमाणों के बारे में सार्वजनिक तौर पर बताया जो सृजन के बाइबिल के विचार का समर्थन करते हैं। और इनमें से अनेक वैज्ञानिकों की निजी रूप से ईश्वर में कोई आस्था नहीं है।
तो ऐसा कौन सा प्रमाण है कि जिसने अनेक वैज्ञानिकों को अचानक सृष्टिकर्ता की बातें करने पर मजबूर किया है? उन प्रश्नों के उत्तर के लिए हमें खगोल-विज्ञान और आणविक जीव-विज्ञान में हुई हाल की खोजों पर दृष्टि डालने की ज़रूरत है जिनमें प्रमाण स्वयं बोलेंगे। [अधिक गहराई से अध्ययन करने के लिए, www.y-Origins.com पर लेखों को पढ़ें।]
एक मुश्त उत्पत्ति
पूरे मानव इतिहास में व्यक्ति विस्मित रूप से तारों को टकटकी लगाकर देखता रहा है और यह विचारता रहा कि वे क्या हैं और वहाँ कैसे पहुँचे। हालाँकि किसी साफ रात में हम केवल 6,000 तारों को ही देख पाते हैं जिनमें से अरबों तारे करोड़ों आकाशगंगाओं में फैले हुए हैं।
हालाँकि, 20वीं सदी से पहले अधिकतर वैज्ञानिक यह मानते थे कि हमारी आकाशगंगा ही संपूर्ण ब्रह्मांड थी और मात्र दस करोड़ तारे ही विद्यमान थे। उस दौरान भी प्रचलित मत यह था कि हमारा भौतिक जगत हमेशा से विद्यमान था।
परंतु 20वीं सदी के आरंभ में खगोलज्ञ एडविन हबल ने खोज की कि वस्तुतः ब्रह्मांड की एक शुरुआत थी। आरंभ एक “आरंभ करने वाले” की ओर संकेत करता है जिसका खुलासा बाइबिल ने दृढ़ता से किया था। सर फ्रेड होएल जैसे संबंधित भौतिकवादियों ने विस्फोट को व्यंग्यात्मक रूप से “बिग बैंग” कहते हुए एक मुश्त उत्पत्ति के विचार का उपहास किया। हालाँकि, उत्पत्ति हेतु प्रमाण बढ़ते गए। अंततः 1992 में, COBE उपग्रह परीक्षणों ने प्रमाणित कर दिया कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति वास्तव में एक मुश्त थी।[3] संदेही व्यक्ति ज़बरदस्त प्रमाणों के कारण शांत हो गए। बेहतर नाम के अभाव में, इस उत्पत्ति को होएल के दिए नाम “द बिग बैंग” से जाना जाने लगा। (“उत्पत्ति पर वापस” देखें)
कई वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया कि उत्पत्ति की यह खोज, पूर्वविधान के उत्पत्ति वृत्तांत से मेल खाती है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि सृजन से पहले पदार्थ और ऊर्जा विद्यमान नहीं हो सकते थे। इसलिए, कई सदीयों के भ्रमात्मक विश्वास के पश्चात् विज्ञान भी बाइबिल से सहमत हुआ कि हर चीज़ शून्य से उत्पन्न हुई।
कुछ वैज्ञानिकों को बाइबिल की इस पुष्टि से बहुत समस्या थी और उन्होंने अन्य स्पष्टीकरण ढ़ूंढे। हालाँकि, COBE प्रयोग के प्रभारी नोबेल पुरस्कार विजेता अनीश्वरवादी वैज्ञानिक, जॉर्ज स्मूट के समान अन्य मानते हैं कि:
“इसमें कोई संशय नहीं कि घटना के रूप में बिग बैंग और शून्य से उत्पत्ति की ईसाई धारणा के बीच समानता मौजूद है।”[4]
COBE प्रयोग और आइंस्टाइन के सिद्धांत दोनों ब्रह्मांड के एक मुश्त सृजन की पुष्टि करते हैं, एक दृष्टिकोण जिसे बाइबिल ने 3500 वर्षों से बनाए रखा है।
जीवन हेतु अच्छी तरह समायोजित
भौतिकवादियों के लिए एक मुश्त सृजन घटना के प्रमाण को स्वीकार करना काफी मुश्किल था। लेकिन हमारे ब्रह्मांड के बारे में और अधिक चौंकाने वाली खोज सामने आने वाली थीं।
वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि जीवन के अस्तित्व के लिए, प्रकृति के प्रत्येक नियमों को एकदम सटीक रूप से समायोजित होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, गुरुत्वाकर्षण और प्रकृति की अन्य शक्तियों को बहुत ही संकीर्ण मापदंड के भीतर मापना पड़ा होगा अन्यथा हमारे ब्रह्मांड का अस्तित्व नहीं हो सकता था। अगर सृजन करने वाली शक्ति कमज़ोर होती तो गुरुत्वाकर्षण सारे पदार्थों को वापस “बड़े क्रंच” में खींच लेता। अगर यह अधिक मज़बूत होती तो तारे और आकाशगंगाओं का निर्माण न होता।
उसी प्रकार, हमारे सौर मंडल और ग्रहों को भी जीवन के अस्तित्व के लिए बिल्कुल सही होना चाहिए। उदाहरण के लिए, हम सब मानते हैं कि ऑक्सीजन वाले वायुमंडल के बगैर हममें से कोई भी सांस नहीं ले सकता था। और ऑक्सीजन के बिना, जल का अस्तित्व नहीं होता। जल के बगैर हमारी फ़सलों के लिए वर्षा नहीं होती। हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, सोडियम, कार्बन, कैल्शियम और फ़ोसफ़ोरस जैसे अन्य तत्व भी जीवन के लिए आवश्यक हैं।
हमारे ग्रहों, सूर्य और चांद के आकार और प्रकृति भी बिल्कुल सही होने चाहिए। और भी दर्जनों अन्य स्थितियाँ हैं जिन्हें विशिष्ट तरीके से समायोजित होना चाहिए था अन्यथा हम यह सब विचारने के लिए यहाँ मौजूद नहीं होते।[5]
ईश्वर में आस्था रखने वाले वैज्ञानिक ऐसे समायोजन की अपेक्षा कर सकते थे, लेकिन आस्था न रखने वाले ऐसे असाधारण “संयोग” की व्याख्या करने में असमर्थ थे। अनीश्वरवादी सैद्धांतिक भौतिकविज्ञानी स्टीफ़न हॉकिंस लिखते हैं:
“अनूठा तथ्य यह है कि जीवन का विकास संभव बनाने के लिए इन संख्याओं के मान बहुत अच्छी तरह से समायोजित किए गए प्रतीत होते हैं।”[6]
वैज्ञानिकों ने इस बात का मूल्यांकन किया कि क्या ऐसा असाधारण समायोजन संयोगवश होने की संभावना हो सकती है। सट्टा लगाने वालों को पता होता है कि लंबे शॉट से भी अंततः रेस ट्रैक पर जीता जा सकता है। तो, संयोगवश जीवन के अस्तित्व के ख़िलाफ कितनी संभावनाएं हैं? अधिकतर वैज्ञानिकों के अनुसार हम लोगों के संयोगवश होने की संभावना असंभव है।
ब्रह्मांड विज्ञानियों ने संयोगवश जीवन की संभावनाओं की तुलना पृथ्वी से प्लूटो पर एक छोटे लक्ष्य पर तीर चलाने और लक्ष्य भेदने से की। यदि ऐसा कमाल संभव हो तो आवश्यक अभियांत्रिकी की कल्पना करें। ऐसी संभावनाओं की तुलना प्रत्येक के लिए केवल एक टिकट खरीदने के बाद सौ से अधिक पावरबॉल लॉटरियाँ जीतने से की जाने योग्य है। असंभव—बशर्ते परिणाम किसी के द्वारा गुप्त रूप से निर्धारित न कर दिया गया हो। और अनेक वैज्ञानिक यही निष्कर्ष निकाल रहे हैं—किसी ने गुप्त रूप से ब्रह्मांड की रूपरेखा तैयार की और इसका निर्माण किया।
ये अविश्वसनीय संभावनाएँ महज किसी संयोग और काल द्वारा सिद्ध होने से बहुत दूर हैं। ब्रह्मांड की हमारी इस नई समझ ने जॉर्ज ग्रींसटाइन जैसे खगोलज्ञों को यह पूछने के लिए प्रेरित किया:
“क्या यह संभव है कि अचानक बगैर किसी इरादे के हम लोगों को परमेश्वर के अस्तित्व का वैज्ञानिक प्रमाण मिल गया?”[7]
कुछ भौतिकवादियों ने ब्रह्मांड के सटीक समायोजन का वर्णन एक संयोग के रूप में करने का प्रयास किया। हालाँकि, अन्य लोग यथार्थवाद के प्रति अधिक उदार हैं। एक प्रतिबद्ध अनीश्वरवादी सर फ़्रेड होएल रचयिता के प्रमाण मिलने पर अचंभित होते हुए कहते हैं:
“व्यावहारिक बुद्धि में तथ्यों की विवेचना बताती है कि किसी परम ज्ञान ने भौतिकी समेत रसायन शास्त्र और जीव-विज्ञान के साथ छेड़छाड़ की और यह कि प्रकृति में बात करने योग्य कोई निर्मूल शक्ति नहीं है।”[8]
आइंस्टाइन भी इसी निष्कर्ष पर पहुँचे। हालाँकि आइंस्टाइन धार्मिक व्यक्ति नहीं थे और किसी व्यक्तिगत ईश्वर पर विश्वास नहीं करते थे, उन्होंने ब्रह्मांड के पीछे के रचयिता के बारे में विचार किया और यह कहा कि “इंसानों के सभी सुव्यवस्थित विचार एवं कार्यों से इतनी श्रेष्ठ बुद्धिमता की तुलना बिल्कुल निरर्थक प्रतिबिम्ब प्रतीत होती है।”[9]
वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड के निर्माण के पीछे कौन है इसकी व्याख्या के लिए अपनी खोज को जारी रखा है। लेकिन जितनी गहराई में वे जाते हैं हमारे ब्रह्मांड के अवर्णनीय उद्गम और इसके शानदार समायोजन से वे उतने ही विस्मित हो जाते हैं।
डीएनए:जीवन की भाषा
यद्यपि बाइबिल हमें बताता है कि यीशु ने प्रत्येक जीवन का निर्माण किया परंतु इसके बारे में कुछ नहीं बताया कि उन्होंने यह कैसे किया। हालाँकि, अब सृजन के कुछ रहस्यों की खोज होने लगी है।
उदाहरण के लिए, पिछली अर्ध सदी में, वैज्ञानिकों ने डीएनए नामक एक बहुत ही छोटे अणु के बारे में जाना जो हमारे और अन्य सभी जीवित प्राणियों के शरीरों की प्रत्येक कोशिका के पीछे का “मस्तिष्क” है। इसके बावजूद जितना अधिक वे डीएनए के बारे में पता लगाते हैं, वे इसके पीछे की उत्कृष्टता से उतने ही ज़्यादा विस्मित हो जाते हैं।
हालाँकि विकासवादियों का मानना है कि डीएनए का विकास प्राकृतिक चयन के माध्यम से हुआ, उनके पास इस बात का कोई उत्तर नहीं है कि ऐसा जटिल अणु महज़ एक संयोग से किस प्रकार बना होगा। डीएनए की जटिलता ने इसके सह-खोजकर्ता, फ़्रांसिस क्रिक को यह मानने पर मजबूर किया कि यह पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से कभी उत्पन्न नहीं हो सकता था। विकासवादी क्रिक का मानना था कि जीवन इतना जटिल है कि यह किसी बाह्य स्थान से आया होगा, उन्होंने लिखा:
“व र्तमान में उपलब्ध सभी जानकारी से लैस एक ईमानदार व्यक्ति ही यह कह सकता है कि कुछ मायनों में, वर्तमान में जीवन का उद्गम एक चमत्कार प्रतीत होता है, शर्तें इतनी सारी हैं कि इसके आरंभ होने से पहले उन सबको पूरा करना पड़ेगा।”[10]
डीएनए के पीछे का कूटलेखन ऐसा ज्ञान प्रकट करता है जो कल्पना को अचंभे में डाल देता है। इस ज्ञान की महज़ पिन के सिरे जितनी जानकारी इतनी सारी पत्रावरणबद्ध पुस्तकों के ढेर की जानकारी में समाविष्ट है जो 5,000 बार पृथ्वी को घेरा लगा देगी। और डीएनए, स्वयं के अपने एक जटिल सॉफ़्टवेयर कोड के साथ एक भाषा के रूप में संचालित होता है। माइक्रोसॉफ़्ट के संस्थापक बिल गेट्स कहते हैं कि डीएनए का सॉफ़्टवेयर “हम लोगों द्वारा अब तक विकसित किसी भी सॉफ़्टवेयर के मुकाबले बहुत, बहुत अधिक जटिल है।”[11]
भौतिकवादियों का मानना है कि यह जटिलता प्राकृतिक चयन के माध्यम से उत्पन्न हुई। फिर भी, जैसा कि क्रिक टिप्पणी करते हैं, प्राकृतिक चयन प्रथम अणु का निर्माण भी नहीं कर सकता है। चूँकि प्राकृतिक चयन समेत कोई भी वैज्ञानिक प्रक्रिया, डीएनए के उद्गम की व्याख्या नहीं कर सकती, अनेक वैज्ञानिक मानते हैं कि इसे अवश्य ही डिज़ाइन किया गया होगा।
डीएनए को रचयिता के प्रमाण के रूप में देखना ईसाइयों के लिए स्वाभाविक है। लेकिन 50 वर्षों तक ईश्वर के विरोध में शिक्षा देने और वाद-विवाद करने के बाद किसी प्रख्यात नास्तिक के लिए, विशेष रूप से भौतिकवादियों के लिए अपने दृष्टिकोण बदलना भूकंपीय प्रभाव की एक घटना होगी।
फिर भी दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक, एंटनी फ़्लीव के साथ बिल्कुल यही हुआ। पचास वर्षों से विश्वविद्यालय की कक्षाओं, पुस्तकों और उपदेशों में नास्तिकता का ढिंढोरा पीटने के बाद, फ़्लीव की नास्तिकता, डीएनए के पीछे के ज्ञान के बारे में जानने के बाद अप्रत्याशित रूप से समाप्त हो गई। फ़्लीव बताते हैं कि वे अब नास्तिक क्यों नहीं हैं:
“मेरे ख्याल से डीएनए सामग्री ने जो हमें दिखाया है वह यह है कि इन असाधारण भिन्न प्रकार के तत्वों को इकट्ठा करने में ज्ञान की ज़रूरत पड़ी होगी। अत्यंत जटिलता मुझे ज्ञान का कार्य प्रतीत होता है जिसके कारण परिणाम प्राप्त हुए….मुझे अब ऐसा प्रतीत होता है कि डीएनए के पचास वर्षों से अधिक के शोध ने डिज़ाइन के पक्ष में नए और सशक्त तर्क हेतु सामग्री प्रदान की है।”[12]
हालाँकि फ़्लीव ईसाई नहीं हैं, वे अब मानते हैं कि डीएनए के पीछे का “सॉफ़्टवेयर” इतना जटिल है कि यह बिना किसी “डिज़ाइनर” के उत्पन्न नहीं हो सकता। और फ़्लीव निस्संदेह अकेले नहीं हैं। डीएनए के पीछे के अविश्वसनीय ज्ञान की खोज ने अनेक पूर्व अनीश्वरवादियों और नास्तिकों को यह भरोसा दिला दिया कि हमारे ब्रह्मांड में जीवन कोई आकस्मिक घटना नहीं है।
किसी डिज़ाइनर के फ़िंगरप्रिंट
सारांश में, हाल की तीन वैज्ञानिक खोजों ने हमें भरोसा दिलाया कि किसी बुद्धिमान डिज़ाइनर ने हमारे ब्रह्मांड का नियोजन और निर्माण दोनों किया है:
ब्रह्मांड की उत्पत्ति और इसके नियम
जीवन को संभव बनाने वाले प्रकृतिक नियमों का अविश्वसनीय संयोजन
डीएनए की गूढ़ जटिलता
तो अग्रणी वैज्ञानिक इन असाधारण खोजों के बारे में क्या कह रहे हैं? दुनिया के अग्रणी सैद्धांतिक भौतिकविज्ञानी के रूप में पहचाने जाने वाले स्टीफ़न हॉकिंस, पूछते हैं,
यह क्या है जो समीकरणों में जान फूँकता है और उनका वर्णन करने के लिए ब्रह्मांड की रचना करता है? गणितीय मॉडल बनाने के विज्ञान की सामान्य पद्धति इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकती कि मॉडल की व्याख्या के लिए ब्रह्मांड को क्यों होना चाहिए।[13]
गहराई के साथ विचार करने पर, हॉकिंस कहते हैं, “इसका कोई धार्मिक संकेत होना चाहिए। परंतु मुझे लगता है कि अधिकतर वैज्ञानिक इसके धार्मिक पहलू से कतराते हैं।”[14] और इसके बावजूद कि अनेक वैज्ञानिक इन नई खोजों के धार्मिक संबंध से कतराते हैं फिर भी बढ़ती संख्या में लोग स्वीकार करने लगे हैं कि डिज़ाइनर के फ़िंगरप्रिंट पर अब ध्यान केंद्रित होने लगा है। (देखें कि अग्रणी वैज्ञानिक क्या कह रहे हैं: http://www.y-origins.com/index.php?p=quotes)
यह वास्तविकता है कि अनेक वैज्ञानिक अब ईश्वर के बारे में खुल कर बोलने लगे हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि फ़्लीव जैसे सभी भौतिकवादी अपने नास्तिकतावादी विचारों को त्यागने लगे हैं। असल में, रिर्चड डॉकिंस जैसे अनेक व्यक्ति ईश्वर में आस्था के प्रति और अधिक आक्रामक हो रहे हैं। इसके बावजूद, जब कोई ब्रह्मांड की उत्पत्ति के संबंध में प्रामाणिकता और डीएनए की गूढ़ जटिलता को निष्पक्ष रूप से देखता है, तब भी अनेक गैर-ईसाई वैज्ञानिक यह स्वीकार करते हैं किसी डिज़ाइनर के “फ़िंगरप्रिंट” के प्रमाण पर ध्यान केंद्रित हो रहा है।
डा. रॉबर्ट जेस्ट्रो ऐसे ही एक वैज्ञानिक हैं। जेस्ट्रो एक सैद्धांतिक भौतिकवैज्ञानिक हैं जो 1958 में हुए नासा के गठन के समय से इससे जुड़े हुए हैं। जेस्ट्रो ने अपोलो के चंद्रमा पर उतरने के दौरान चंद्रमा पर खोज करने का वैज्ञानिक लक्ष्य स्थापित करने में सहायता की थी। उन्होंने नासा के गोडार्ड अंतरिक्ष अध्ययन संस्थान की स्थापना की और उसका निर्देशन किया, यह संस्थान खगोल विज्ञान और ग्रह विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान करता है। एक अनीश्वरवादी, जेस्ट्रो ने निम्न विचार लिखे, जो अनेक वैज्ञानिकों के मतों के समान हैं:
“जो वैज्ञानिक तर्क की शक्ति पर अपने विश्वास के साथ जीवन जीता रहा हो, उसके लिए कहानी एक बुरे सपने की तरह समाप्त होती है। उसने अनभिज्ञता के पर्वतों पर चढ़ाई कर ली; एक अंतिम चट्टान पर पहुँचते ही वह सबसे ऊंची चोटी को फतह करने ही वाला होता है, कि उसका स्वागत धर्मशास्त्रियों के एक समूह से होता है जो वहाँ सदियों से बैठे रहे हैं।”[15]
अनीश्वरवादी के रूप में जेस्ट्रो के इस निष्कर्ष के पीछे कोई ईसाई एजेंडा नहीं है। वे केवल यह टिप्पणी करते हैं कि ब्रह्मांड की एक मुश्त उत्पत्ति संबंधी बाइबिल के मत की अंततः विज्ञान द्वारा पुष्टि हो गई है। और यह “उत्पत्ति” कोई संयोगवश विस्फोट की घटना नहीं थी, बल्कि बहुत बारीक योजनाबद्ध घटना थी जिसने मानवीय जीवन को संभव बनाया। यह निष्कर्ष स्पष्ट रूप से बाइबिल के इस कथन से मेल खाता है कि “आरंभ में ईश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी का निर्माण किया”।
अगर बाइबिल सही है, और परमेश्वर मौजूद है, तो हम कैसे जान सकते हैं कि वह कैसा है? क्या उसने हमसे व्यक्तिगत रूप से बातचीत की? ईसा मसीह के प्रत्यक्षदर्शी हमें बताते हैं कि उन्होंने एक वास्तविक ईश्वर का पूर्ण रूप से प्रतिनिधित्व करने का दावा किया था। और हालाँकि कई अन्य कहते हैं कि वे ईश्वर की तरफ से बोलते हैं, यीशु के अनुयायी हमें बताते हैं कि उन्होंने अपने दावे का समर्थन किया।
परंतु क्या यीशु ने कोई प्रमाण दिया कि वे ईश्वर की ओर से बोलते हैं? उन्होंने कथित रूप से चमत्कारी कार्य किए जिसके लिए रचनात्मक ऊर्जा की ज़रूरत पड़ती थी। हालाँकि, सबसे नाटकीय चमत्कार उनका मृत्यु से पुनरुत्थान था। इतिहास में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसकी मृत्यु हुई हो, तीन दिन तक वह दफन रहा हो और फिर वह जीवित हो गया हो। अगर यह सत्य है, तो ईसा मसीह ने पर्याप्त प्रमाण दे दिए हैं कि उनके शब्द वास्तव में ईश्वर के ही शब्द हैं।
क्यायीशुवास्तवमेंमृत्युसेवापसलौटआएथे?
धर्मदूत पौलुस हमें बताते हैं कि मृत्यु से जीवन का आरंभ ईसा मसीह के माध्यम से हुआ। ईसा मसीह के प्रत्यक्षदर्शी वास्तव में इस प्रकार बोलते और कार्य करते थे जैसे कि उन्हें विश्वास था कि यीशु सूली चढ़ाए जाने के बाद वास्तव में मृत्यु से वापस लौट आए थे। यदि वे गलत थे तो ईसाई धर्म एक झूठ की नींव पर बना है। परंतु अगर वे सही थे, तो ऐसा चमत्कार उन सब बातों को सिद्ध करेगा जो उन्होंने परमेश्वर, स्वयं, और हम लोगों के बारे में कहा था।
परंतु क्या हमें ईसा मसीह के पुनरुत्थान को केवल आस्था के रूप में मानना चाहिए या इसका कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण भी है? अनेक संशयवादी व्यक्तियों ने पुनरुत्थान की बातों को गलत साबित करने के लिए ऐतिहासिक रिकॉर्ड की पड़ताल आरंभ कर दी। उन्होंने क्या पता लगाया?
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क्या जीवन का कोई उद्देश्य है?
रचयिता के प्रमाण हमें उस प्रश्न की ओर ले जाते हैं कि हमारे लिए उनका उद्देश्य क्या है। उन्होंने हमें क्यों बनाया? नवविधान का उत्तर यह है कि ईश्वर हमारे साथ एक निजी संबंध चाहते हैं और वह संबंध ईसा मसीह के माध्यम से है। हमें यह दिखाने के लिए ब्रह्मांड का रचयिता एक व्यक्ति बना कि ईश्वर कैसा दिखता है और हमें उनकी संतान बनना संभव किया। पृथ्वी पर हमारे उद्देश्य के बारे यीशु क्या कहते हैं इसके बारे में जानने के लिए, “क्या यीशु आज प्रासंगिक हैं?” देखें।
इस लेख की प्रतिलिपि और वितरण हेतु अनुमति:गैर-लाभकारी उपयोग के लिए लिखित स्वीकृति के बिना प्रतिलिपि बनाने और बांटने के लिए प्रकाशक अनुदान अनुमति। बगैर लिखित अनुमति के इसका कोई हिस्सा परिवर्तित या संदर्भ के बाहर उपयुक्त नहीं किया जा सकता है। Y-Origins और Y-Jesus पत्रिका की मुद्रित प्रतियाँ निम्न स्थान से ऑर्डर की जा सकती हैं: www.JesusOnline.com/product_page
© 2010 JesusOnline Ministries. यह लेख, ब्राइट मीडिया फाउंडेशन एंड बीएंडएल पब्लिकेशन की पत्रिका Y-Jesus का अनुपूरक है: लैरी चैपमेन, मुख्य संपादक। ईसा मसीह के प्रमाण संबंधित अन्य लेखों के लिए, www.y-jesus.com देखें।