क्या यीशु ने परमेश्वर होने का दावा किया?
कई लोग ईसा मसीह को एक अच्छे इंसान या एक महान पैगम्बर के रूप में स्वीकार करना चाहते हैं और तर्क देते हैं कि यीशु ने कभी परमेश्वर होने का दावा किया ही नहीं। जो लोग उनके ईश्वरत्व का खंडन करते हैं वे उन ग्रंथों की ओर इशारा करते हैं जिनमें उनकी इस धारणा का आधार है कि यीशू ने कभी भी परमेश्वर के रूप में स्वयं की आराधना कराने का प्रयास नहीं किया था।
हालांकि प्रमाण यह बताते हैं कि धर्मदूतों के समय से ही यीशु को परमेश्वर के रूप में पूजा जाता था। धर्मदूतों की मृत्यु के पश्चात् प्रथम और द्वितीय शताब्दी के गिरजे के कई अगुआ ने यीशु के ईश्वरत्व के बारे में लिखा था। अंततः 325 ईसवी में गिरजा की अगुआई ने इस मत को व्यक्त किया कि यीशु पूर्ण रूप से परमेश्वर हैं।
कुछ लोग तर्क देते हैं कि गिरजा ने ईसा चरित के वृत्तांतों को फिर से लिख कर यीशु के ईश्वरत्व का “आविष्कार” किया था। असल में, विश्व की सबसे अधिक बिकने वाली काल्पनिक पुस्तक द डा विंची कोड ने इसका दावा करते हुए चार करोड़ से अधिक पुस्तकें बेचीं (देखें “क्या कोई डा विंची साजिश थी?”)। हालांकि इस पुस्तक ने इसके लेखक डैन ब्राउन को मालामाल कर दिया था परंतु उनके काल्पनिक वृत्तांत को विद्वानों ने एक खराब इतिहास के रूप में खारिज कर दिया। वास्तव में, नवविधान को “सभी प्रचीन ऐतिहासिक दस्तावेज़ों में सबसे अधिक विश्वसनीय” माना गया है (देखें, “क्या ईसा चरित सत्य हैं?”)[1]
इस लेख में हम जांचेंगे कि ईसा मसीह ने स्वयं के बारे में क्या कहा था। “मनुष्य का पुत्र,” और “परमेश्वर का पुत्र” से यीशु का क्या अभिप्राय था?” अगर यीशु परमेश्वर नहीं थे तो उनके शत्रुओं ने उन पर “ईश निंदा” का आरोप क्यों लगाया था? अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर यीशु परमेश्वर नहीं थे तो उन्होंने अपनी आराधना करवाना क्यों स्वीकार किया?
आइये पहले संक्षिप्त रूप से देखें कि ईसा मसीह के बारे में ईसाईयों की क्या धारणा है।
विधाता से बढ़ई तक?
ईसाई धर्म की मूल धारणा यह है कि परमेश्वर ने अपने पुत्र, ईसा मसीह के रूप में धरती पर अवतार लिया। बाइबिल यह शिक्षा देती है कि यीशु को फरिश्तों के रूप में नहीं बल्कि विश्व के सच्चे विधाता के रूप में पैदा किया गया था। जैसा कि धर्मशास्त्री जे. आई. पैकर लिखते हैं, “ईसा चरित हमें बताते हैं कि हमारा विधाता हमारा उद्धारकर्ता बन गया।”[2]
नवविधान यह बताता है कि परमपिता की इच्छा के अनुसार यीशु ने एक छोटा असहाय शिशु बनने के लिए अपनी शक्ति और महिमा को थोड़े समय के लिए छोड़ दिया। बड़े होने के बाद यीशु ने बढ़ई की दुकान में काम किया, भूख, थकान की अनुभूति की और पीड़ा का सामना किया और हमारी ही तरह उनकी मृत्यु हो गई। फिर 30 की उम्र में उन्होंने सार्वजनिक सेवा प्रारंभ कर दी।
एक परमेश्वर
बाइबिल ने परमेश्वर को सृष्टिकर्ता के रूप में प्रकट किया है। वह अनंत, अनादि, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञाता, स्वयी, धर्मी, प्रेम करने वाला, न्याय करने वाला, और पवित्र है। उसने हमें अपनी छवि में और अपने आनंद के लिए पैदा किया। बाइबिल के अनुसार परमेश्वर ने हमें अपने साथ अनादि संबंध बनाने के लिए पैदा किया।
ईसा के 1500 वर्ष पहले जब परमेश्वर ने जलती झाड़ी के पीछे मूसा से बात की थी तब उसने स्वयं सिर्फ एक परमेश्वर होने की पुनःपुष्टि की थी। परमेश्वर ने मूसा को बताया कि उसका नाम यहोवा (मैं हूँ) है। (हम में से अधिकतर अंग्रेज़ी अनुवाद, जेहोवा या लॉर्ड से अधिक परिचित हैं।[6]) उसी समय से, यहूदी धर्म का बुनियादी धर्मग्रंथ (शेमा) निम्न हो गया है:
“इज़राइल के लोगों, ध्यान से सुनो: यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है।” (व्यवस्था विवरण 6:4)
यही वह एकेश्वरवादी आस्था की दुनिया है जिसमें यीशु ने प्रवेश किया, सेवा की, और ऐसे दावे किए जिसने सभी सुनने वालों को विस्मित कर दिया था। और रे स्टेडमेन के अनुसार यीशु इब्रानी धर्मग्रंथों के केंद्रीय विषय हैं।
“यहाँ, जीवित, श्वास लेने वाला यह वह व्यक्ति है जो मलाकी के माध्यम से प्रतीकों और उत्पत्ति की भविष्यवाणियों को संतुष्ट और पूरा करता है। जैसे-जैसे हम पूर्वविधान से नवविधान की ओर बढ़ते हैं हम पाते हैं कि एक व्यक्ति, नज़ारेथ का यीशु, दोनों विधानों का केंद्र बिंदु है।”[7]
परंतु यदि यीशु पूर्वविधान के पूरक हैं, तो उनके दावों को “यहोवा एक ही है” की पुष्टि करनी चाहिए, जिसकी शुरुआत उससे होनी चाहिए जो उन्होंने स्वयं को कहा था। आइये आगे देखें।
परमेश्वर का पवित्र नाम
जब यीशु ने अपनी सेवा आरंभ की, उनकी चमत्कारी और विलक्षण शिक्षा ने तत्काल ही उत्साह का एक उन्माद पैदा करते हुए बहुत भारी भीड़ को आकर्षित किया। जैसे-जैसे उनकी प्रसिद्धि आम जनता में बढ़ती गई, यहूदी अगुआ (फरीसियों, सदूकियों, और लेखकों) ने यीशु को खतरे की तरह देखना आरंभ कर दिया। अचानक ही वे उन्हें फंसाने का तरीका खोजने लगे।
एक दिन यीशु कुछ फरीसियों के साथ मंदिर में तर्क-वितर्क कर रहे थे, तभी अचानक उन्होंने उन लोगों से कहा कि मैं “संसार का प्रकाश हूँ।” इस दृश्य की कल्पना करना भी विचित्र है, जहाँ गलिली की तराई भूमि का एक बढ़ई यात्री, धर्म के इन सभी महारथियों को बताता है कि वह “संसार का प्रकाश है?” यहोवा को संसार का प्रकाश मानते हुए उन्होंने क्रोध में उत्तर दिया:
“तू अपनी साक्षी अपने आप दे रहा है, इसलिए तेरी साक्षी उचित नहीं है” (यूहन्ना 8:13 एनएलटी)।
तब यीशु ने उनसे कहा कि 2,000 वर्ष पहले इब्राहीम ने उन्हें पहले ही देख लिया था। उनकी प्रतिक्रिया अविश्वासपूर्ण थी:
“तुम अभी पचास बरस के भी नहीं हो। तुम कैसे कह सकते हो कि तुमने इब्राहीम को देखा लिया?” (यूहन्ना 8:57 एनएलटी)
फिर यीशु ने उन्हें और अधिक चकित किया:
“मैं तुमसे सत्य कहता हूँ इब्राहीम से पहले मैं था।” (यूहन्ना 8:58 एनएलटी)
अनपेक्षित रूप से, धर्म की किसी शैक्षिक उपाधि के बिना ही इस अवारा बढ़ई ने अनादि अस्तित्व होने का दावा किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने मैं हूँ पद (ईगो ऐमी)[8], परमेश्वर के पवित्र नाम का उपयोग अपने लिए किया! ये धार्मिक विशेषज्ञ यहोवा को एकमात्र परमेश्वर बताने वाले पूर्वविधान धर्मग्रंथों के साथ जीते और सांस लेते थे। वे यशायाह द्वारा कहे गए धर्मग्रंथ को जानते थे:
“केवल मैं ही परमेश्वर हूँ। मुझसे पहले कोई परमेश्वर नहीं हुआ और मेरे बाद भी कोई परमेश्वर नहीं होगा। मैं ही यहोवा हूँ, मेरे अतिरिक्त और कोई दूसरा उद्धारकर्ता नहीं है।” यशायाह 43:10, 11 एनएलटी)
यहूदी नेताओं ने यीशु की हत्या करने के लिए पत्थर उठा लिए चूंकि ईश-निंदा का दंड पत्थर मार कर मौत देना था। उन्होंने सोचा कि यीशु अपने आप को “परमेश्वर” कह रहे हैं। उसी समय यीशु कह सकते थे, “रुको! तुम लोगों ने मुझे गलत समझा—मैं यहोवा नहीं हूँ।” परंतु हत्या किए जाने के जोखिम के बावजूद यीशु ने अपने कथन को नहीं बदला।
लुईस ने उनके क्रोध की व्याख्या की:
“वे कहते हैं… ‘मैं एक परमेश्वर से उत्पन्न हुआ हूँ, इब्राहीम से पहले, मैं हूँ,’ और याद करो कि ‘मैं हूँ’ शब्द यहूदी में क्या थे। ये परमेश्वर के नाम थे, जिसे किसी भी मनुष्य को नहीं कहना चाहिए था और जिसे बोलने पर मौत मिलती थी।”[9]
कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि ये अकेला उदाहरण है। परंतु यीशु ने “मैं हूँ” का उपयोग कई अन्य अवसरों पर भी किया था। आइए यीशु के विलक्षण दावों पर अपनी प्रतिक्रिया की कल्पना करने का प्रयास करते हुए उनमें से कुछ को देखें:
- “मैं संसार का प्रकाश हूँ” (यूहन्ना 8:12)
- “मैं मार्ग, सत्य और जीवन हूँ” (यूहन्ना 14:6)
- “परम पिता तक पहुँचने का मैं ही एकमात्र मार्ग हूँ” (यूहन्ना 14:6)
- “मैं पुनरुत्थान और जीवन हूँ” (यूहन्ना 11:25)
- “मैं अच्छा चरवाहा हूँ” (यूहन्ना 10:11)
- “मैं द्वार हूँ” (यूहन्ना 10:9)
- “मैं सजीव रोटी हूँ जो स्वर्ग से उतरी है” (यूहन्ना 06:51:00)
- “मैं ही सच्ची दाखलता हूँ” (यूहन्ना 15:1)
- “मैं अल्फ़ा और ओमेगा हूँ” प्रकाशित वाक्य 1:7,8)
लुईस के अनुसार, अगर ये दावे स्वयं परमेश्वर के नहीं थे, तो यीशु को पागल समझा गया होता। परंतु यीशु को जिस चीज़ ने उनके श्रोताओं के लिए विश्वसनीय बनाया वह उनके द्वारा किए गए रचनात्मक चमत्कार और उनकी विवेकी प्रमाणिक शिक्षा थी।
मनुष्य का पुत्र
कुछ कहते हैं कि यीशु ने मैं हूँ नाम इस नीयत से नहीं लिया था कि वे परमेश्वर हैं। वे तर्क देते हैं कि यीशु ने स्वयं का उल्लेख “मनुष्य क पुत्र”, के रूप में किया जो यह प्रमाणित करता है कि उन्होंने देवत्व का दावा नहीं किया था। तो “मनुष्य के पुत्र” पद से संदर्भ क्या है और उसका मतलब क्या है?”
पैकर लिखते हैं कि “मनुष्य का पुत्र” नाम ने यशायाह 53 [10] की मसीही भविष्यवाणियों को पूरा करने वाले एक उद्धारक-राजा के रूप में यीशु की भूमिका का उल्लेख किया। यशायाह 53, आने वाले मसीहा का सबसे विस्तृत पैगम्बरी अंश है और स्पष्ट रूप से उन्हें पीड़ितों के उद्धारक के रूप में दर्शाता है। यशायाह ने मसीह का उल्लेख “सामर्थी परमेश्वर,” “पिता-चिर अमर” शांति का राजकुमार” के रूप में भी किया था, यशायाह 9:6)।
इसके अतिरिक्त, कई विद्वान कहते हैं कि “मनुष्य के पुत्र” के बारे में दानिय्येल की भविष्यवाणी के पूरक के रूप में यीशु स्वयं का उल्लेख कर रहे थे। दानिय्येल यह भविष्यवाणी करता है कि “मनुष्य के पुत्र” को मनुष्य के ऊपर अधिकार दिया जाएगा और वह आराधना स्वीकार करेगा:
“मैंने देखा मेरे सामने कोई खड़ा है जो मनुष्य जैसा था, वह आकाश के बादलों पर आ रहा था। वह उस सनातन राजा के सामने आया था सो उसको उसके सामने ले आया गया। उसे अधिकार, महिमा और संपूर्ण शासन मिलेगा, सभी लोग, सभी जातियां और प्रत्येक भाषा-भाषी लोग उसकी आराधना करेंगे।” (दानिय्येल 7:13, 14)
तो यह “मनुष्य का पुत्र” कौन है और उसकी आराधना क्यों की जाती है, जबकि आराधना केवल परमेश्वर ही की होनी चाहिए। यीशु ने अपने अनुयायियों से कहा था कि जब वे धरती पर वापस आएँगे, “तभी वे मनुष्य के पुत्र को अपनी शक्ति और महान महिमा के साथ बादलों पर आते देखेंगे” (लूका 21:27)। क्या यहाँ यीशु यह कह रहे हैं कि वे दानिय्येल की भविष्यवाणी के पूरक हैं?
परमेश्वर का पुत्र
यीशु ने “परमेश्वर का पुत्र” होने का दावा भी किया था। उपाधि का यह मतलब नहीं है कि यीशु परमेश्वर की जैविक संतान हैं। ना ही शब्द “पुत्र” का तात्पर्य हीनता से है कि मानवीय पुत्र अपने पिता के तत्व से कुछ हीन है। एक पुत्र अपने पिता का डीएनए साझा करता है और यद्यपि वह भिन्न है लेकिन दोनों पुरुष हैं। विद्वान कहते हैं कि शब्द “परमेश्वर का पुत्र” मूल भाषाओं में अनुरूपता, या “समान श्रेणी” का उल्लेख करता है। यीशु का इससे मतलब है कि उनके पास दिव्य तत्व हैं, या 21वीं शताब्दी के शब्दों में “परमेश्वर का डीएनए” है। प्राध्यापक पीटर क्रीफ्ट वर्णन करते हैं।
“यीशु द्वारा स्वयं को ‘परमेश्वर का पुत्र’ कहने से उनका क्या तात्पर्य है? मनुष्य का पुत्र मनुष्य होता है। (‘पुत्र’ और ‘मनुष्य’ दोनों का पारंपरिक भाषा में अर्थ समान रूप से पुरुष और महिला होता है।) वानर का पुत्र वानर होता है। कुत्ते का बच्चा कुत्ता होता है। शार्क की संतान शार्क होती है। और इसलिए परमेश्वर का पुत्र परमेश्वर है। ‘परमेश्वर का पुत्र’ एक दैवीय उपाधि है।”[11]
यूहन्ना 17 में यीशु संसार के आरंभ से पहले की उस महिमा के बारे में बताते हैं जो उन्होंने और परम पिता ने साझा की थी। परंतु क्या स्वयं को “परमेश्वर का पुत्र” कह कर यीशु परमेश्वर के समान होने का दावा करते हैं? पैकर उत्तर देते हैं:
इसलिए, जब बाइबिल यीशु को परमेश्वर के पुत्र के रूप में घोषित करती है, तो कथन का मतलब उनके िस्व्यं परमेश्वर होने का दावा है।”[12]
इसलिए, यीशु जिन नामों का उपयोग अपने लिए करते हैं वे इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि वे परमेश्वर के साथ समानता का दावा कर रहे थे। परंतु क्या यीशु ने परमेश्वर के अधिकार के साथ कुछ बोला और कोई कार्य किया?
पापों को क्षमा करना
यहूदी धर्म में पापों को क्षमा करना केवल परमेश्वर का अधिकार था। क्षमाशीलता हमेशा से निजी रही है; कोई अन्य व्यक्ति अपराधी के लिए क्षमाशील नहीं हो सकता, विशेष रूप से तब जब अपराधी, परमेश्वर हो। परंतु कई अवसरों पर यीशु ने पापियों को क्षमा करने का कार्य इस तरह किया जैसे कि वे परमेश्वर थे। क्रोध से भरे धर्म के अगुआ यीशु पर भड़क उठे जब यीशु ने उनके सामने ही लकवा ग्रस्त व्यक्ति के पापों को क्षमा कर दिया।
“उनको सुनने वाले लेखकों ने इसे ईश-निन्दा कहा! परमेश्वर के सिवाय कौन पापों को क्षमा कर सकता है” (मरकुस 2:7)!
लुईस यीशु को सुनने वाले व्यक्तियों की हैरानी भरी प्रतिक्रिया की कल्पना करते हैं:
‘इसके बाद असली झटका लगा,’ लुईस ने लिखा: ‘इन यहूदियों के बीच अचानक एक ऐसा व्यक्ति आ जाता है जो इस प्रकार बात करता है जैसे वह स्वयं परमेश्वर हो। वह पापों को क्षमा करने का दावा करता है। वह कहता है कि वह हमेशा से मौजूद था। वह कहता है कि अंत में वह दुनिया का निर्णय करने वाला है। अब आइये इसे स्पष्ट करें। भारतीयों की तरह सर्वेश्वरवादियों में कोई भी यह कह सकता है कि वह परमेश्वर का अंश था, या परमेश्वर के साथ था… परंतु चूंकि यह व्यक्ति एक यहूदी था इसका अर्थ इस प्रकार का परमेश्वर नहीं हो सकता। उनकी भाषा में परमेश्वर का अर्थ था जो इस दुनिया से बाहर है, जिसने यह दुनिया बनाई और जो किसी भी अन्य चीज़ से अनंत रूप से पृथक हो। और जब आप यह समझ जाते हैं तो आप पाएँगे कि इस व्यक्ति ने जो कहा था, उससे अधिक चौंकाने वाली बात किसी भी मनुष्य द्वारा कभी नहीं की गई।’[13]
परमेश्वर के साथ एकात्मकता का दावा
जिन लोगों ने यीशु को सुना, उन्होंने उनकी नैतिक उत्कृष्टता को देखा, उन्हें चमत्कार करते हुए देखा, और सोचा कि कहीं वे ही बहुप्रतीक्षित मसीहा तो नहीं थे। अंततः उनके विरोधियों ने उन्हें मंदिर में घेर लिया, और पूछा:
“तू हमें कब तक तंग करता रहेगा? अगर तू मसीहा हो तो साफ-साफ बता।”
यीशु ने उत्तर दिया, “वे काम जिन्हें मैं परम पिता के नाम पर कर रहा हूँ, स्वयं मेरी साक्षी हैं।” उन्होंने यह कहते हुए अपने अनुयायियों की तुलना भेड़ों से की, “मैं उन्हें अनंत जीवन प्रदान करता हूँ और उनका कभी नाश नहीं हगा।” फिर उन्होंने ज़ाहिर किया कि “परम पिता सबसे महान है,” और उनके कार्य “परम पिता के निर्देश पर ही हुए।” यीशु की नम्रता शांति देने वाली होना चाहिए थी। लेकिन फिर यीशु ने उन्हें यह कहते हुए बम फोड़ दिया कि (यूहन्ना 10:25-30)
“मेरे परम पिता और मैं एक हैं।”
अगर यीशु का तात्पर्य यह था कि वे परमेश्वर के साथ सहमत हैं, तो इतनी तीव्र प्रतिक्रिया नहीं होती। लेकिन, यहूदियों ने फिर से उन्हें मारने के लिए पत्थर उठा लिए। फिर यीशु ने उनसे कहा, “परम पिता की ओर से मैंने लोगों की मदद के लिए अनेक अच्छे कार्य दिखाए हैं। उनमें से किस अच्छे कार्य के लिए तुम मुझ पर पथराव करना चाहते हो?”
उन्होंने उत्तर दिया, “हम तुझ पर किसी अच्छे कार्य के लिए पथराव नहीं कर रहे हैं बल्कि इसलिए कर रहे हैं कि तूने ईश-निंदा की है और तू केवल एक मनुष्य होते हुए अपने आप को परमेश्वर घोषित कर रहा है” (यूहन्ना 10:33)।
जब यीशु सूली पर अपनी आगामी मृत्यु और विदाई के लिए अपने अनुयायियों को तैयार कर रहे थे, तो थोमा जानना चाहता था कि वे कहां जा रहे हैं और वहां जाने का रास्ता क्या है। यीशु ने थोमा को जवाब दिया:
“मैं ही मार्ग, सत्य और जीवन हूँ। बिना मेरे द्वारा कोई भी परम पिता के पास नहीं आता। यदि तूने मुझे जान लिया होता तो तू परमपिता को भी जानता। अब तू उसे जानता है और उसे देख भी चुका है।” (यूहन्ना 14:5-9)
वे चकरा गए थे। फिर फिलिप्पुस ने यीशु से कहा कि “हमें परमपिता दिखा दें।” यीशु इन झटका देने वाले शब्दों के साथ फिलिप्पुस का जवाब देते हैं:
“फिलिप्पुस, तुम अब तक नहीं जान पाए कि मैं कौन हूँ, बावजूद इसके कि मैं इतने लंबे समय से तुम्हारे साथ हूँ? जिस किसी ने भी मुझे देखा है उसने परमपिता को देखा है!”
यीशु प्रभावी हो कर कह रहे थे, “फिलिप्पुस, अगर तुम परम पिता को देखना चाहते हो, तो मुझे देखो!” यूहन्ना 17 में यीशु बताते हैं कि परमपिता के साथ उनकी एकात्मकता अनंत काल से है, “दुनिया की शुरूआत के पहले से।” यीशु के अनुसार, ऐसा कभी नहीं हुआ जब उन्होंने परमेश्वर की महिमा और उनका सार को अपने साथ साझा नहीं किया हो।
परमेश्वर का सत्ता
यहूदियों ने हमेशा से परमेश्वर को परम सत्ता माना। रोम अधिकृत इज़राइल में सत्ता एक भली-भांति समझा गया शब्द था। उस दौरान, सीज़र का राजादेश फौज को तत्काल युद्ध में धकेल सकता था, अपराधियों की निंदा या उन्हें रिहा कर सकता था और सरकार के कानून और नियम को स्थापित कर सकता था। वास्तव में, सीज़र की सत्ता कुछ ऐसी थी कि वह स्वयं देवत्व का दावा करता था।
पृथ्वी छोड़ने से पहले, यीशु ने अपनी सत्ता के प्रसार का वर्णन किया:
“यीशु ने कहा, ‘स्वर्ग में और पृथ्वी पर संपूर्ण अधिकार मुझे सौंपे गए हैं’” मत्ती 28:18, एनएलटी)।
इन असाधारण शब्दों में, यीशु न केवल धरती पर बल्कि स्वर्ग में भी सर्वोच्च सत्ता होने का दावा करते हैं। जॉन पाइपर कहते हैं,
“इसीलिए यीशु के मित्र और शत्रु उनके वचनों और कार्यों के कारण बार-बार विचलित हो जाते थे। वह किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह सड़क पर चल रहे होते, फिर मुड़ते और कुछ यूँ कहते, ‘अब्राहम से पहले, मैं था।’ या, ‘यदि तुमने मुझे देख लिया, तो तुमने परमपिता को देख लिया।’ या, ईश-निंदा का आरोप लगने के बाद बहुत शांतिपूर्वक कहते, ‘मनुष्य के पुत्र को धरती पर पापों को क्षमा करने का अधिकार है।’ मृतकों को वे साधारणतः कहते थे, ‘प्रकट हो,’ या ‘उठो।’ और वे लोग आज्ञापालन करते। समुद्र के तूफान को वे कहते, ‘शांत हो जाओ।’ और पावरोटी को वे कहते, ‘हजारों भोजन बन जाओ।’ और ऐसा तत्काल हो जाता था।”[14]
कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि चूंकि सत्ता उनके परमपिता से आई है तो इसका यीशु के परमेश्वर होने से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन परमेश्वर कभी अपनी सत्ता किसी बनाए गए जीव को इस कारण नहीं देते कि उन्हीं की आराधना होने लगे। ऐसा करना उनके आदेश का उल्लंघन करना होगा।
आराधना स्वीकार करना
इब्रानी धर्मग्रंथों में इस बात से ज़्यादा बुनियादी और कुछ नहीं है कि केवल परमेश्वर की ही आराधना की जानी चाहिए। वास्तव में, दस आदेश में से पहला है,
“तुम्हें मेरे अतिरिक्त किसी अन्य देवता को नहीं मानना चाहिए” (निर्गमन 20:3 NLT)।
इस प्रकार, किसी यहूदी द्वारा हो सकने वाला सबसे घोर पाप यह होगा कि वह किसी अन्य जीव की परमेश्वर के रूप में आराधना करे या उसे स्वीकार करे। इसलिए यदि यीशु परमेश्वर नहीं थे तो आराधना स्वीकार करना ईश-निंदा होगा।
यीशु के पुनरुत्थान के बाद, अनुयायियों ने थोमा से कहा कि उन्होंने प्रभु को देखा था (यूहन्ना 20:24-29)। थोमा ने कहा कि वह केवल तभी विश्वास करेगा जब तक वह उसके हाथों पर कीलों के निशान न देख ले और उसके पंजर में अपना हाथ न डाल ले। आठ दिनों बाद जब अनुयायी एक साथ कमरे में बंद थे तब यीशु अचानक उनके सामने प्रकट हुए। यीशु ने थोमा की ओर देखा और बोले “अपनी उंगलि यहाँ रखो और मेरे हाथों को देखो। अपने हाथ मेरी पसली के ज़ख़्मों में डालो।”
थोमा को और सबूत की ज़रूरत नहीं थी। उसने तत्काल विश्वास कर लिया और यीशु से बोला:
“मेरे प्रभु और मेरे परमेश्वर!”
थोमा ने परमेश्वर के रूप में यीशु की आराधना की! अगर यीशु परमेश्वर नहीं हैं, तो उन्हें निस्संदेह वहाँ थोमा को फटकार देना चाहिए था। लेकिन परमेश्वर के रूप में उनकी आराधना करने पर थोमा को फटकारने के बजाय यीशु ने उसकी सराहना की और कहा:
“तुम मानते हो क्योंकि तुमने मुझे देख लिया है। धन्य हैं वे जिन्होंने मुझे नहीं देखा और फिर भी मुझ पर विश्वास करते हैं।”
यीशु ने नौ दर्ज मौक़ों पर आराधना स्वीकार की। यहूदी धारणा के संदर्भ में, यीशु द्वारा उनकी आराधना की स्वीकृति उनके देवत्व के दावे के बारे में बहुत कुछ कहती है। लेकिन जब तक कि यीशु स्वर्ग पर नहीं उठा लिए गए थे उनके अनुयायी पूरी तरह से नहीं समझे थे। धरती छोड़ने से पूर्व उन्होंने अपने धर्मदूतों से कहा, “नए अनुयायियों को परमपिता के नाम में, पुत्र के नाम में और पवित्र आत्मा के नाम में बपतिस्मा दो” (मत्ती 28:19), इस प्रकार स्वयं और पवित्र आत्मा दोनों को परमपिता के स्तर पर रख दिया।[15]
अल्फ़ा और ओमेगा
जब धर्मदूत यूहन्ना पटमोस द्वीप में देश निकाला पर थे, यीशु ने उसे स्वप्न में अंतिम दिनों में होने वाली घटनाओं के बारे में बताया। यूहन्ना स्वप्न में देखे गए निम्नलिखित अविश्वसनीय दृश्य का वर्णन करते हैं:
“देखो! वे स्वर्ग के बादलों पर आते हैं। और हर कोई उन्हें देखेगा—वे भी जिन्होंने उन्हें छेदा था…. ‘मैं अल्फ़ा और ओमेगा हूँ—आरंभ और अंत,’ प्रभु परमेश्वर कहते हैं। ‘मैं ही हूँ जो है, जो हमेशा था, और जो आगे आएगा, सर्वशक्तिमान।’” तो यह कौन व्यक्ति है जिसे “अल्फ़ा और ओमेगा”, “प्रभु परमेश्वर,” “सर्वशक्तिमान”कहा जाता है? हमें बताया जाता है कि उन्हें “छेद दिया गया” था। यह स्पष्ट कर देता है कि अल्फ़ा और ओमेगा यीशु है। उन्हें ही सूली पर छेद दिया गया था।
अन्य अनुयायियों के मुकाबले में यीशु के ज़्यादा करीब, यूहन्ना, उनसे बात करने वाले व्यक्ति की छवि देखते हैं। वे लिखते हैं:
“और दीपकों के बीच मनुष्य का पुत्र खड़ा था….उसका सर और उसके केश ऊन की तरह उजले, बर्फ की तरह सफेद थे। और उसकी आंखें अग्नि की लपटों की तरह चमक रही थीं….और उसका चेहरा सूर्य के समान चमक रहा था (प्रकाशित वाक्य 1:13, 14, 16b)।
यूहन्ना की उन भावनाओं को समझना असंभव है जब वे सूर्य के समान चमकते व्यक्ति को देखते हैं, जिसकी आंखें अग्नि की लपटों की तरह चमक रही थीं। वे तत्काल उस व्यक्ति के सामने मृत व्यक्ति की तरह गिर पड़े। यदि यह व्यक्ति यीशु थे, तो यूहन्ना ने उन्हें क्यों नहीं पहचाना? शायद उन्हें लगा कि वह कोई फरिश्ता है? आइये यूहन्ना के शब्दों को सुनें।
“फिर उसने अपना दाहिना हाथ रखते हुए कहा, ‘डर मत! मैं ही आदि और मैं ही अंत भी हूँ। मैं ही वह जीवित हूँ जो मर गया था। देख, मैं अब सदा-सर्वदा के लिए जीवित हूँ’” (प्रकाशना 1:17)!
यूहन्ना से बात करने वाले ने स्वयं को “आदि और अंत” कहा जो उसकी अनंतता का एक स्पष्ट उल्लेख है। और चूंकि केवल परमेश्वर ही अनंत हैं, उसे परमेश्वर होना चाहिए। लेकिन उसी वाक्य में वे यूहन्ना से कहते हैं कि वे ही “जीवित है जो मर गया था।” ऐसा हम जानते हैं कि वह परमपिता परमेश्वर नहीं हो सकता क्योंकि परमपिता का कभी मनुष्य की तरह अंत नहीं हुआ।
“और मैंने एक विशाल श्वेत सिंहासन को देखा और मैंने उसे भी देखा जो उस पर विराजमान था….और उस सिंहासन पर बैठने वाले ने मुझसे फिर बोला… ‘मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूँ—मैं ही आदि हूँ और अंत हूँ।’” (प्रकाशित वाक्य 20:11; 21:6)
ये प्रभु ईसा मसीह हैं जो विशाल श्वेत सिंहासन से शासन करते हैं। यीशु ने पहले ही अपने अनुयायियों से कहा था कि वे मनुष्य के अंतिम न्यायकर्ता होंगे। उन्होंने भरोसा दिलाया कि जो उन पर आस्था रखेगा उसे पाप के निर्णय से बख़्श दिया जाएगा, लेकिन उन्हें अस्वीकार करने वालों के बारे में फैसला सुनाया जाएगा।
निष्कर्ष
तो क्या यीशु ने कभी परमेश्वर होने का दावा किया, या उन्हें गलत समझा गया। आइये यीशु के अन्य दावों पर नज़र डालें और पूछें: अगर यीशु परमेश्वर नहीं थे तो क्या वे ऐसा विलक्षण दावा करते?
- यीशु ने अपने लिए परमेश्वर के नाम का उपयोग किया
- यीशु ने स्वयं को “मनुष्य का पुत्र” कहा
- यीशु ने स्वयं को “परमेश्वर का पुत्र” कहा
- यीशु ने पाप को क्षमा करने का दावा किया
- यीशु ने परमेश्वर के साथ एकात्मकता का दावा किया
- यीशु ने पूर्ण सत्ता का दावा किया
- यीशु ने आराधना स्वीकार की
- यीशु ने स्वयं को “अल्फ़ा और ओमेगा” कहा
कुछ लोग कह सकते हैं, “हम यीशु के दावों पर कैसे विश्वास करें? उन्होंने क्या सबूत छोड़ा है? सूली पर चढ़ाए जाने के तीन दिन बाद उनके अनुयायियों ने दावा किया कि उन्होंने उन्हें जीवित देखा। अगर उनकी कहानी गलत थी तो इसे तब ही खत्म हो जाना चाहिए था जब रोम ने उन्हें मनुष्यों की समझ में सबसे भयानक यातना दी। लेकिन उनका दृढ़ निश्चय और निष्कपटता ने रोम को हरा दिया औ दुनिया को परिवर्तित कर दिया (“क्या यीशु मृत्यु के बाद फिर से जीवित हो उठे थे?” देखें)। लुईस उनके दृढ़ निश्चय के बारे में बताते हैं:
“क्या है जो समय और अंतराल से परे है, जो अनिर्मित है, अनंत है, जो प्रकृति में अवतरित हुए, स्वयं के ब्रह्मांड में उतरे, और पुनः जीवित हो गए।”[16]
इस प्रतिभाशाली विद्वान ने पहले यीशु को बहुत हद तक प्राचीन यूनान और रोम के मानव-निर्मित देवताओं की तरह मिथक मान लिया था। लेकिन जब उन्होंने ईसा मसीह के प्रमाणों की खोज प्रारंभ की तब उन्हें पता चला कि ईसा मसीह के बारे में नवविधान के वृत्तांत ठोस, ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित हैं। इस पूर्व संशयवादी व्यक्ति ने ईसा मसीह के प्रमाण हेतु अपनी खोज को निम्न विचारों के साथ समाप्त किया:
“आपको अपना चुनाव करना पड़ेगा: या तो यह व्यक्ति परमेश्वर का पुत्र था, और है: या कोई पागल व्यक्ति या कुछ और खराब…. परंतु उनके बारे में मानव जाति का महान गुरु जैसी कोई निरर्थक अवधारणा न बनाएं। उन्होंने हमें इस बारे में उन्मुक्त नहीं छोड़ा है।”[17]
लुईस को पता लगा कि यीशु के साथ उनके निजी संबंध ने उनके जीवन को एक अर्थ, उद्देश्य और ऐसी खुशी प्रदान की जो उनकी सारे महत्वाकांक्षाओं से परे थी। उन्होंने कभी अपने निर्णय पर अफसोस नहीं किया और ईसा मसीह के लिए अग्रणी प्रवक्ता बन गए। आपने क्या किया? क्या आपने अपना निर्णय लिया?
“यीशु क्यों?” आलेख में आपके लिए यीशु के संदेशों के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें
“क्या धर्मदूत यीशु को परमेश्वर मानते थे?”
अगर यीशु परमेश्वर हैं, तो हम उनके निकटतम शिष्यों के लिखित कथनों में उनके ईश्वरत्व की घोषणा करने की अपेक्षा करते हैं। ईसाई धर्म अपनी आस्था को यीशु के ही सत्य शब्दों में उनके देवत्व पर संस्थापित करता है।
उनकी धारणाओं और शिक्षाओं के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
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© 2010 JesusOnline Ministries. यह लेख, ब्राइट मीडिया फाउंडेशन एंड बीएंडएल पब्लिकेशन की पत्रिका Y-Jesus का अनुपूरक है: लैरी चैपमेन, मुख्य संपादक। ईसा मसीह के प्रमाण संबंधित अन्य लेखों के लिए, www.y-jesus.com देखें।