क्या यीशु आज प्रासंगिक हैं?
अनेक लोगों का विचार है कि यीशु हमें धार्मिक बनाना चाहते हैं। वे सोचते हैं कि यीशु हमारे जीवन से सभी खुशियाँ वापस लेने आए, और हमें जीवनयापन हेतु असंभव नियम दिए। वे उन्हें भूतकाल के महान नेता मानने को तैयार हैं, परंतु कहते हैं कि वे आज उनके जीवन में प्रासंगिक नहीं हैं।
जोश मैकडोवेल एक कॉलेज विद्यार्थी थे,जिसका मानना था कि यीशु केवल एक धार्मिक नेता थे जिन्होंने जीवन जीने के लिए असंभव नियम निर्धारित किए। उसका मानना था कि यीशु उनके जीवन में बिल्कुल ही प्रासंगिक नहीं थे।
फिर एक दिन स्टूडेंट यूनियन लंच टेबल पर वह कान्तिमान मुस्कान वाली साथ पढ़ने वाली एक लड़की के बगल बैठा। कौतूहलवश उसने उस लड़की से पूछा कि वह इतनी खुश क्यों है। उस लड़की का तत्काल उत्तर था, “ईसा मसीहा!”
ईसा मसीहा? मैकडोवेल गुस्से से भर गया, और पलट कर बोला:
“हे भगवान, अब मुझे यह बकवास मत सुनाओ।मैं धर्म से उब गया हूँ; मैं चर्च से उब गया हूँ; मैं बाइबिल से उब गया हूँ।मुझे धर्म के बारे में बकवास मत सुनाओ।”
लेकिन उस अविचलित लड़की ने शांतिपूर्वक बताया,
“मिस्टर, मैंने कोई धर्म नहीं कहा, मैंने ईसा मसीह कहा।”
मैकडोवेल भौंचक्का रह गया। उसने कभी यीशु को एक धार्मिक नेता से ज्यादा नहीं माना, और धार्मिक पाखंड का जरा भी हिस्सा नहीं चाहता था। फिर भी यह आनंदित ईसाई औरत यीशु के बारे में इस प्रकार बात कर रही थी जैसे उसने उसकी जीवन को एक अर्थ प्रदान किया हो।
यीशु ने हमारे अस्तित्व से संबंधित सभी गूढ़ प्रश्नों का उत्तर देने का दावा किया। कभी न कभी, हम सब अपने जीवन के उद्देश्य के बारे में प्रश्न करते हैं। क्या आपने कभी गहरी काली शाम में तारों को देखा और उत्सुक हुए कि उन्हें वहाँ किसने रखा? या कभी आपने सूर्यास्त देखा और जीवन के बड़े प्रश्नों के बारे में सोचा:
• “मैं कौन हूँ?”
• “मैं यहाँ क्यों हूँ?”
• “मैं मृत्यु के बाद कहाँ जाऊँगा?”
हालाँकि अन्य दार्शनिकों और धार्मिक नेताओं ने जीवन के अर्थ के बारे में उत्तर दिया है, केवल यीशु ने मृत्यु पश्चात् फिर से जीवित हो कर अपने प्रत्यायकों को साबित किया। मैकडोवेल जैसे संशयवादियों को, जिन्होंने पहले यीशु के पुनरुत्थान का उपहास किया, इसके घटित होने के अकाट्य प्रमाण मिले।
यीशु वास्तविक अर्थ सहित जीवन प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि जीवन केवल धन कमाने, मौज करने, सफल होने और अंततः कब्र में जाने के अलावा बहुत कुछ है। फिर भी, कई लोग प्रसिद्धि और सफलता में इसका अर्थ खोजने का प्रयास करते हैं, यहाँ तक की महानतम सुपरस्टार्स भी…
मैडोना ने दिवा बन करके “मैं यहाँ क्यों हूँ?” प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास किया, और कबूला, “कई सालों तक मुझे लगा कि ख़्याति, संपत्ति और लोगों की स्वीकृति मुझे खुशी प्रदान करेगी। लेकिन एक दिन आप जगते हैं और पाते हैं कि ऐसा नहीं है…मुझे अभी भी महसूस होता है कि कोई चीज़ अभी भी नहीं है…मैं वास्तविक तथा दीर्घकालिक खुशी का अर्थ और इसे प्राप्त करने का तरीका जानना चाहती थी।”[1]
दूसरे लोगों ने अर्थ की खोज छोड़ दी है। कर्ट कोबेन, सीएटल ग्रंज बैंड निर्वाण के प्रमुख गायक, 27 वर्ष की आयु में ही जीवन से निराश हो गए और आत्महत्या कर ली। जैज़ युग के कार्टूनिस्ट राल्फ़ बर्टन ने भी जीवन को अर्थहीन पाया, और यह सुसाइड नोट छोड़ गए: “मुझे बहुत कम परेशानियाँ हुईं, अनेक दोस्त, शानदार सफलताएँ मिली; मैं एक पत्नी से दूसरी पत्नी, एक घर से दूसरा घर बदला, दुनिया के देशों का भ्रमण किया लेकिन, अब मैं दिन के 24 घंटे नए उपकरण बनाते-बनाते उब गया हूँ।”[2]
महान फ्रांसीसी दार्शनिक पास्कल का मानना था कि हम सभी द्वारा अनुभव की जाने वाली इस आंतरिक रिक्तता को केवल ईश्वर ही भर सकते हैं। उन्होंने कहा, “हर मनुष्य के हृदय में एक ईश्वरीय आकार का खालीपन होता है, जिसे केवल ईसा मसीह भर सकते हैं।”[3] यदि पास्कल सही थे, तो हम यीशु से न केवल अपनी पहचान और जीवन के अर्थ के उत्तर की अपेक्षा कर सकते हैं, बल्कि उनसे हमारी अपनी मृत्यु के बाद जीवन की आशा भी कर सकते हैं।
क्या ईश्वर के बिना, कोई अर्थ हो सकता है? बर्टराण्ड रसेल के अनुसार बिल्कुल नहीं, उन्होंने लिखा, “जब तक आप किसी ईश्वर को मान नहीं लेते, जीवन के उद्देश्य का प्रश्न अर्थहीन है।”[4] रसेल ने अंततः कब्र में “सड़ने” वाली बात मानी। अपनी पुस्तक, व्हाई आय एम नॉट ए क्रिश्चियन, में यीशु द्वारा अनंत जीवन का भरोसा समेत जीवन के अर्थ के बारे में सभी बातों का खंडन किया।
परंतु यदि यीशु ने मृत्यु को पराजित किया जैसा कि प्रत्यक्षदर्शी दावा करते हैं, (“क्या यीशु मृत्यु के बाद फिर से जीवित हो उठे थे?” देखें) तो केवल वे ही हमें यह बता सकते हैं कि जीवन का लक्ष्य क्या है, और “मैं कहाँ जा रहा हूँ?” का उत्तर दे सकते हैं। यह समझने के लिए कि यीशु के उपदेश, जीवन और मृत्यु किस प्रकार हमारी पहचान निर्धारित करते हैं, हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करते हैं, और भविष्य के लिए आशा जगाते हैं, हमें यह समझना होगा कि उन्होंने ईश्वर, हम लोगों और स्वयं अपने बारे में क्या कहा था।
यीशु ने ईश्वर के बारे में क्या कहा ?
ईश्वर संबंधपरक हैं
अनेक लोग ईश्वर को केवल एक शक्ति के रूप में सोचते हैं, न कि एक व्यक्ति के तौर पर जिसमें ज्ञान हो सकता है और जो आनंद ले सकता है। यीशु ने जिस ईश्वर की बात की वे स्टार वार्स की व्यक्तित्वहीन शक्ति जैसे नहीं थे, जिनकी अच्छाई वोल्टेज द्वारा मापी जाती हो। न ही वे आकाश में रहने वाले कोई महान निष्ठुर हौआ थे, जिन्हें हमारी जिंदगी दयनीय बनाने में प्रसन्नता होती हो।
इसके ठीक विपरीत, ईश्वर हमारी ही तरह, परंतु उससे कुछ ज्यादा ही संबंधपरक हैं। उन्हें लगता है कि वे सुन सकते हैं। हम हमें समझ में आने वाली भाषा में बातचीत करते हैं। यीशु ने हमें ईश्वर के बारे में बताया और दिखाया कि ईश्वर कैसे होते हैं। यीशु के अनुसार, ईश्वर हम सभी को घनिष्ठता और निजी रूप से जानते हैं, और हमारे बारे में निरंतर सोचते रहते हैं।
ईश्वर प्रेमपूर्ण हैं
और यीशु ने हमें बताया कि ईश्वर प्रेमपूर्ण हैं। यीशु जहाँ भी गए, बीमारों का इलाज करते हुए तथा चोटिल और गरीब लोगों तक पहुँच कर ईश्वर के प्रेम का प्रदर्शन किया।
ईश्वर का प्रेम हम लोगों के प्रेम से मौलिक रूप से भिन्न है क्योंकि यह आकर्षण या प्रदर्शन पर आधारित नहीं है। यह पूर्णतः त्याग और निःस्वार्थ संबंधी है। यीशु ने ईश्वर के प्रेम की तुलना एक उत्तम पिता के प्रेम से की। एक अच्छा पिता अपने बच्चों के लिए सर्वोत्तम चीज़ें चाहता है, उनके लिए त्याग करता है, और उन्हें चीज़ें उपलब्ध करता है। लेकिन उनके सर्वोत्तम हित में, उन्हें अनुशासित भी करता है।
यीशु ईश्वर के प्रेम का वर्णन एक ऐसे विद्रोही बेटे की कहानी के द्वारा करते हैं, जिसमें बेटा अपने जीवन और महत्वपूर्ण चीज़ों से संबंधित पिता की सलाह को अस्वीकार कर देता है। घमंडी और मनमौजी, बेटा काम करना छोड़ देना चाहता था और “मौज से जीना“ चाहता था। अपने पिता द्वारा स्वेच्छा से विरासत पाने की प्रतीक्षा करने की बजाय वह अपने पिता पर जोर डालने लगा कि वे उसे जल्दी विरासत दे दें।
यीशु की कहानी में, पिता ने बेटे का अनुरोध मान लिया। लेकिन बेटे के लिए चीज़ें खराब हो गईं। अपनी विलासिता पर धन गंवाने के बाद, विद्रोही बेटे को काम करने के लिए सूअर के फार्म जाना पड़ा। शीघ्र ही उसे इतनी भूख लगी कि उसे सूअर का भोजन भी अच्छा लगने लगा। निराश और इस बात के प्रति अनिश्चित कि उसके पिता उसे वापस स्वीकार करेंगे या नहीं, उसने अपने सामान समेटे और घर की तरफ चल पड़ा।
यीशु हमें बताते हैं कि उसके पिता ने न केवल उसका घर में स्वागत किया, बल्कि वास्तव में उससे मिलने के लिए दौड़ पड़े। और फिर उसके पिता का प्रेम बिल्कुल अथाह हो गया और उन्होंने अपने बेटे की वापसी की खुशी मनाने के लिए एक विशाल दावत दी।
यह बात दिलचस्प है कि अपने बेटे को बहुत ज्यादा प्रेम करने के बावजूद, वे अपने बेटे के पीछे नहीं गए। उन्होंने अपने प्यारे बेटे को कष्ट झेलने और अपने विद्रोही निर्णय के परिणाम भुगतने के लिए छोड़ दिया। इसी प्रकार, धर्मग्रंथ हमें सिखाते हैं कि ईश्वर का प्रेम हमारे लिए सर्वोत्तम चीज़ों से कभी समझौता नहीं करेगा। यह हमें अपने गलत निर्णयों के परिणाम भुगतने देगा।
यीशु ने हमें यह भी सिखाया कि ईश्वर कभी भी अपने चरित्र से समझौता नहीं करेंगे। हम जो कुछ भी हैं वह अपने चरित्र के कारण ही हैं। यह वह सार है, जिससे हमारे सभी विचार और कार्य उत्पन्न होते हैं। तो ईश्वर—मूल रूप से कैसे हैं?
ईश्वर पवित्र हैं
पूरे बाइबिल में (लगभग 600 बार), ईश्वर को “पवित्र” कहा गया है। पवित्र का अर्थ है कि ईश्वर का चरित्र नैतिक रूप से पवित्र और हर प्रकार से उत्तम है। बेदाग। इसका अर्थ है कि वे कभी ऐसा विचार भी मन में नहीं लाते जो अपवित्र हो या उनकी नैतिक उत्कृष्टता के असंगत हो।
इसके अतिरिक्त, ईश्वर की पवित्रता का अर्थ है कि किसी पापी के साथ नहीं हो सकते। चूँकि पाप उनके चरित्र के विपरीत है, वे इससे घृणा करते हैं। उनके लिए यह प्रदूषण के समान है।
परंतु यदि ईश्वर पवित्र हैं और पाप से घृणा करते हैं, तो उन्होंने हमारे चरित्र अपनी तरह क्यों नहीं बनाया? यहाँ बाल-उत्पीड़क, हत्यारे, बलात्कारी और विकृत व्यक्ति क्यों हैं? और हम स्वयं अपने नैतिक निर्णयों से क्यों संघर्ष करते हैं? यह हमें अर्थ की खोज के अगले चरण में ले जाता है। यीशु ने हमारे बारे में क्या कहा?
यीशु ने हमारे बारे में क्या कहा?
ईश्वर के साथ एक संबंध के लिए निर्मित
यदि आप न्यू टेस्टामेंट को पूरा पढ़ते हैं तो आप पाएँगे कि यीशु ने निरंतर ईश्वर के लिए हमारे अमित मान के बारे में कहा है, और हमें बताते हैं कि ईश्वर ने हमें अपनी संतानों की तरह बनाया है।
आयरिश U2 रॉक स्टार बोनो ने एक साक्षात्कार में कहा, “यह एक अद्भुत अवधारणा है कि ईश्वर जिन्होंने ब्रह्मांड की रचना की वे भी किसी संगति की तलाश में थे, मनुष्यों के साथ एक वास्तविक संबंध….”[5] दूसरे शब्दों में, ब्रह्मांड के निर्माण से पूर्व, ईश्वर ने हमें अपने परिवार में अपनाने की योजना बनाई। केवल इतना ही नहीं, उन्होंने हमारे लिए एक अविश्वसनीय विरासत की योजना भी बनाई है। यीशु की कहानी में पिता की हृदय की तरह, ईश्वर हम लोगों पर अकल्पनीय आशीष एवं राजसी विशेषाधिकार की विरासत लुटाना चाहते हैं। उनकी नज़रों में, हम लोग विशेष हैं।
चुनाव के लिए स्वतंत्र
स्टेप्फ़ोर्ड वाइब्स मूवी में, कमजोर, झूठे, लालची और हत्यारे पुरुष विनम्र, आज्ञाकारी रोबोट तैयार करते हैं ताकि उन्हें अपनी स्वाधीन पत्नियों से बदल सकें जिन्हें वे खतरा मानते थे। हालाँकि पुरूष अपनी पत्नियों से प्रेम करते थे, उन्होंने अपनी आज्ञा का पालन सुनिश्चित करने के लिए उनका स्थानापन्न खिलौनों से कर दिया।
ईश्वर हमें भी वैसा बना सकते थे — रोबोट की तरह (iPeople) जो प्रेम और आज्ञापालन के लिए तैयार किया गया हो, और हमारे अंदर उपासना को स्क्रीनसेवर की तरह प्रोग्राम किया गया हो। परंतु तब हमारा अनिवार्य प्रेम अर्थहीन हो जाएगा। ईश्वर चाहते थे कि हम उन्हें उन्मुक्त रूप से प्रेम करें। वास्तविक संबंध में, हम चाहते हैं कि कोई हमें हम जो हैं उसके लिए प्रेम करे, न कि किसी मजबूरी के कारण — हम एक डाक-ऑर्डर दुल्हन की बजाय एक जीवनसाथी पसंद करेंगे। सोरेन किर्केगार्ड ने कहानी के द्वंद्व का सार प्रस्तुत किया।
मान लीजिए कि एक राजा विनम्र युवती से प्यार करता था। राजा बाकी अन्य राजाओं की तरह नहीं था। सभी राजनेता उसकी शक्ति के सामने कांपते थे…और फिर यह बलशाली राजा एक विनम्र युवती के प्यार में पिघल गया। वह उसके लिए अपने प्यार का इज़हार कैसे कर सकता था? किसी विषम तरीके की तरह, उसके राजा होने ने उसके हाथ बाँध दिए थे। यदि वे उसे अपने महल ले आते और उसके सिर पर आभूषणों वाला ताज पहना देते … तो निश्चित रूप से वह प्रतिरोध नहीं करती—कोई भी विरोध करने का हिम्मत नहीं करता। लेकिन क्या वह उनसे प्यार करेगी? वह निस्संदेह कहती कि वह उनसे प्यार करती है, लेकिन क्या वह सचमुच करती थी?[6]
आप समस्या देखते हैं। कम अलंकृत रूप से कहा जाए तो: आप सब कुछ जानने वाले बॉयफ्रेंड से किस प्रकार संबंध तोड़ते हैं? (“हमारे बीच बस कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है, लेकिन मुझे अंदाजा है कि तुम्हें भी यह पता था।”) लेकिन ईश्वर ने उन्मुक्त ढंग से प्रेम का आदान-प्रदान संभव करने के लिए, ईश्वर ने मनुष्यों को एक अनूठी क्षमता के साथ बनाया: स्वतंत्र इच्छा।
ईश्वर के नैतिक उपदेशों के प्रति विद्रोह
सी. एस. लुईस तर्क देते हैं कि हालाँकि हम लोगों में ईश्वर को जानने की इच्छा अंदर से ही प्रोग्राम किया गया है, हम अपने जन्म के साथ इसका विद्रोह आरंभ कर देते हैं।[7] लुईस स्वयं अपने ही उद्देश्यों की जाँच भी आरंभ करते हैं, जिससे उन्हें यह ज्ञात होता है कि उनमें स्वभावतः ही सही और गलत का फर्क करने की क्षमता थी।
लुईस ताज्जुब करते हैं कि सही और गलत के अंतर का विवेक कहाँ से आया। हम सब सही और गलत के विवेक अनुभव करते हैं जब हम हिटलर द्वारा साठ लाख यहूदियों को मार डालने, या किसी हीरो द्वारा किसी और के लिए अपने प्राण त्यागने के बारे में पढ़ते हैं। हम सहज रूप से ही जान जाते हैं कि झूठ बोलना और धोखा देना गलत है। यह मान्यता कि हम लोग अंदरूनी नैतिक नियम के साथ प्रोग्राम किए गए हैं ने पूर्व नास्तिक को इस निष्कर्ष पर पहुँचाया कि कोई एक नैतिक “कानून निर्माता” होना चाहिए।
वाकई, यीशु और धर्मग्रंथों दोनों के अनुसार, ईश्वर ने हमें पालन करने के लिए नैतिक नियम प्रदान किए हैं। और हम लोगों ने न केवल उनके साथ संबंध से पीठ मोड़ लिया है, हमने ईश्वर द्वारा स्थापित इन नैतिक कानूनों को भी तोड़ा है। हममे से अधिकतर टेन कमांडमेंट्स में से कुछ जानते हैं:
“झूठ न बोलें, चोरी नहीं करें, हत्या नहीं करें, व्यभिचार न करें” इत्यादि। यीशु ने इन सबका सार यह कहते हुए कहा कि हम सबको पूर्ण तल्लीनता के साथ ईश्वर से प्रेम करना चाहिए और अपने पड़ोसियों से स्वयं की तरह प्रेम करना चाहिए। इसलिए, पाप केवल हमारे द्वारा नियम भंग करना ही नहीं बल्कि सही कार्य करने में हमारी विफलता भी होता है।
ईश्वर ने ब्रह्मांड की रचना सभी चीज़ों का संचालन करने वाले नियमों के साथ की। वे अलंघनीय एवं अपरिवर्तनीय हैं। जब आइंस्टाइन ने E=MC2 फॉर्मूला निकाला तो उन्होंने नाभिकीय ऊर्जा के रहस्य को उजागर किया। सख्त परिस्थितियों में सही घटकों को एक साथ रखने से विशाल ऊर्जा उत्पन्न होती है। धर्मग्रंथ हमें बताते हैं कि ईश्वर के नैतिक कानून इससे जरा भी कम मान्य नहीं हैं, क्योंकि यह सीधे उनके चरित्र से उत्पन्न होता है।
पहले ही आदमी और औरत से, हम लोगों ने ईश्वर के नियमों का उल्लंघन किया, बावजूद इसके कि वे हमारे लिए सर्वोत्तम हैं। और हम लोग सही कार्य करने में असफल रहे हैं। हमें यह स्थिति पहले मनुष्य, आदम से विरासत में मिली है। बाइबिल इसे अवज्ञा, पाप कहता है जिसका अर्थ “लक्ष्य से भटकना” है, जैसे कोई तीरंदाज अपने नियत लक्ष्य से चूक जाता है। इस तरह हमारे पापों ने ईश्वर के साथ हमारे नियत संबंध को तोड़ा है। तीरंदाज के उदाहरण की तरह, हम अपने निर्माण के प्रयोजन के लक्ष्य से चूक गए।
पाप के कारण हमारे सभी संबंध टूट जाते हैं: मानव जाति अपने परिवेश से (विरक्ति), व्यक्ति का स्वयं अपने आप से (अपराध बोध एवं अपमान), लोगों का दूसरे लोगों से (युद्ध, हत्या), और लोगों को ईश्वर से (आध्यात्मिक मृत्यु)। चेन की कड़ियों की तरह, ज्योंही ईश्वर और मनुष्य के बीच पहली कड़ी टूटी, सभी निर्भर कड़ियाँ अलग-अलग हो गईं।
और हम लोग टूट गए। जैसा कैन वेस्ट इल्जाम लगाते हैं, “और मुझे नहीं लगता कि मैं अपने गलतियों को ठीक करने के लिए कुछ कर सकता हूँ…मैं ईश्वर से बात करना चाहता हूँ परंतु मैं भयभीत हूँ, क्योंकि हमने काफी समय से बातचीत नहीं की…” वेस्ट के गीत हमारे जीवन में पापों के कारण होने वाले वियोग के बारे में बोलते हैं। और बाइबिल के अनुसार, यह वियोग किसी रैप गीत के बोल से बहुत ज्यादा है। यह एक घातक परिणाम है।
हमारे पापों ने हमें अपने ईश्वर के प्रेम से अलग कर दिया है
हमारे विद्रोह (पाप) ने ईश्वर और हमारे बीच अलगाव की एक दीवार बना दी है (यशयाह 59:2 देखें)। धर्मग्रंथों में, “वियोग” का अर्थ आध्यात्मिक मृत्यु है। और आध्यात्मिक मृत्यु का अर्थ ईश्वर के प्रकाश और जीवन से पूर्णतः अलग हो जाना है।
“लेकिन एक मिनट रुकिए,” आप कह सकते हैं। “क्या ईश्वर को यह सब हमें बनाने से पहले नहीं पता था?
वे यह क्यों नहीं देख पाए कि उनकी योजना असफलता के लिए अभिशप्त थी?” निस्संदेह, सर्वज्ञ ईश्वर को पता होना चाहिए था हम लोग विद्रोह करेंगे और पाप में लिप्त होंगे। वास्तव में, यह हमारी विफलता है कि हमें उनकी योजना इतना हक्का-बक्का कर देने वाली लगती है। इसी कारण ईश्वर मनुष्य के रूप में धरती पर आए। और इससे भी अधिक अविश्वसनीय—उनकी मृत्यु का अनूठा कारण है।
यीशु ने स्वयं के बारे में क्या कहा?
ईश्वर का सर्वोत्तम समाधान
अपनी सार्वजनिक सेवा के तीन वर्षों के दौरान, यीशु ने हमें जीवन यापन के बारे में बताया, कई चमत्कार किए, और यहाँ तक की मृतकों को भी पुनर्जीवित किया। लेकिन उन्होंने का कि उनका मुख्य उद्देश्य हमें अपने पापों से बचाना है।
यीशु ने घोषणा की कि वहीं प्रतीक्षित मसीहा हैं जो हमारे अधर्मों को अपने ऊपर ले लेंगे। पैगंबर यशयाह ने 700 वर्ष पूर्व मसीहा के बारे में लिखा था, और हमें उनकी पहचान से संबंधित अनेक सुराग दिए थे। लेकिन सबसे मुश्किल से समझ आने वाला सुराग था कि मसीहा मनुष्य और ईश्वर दोनों होंगे!
“क्योंकि हमारे बीच एक शिशु पैदा होगा, हमारे बीच एक बेटा पैदा होगा। और उसका नाम…महान ईश्वर, चिरस्थायी पिता परमेश्वर, शांति का राजकुमार होगा।” (यशयाह 9:6)
लेखक रे स्टेडमेन ने ईश्वर के उदीयमान मसीहा के बारे में लिखा: “ओल्ड टेस्टामेंट के प्रारंभ से ही, आशा एवं अपेक्षा की एक भावना है, समीप आने वाले कदमों की आवाज के समान: कोई आ रहा है! …और यह आशा संपूर्ण पैगंबर रिकॉर्ड में बढ़ती गई जब एक बाद के एक पैगंबर ने एक और चाह जगाने वाले संकेत की घोषणा की: कोई आ रहा है!”[8]
प्राचीन पैगंबरों ने भविष्यवाणी की थी कि मसीहा ईश्वर के उत्तम दोष प्रस्ताव होंगे, उनके न्याय को संतुष्ट करेंगे।यह श्रेष्ठ मानव हमारे लिए प्राण त्यागने के योग्य होगा। (यशयाह 53:6)
न्यू टेस्टामेंट के लेखकों के अनुसार, एकमात्र कारण जिससे यीशु हम सबके लिए प्राण त्यागने योग्य होंगे क्योंकि, ईश्वर के समान, उन्होंने एक उत्तम नैतिक जीवन जिया और पाप के निर्णय के अधीन नहीं थे।
यह समझना मुश्किल है कि किस प्रकार यीशु की मृत्यु ने हमारे पापों की भरपाई की। शायद एक न्यायिक समानता यह स्पष्ट कर पाए कि यीशु किस प्रकार ईश्वर के संपूर्ण प्रेम एवं न्याय के द्वंद्व को सुलझाते हैं।
एक कोर्ट रूम में, हत्या के अपराधी के रूप में प्रवेश करने की कल्पना करें (आपके पास अनेक गंभीर समस्याएँ हैं।)। जैसे ही आप बेंच के निकट पहुँचते हैं, आपको पता लगता है कि जज आपके पिता हैं। यह जानते हुए कि वे आपसे प्रेम करते हैं, आप तत्काल निवेदन आरंभ कर देते हैं, “पिता जी, मुझे जाने दीजिए!”
जिसका वे उत्तर देते हैं, “बेटे, मैं तुमसे प्यार करता हूँ, लेकिन मैं एक जज हूँ। मैं तुम्हें ऐसे ही नहीं छोड़ सकता।”
वे टूट गए हैं। अंततः वे हथौड़ा मारते हैं और तुम्हें अपराधी घोषित करते हैं। न्याय में कोई समझौता नहीं किया जा सकता, कम से कम जब आप एक जज हैं। लेकिन चूँकि वे तुमसे प्यार करते हैं, वे बेंच से नीचे उतरते हैं, अपने कपड़े उतारते हैं, और आपके लिए दंड का भुगतान करने की पेशकश करते हैं। और वास्तव में, वे बिजली की कुर्सी में आपका स्थान ले लेते हैं।
यदि चित्र न्यू टेस्टामेंट द्वारा चित्रित है। ईश्वर, ईसा मसीह के रूप में, मानव इतिहास में अवतरित हुए और हम लोगों के लिए हमारे स्थान पर बिजली की कुर्सी (पढ़ें: सूली) को अपनाया। यीशु कोई तृतीय-पक्ष बलि के बकरे नहीं थे, जिन्होंने हमारे पापों को अपना लिया, बल्कि वे स्वयं ईश्वर थे। दो टूक शब्दों में, ईश्वर के पास दो चुनाव थे: हमारे पापों का निर्णय करना या स्वयं अपने पर दंड ग्रहण करना। यीशु के रूप में, उन्होंने दूसरे को चुना।
हालाँकि U2 के ब्रोनो कोई धर्मशास्त्री होने का दावा नहीं करते हैं, उन्होंने एकदम सटीक रूप से यीशु की मृत्यु के कारण बताए:
“यीशु की मृत्यु का सारांश यह है कि यीशु ने दुनिया के पापों को अपने ऊपर ले लिया, ताकि हमने जो किया वह हम पर उल्टा न पड़ जाए, और हमारी गुनहगार प्रकृति स्पष्ट मृत्यु का फल न भोगे। यहीं सार है। इसे हमें विनम्र बनाए रखना चाहिए। यह हमारे अच्छे कार्य नहीं हैं जिनके कारण हम स्वर्ग के द्वार पार करते हैं।”[9]
और यीशु ने “मैं ही मार्ग हूँ, सत्य हूँ, जीवन हूँ। मेरे सिवाय किसी और माध्यम से परम पिता परमेश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता हैI” (यूहन्ना 14:6) कहते हुए स्पष्ट कर दिया कि केवल वे ही हम लोगों को ईश्वर तक पहुँचा सकते हैं।
लेकिन कई लोगों का मानना है कि यीशु का यह दावा बहुत संकीर्ण है कि ईश्वर के लिए केवल वे ही एकमात्र मार्ग हैं, वे तर्क देते हैं कि ईश्वर तक पहुँचने के अनेक मार्ग हैं। सभी धर्मों को एक समान मानने वाले लोग इस बात का खंडन करते हैं कि हमारी कोई पाप समस्या है। वे यीशु के शब्दों को गंभीरतापूर्वक लेने से इंकार करते हैं। वे कहते हैं कि ईश्वर का प्रेम हम सभी को स्वीकार कर लेगा, बगैर इस बात पर ध्यान दिए कि हमने क्या कार्य किए हैं।
वे कहते हैं कि शायद हिटलर न्याय का हकदार है, लेकिन वे नहीं जो “मर्यादित जीवन” जीते हैं। यह कुछ ऐसा कहने जैसा है कि ईश्वर लोगों को सौंदर्य पर दर्जा देते हैं, जिन्हें डी- या बेहतर दर्जा मिलता है वे अंदर आ सकते हैं। लेकिन इससे एक द्वंद्व सामने आता है।
जैसा कि हमने देखा है, पाप ईश्वर के पवित्र चरित्र के बिल्कुल विपरीत है। इस प्रकार हमने उन्हें अप्रसन्न किया जिन्होंने हमें बनाया, और हमें इतना प्रेम किया कि हमारे लिए स्वयं अपने ही बेटे का त्याग किया। एक मायने में हमारा विद्रोह उनके चेहरे पर थूकने के समान है। न ही अच्छे कार्य, धर्म, ध्यान, या कर्म भी हमारे द्वारा किए गए अपराधों की भरपाई कर सकते हैं।
धर्मशास्त्री आर. सी. एस्प्रौल के अनुसार, केवल यीशु ही इस ऋण का भुगतान कर सकते हैं। वे लिखते हैं:
“मूसा कानून पर मध्यस्थता कर सकते थे; मोहम्मद तलवार भाँज सकते थे; बुद्ध व्यक्तिगत परामर्श दे सकते थे; कन्फ्यूशियस विवेकी उपदेश दे सकते थे; लेकिन इनमें से कोई भी दुनिया के पापों के लिए प्रायश्चित्त करने के योग्य थे। केवल यीशु ही असीमित श्रद्धा एवं सेवा के पात्र हैं।”[10]
एक अनर्जित उपहार
ईश्वर के अबाध क्षमा का यीशु के बलिदानी मृत्यु के माध्यम से वर्णन करने वाला बाइबिल का शब्द कृपा है। क्षमा जबकि हमें अपने कार्यों के फल से बचाता है, ईश्वर की अनुकंपा हमें वह प्रदान करती है जिसके हम हकदार नहीं है। आइये एक मिनट के लिए इस बात की समीक्षा करें कि यीशु ने किस प्रकार हमारे लिए वह सब किया जो हम स्वयं अपने आप नहीं कर पाए:
• ईश्वर हम लोगों से प्रेम करते हैं और उन्होंने हमें अपने के साथ एक संबंध के लिए बनाया।[11]
• हमें इस संबंध को स्वीकार या अस्वीकार करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई।[12]
• हमारे पाप और ईश्वर तथा उनके कानूनों के प्रति हमारे विद्रोह ने हम लोगों और उनके बीच एक अलगाव की दीवार बना दी है।[13]
• यद्यपि हम लोग शाश्वत ईश्वरीय दंड के हकदार हैं, ईश्वर ने हमारी जगह यीशु की मृत्यु के द्वारा हमारे ऋणों का पूर्णतः भुगतान कर दिया है, इससे उनके साथ अनादि जीवन संभव हो पाया।[14]
बोनो इस कृपा पर अपना दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
“कृपा दलील और तर्क की अवज्ञा करता है। अगर आप चाहें, तो प्रेम आपके कर्मों के परिणाम को बाधित करता है, जो कि मेरे मामले में वाकई एक अच्छा समाचार है, क्योंकि मैंने बहुत सारी बेवकूफियां की हैं…मैं बड़ी मुश्किल में होता यदि कर्म ही मेरे जज होते…यह मेरी गलतियों को माफ नहीं करता, लेकिन मैं कृपा का इंतजार कर रहा हूँ। मैं प्रस्ताव कर रहा हूँ कि यीशु मेरे पापों को अपना कर सूली पर चढ़े, क्योंकि मुझे पता है कि मैं कौन हूँ, और आशा करता हूँ कि मुझे अपने धार्मिकता पर निर्भर न रहना पड़े।”[15]
अब हमारे पास पीढ़ियों को एक साथ लाने की ईश्वर की योजना का चित्र है। लेकिन अभी भी एक घटक अनुपस्थित है। यीशु और न्यू टेस्टामेंट के लेखकों के अनुसार, यीशु द्वारा प्रस्तुत मुफ्त उपहार के बदले हम सबको अलग-अलग कुछ करना चाहिए। वे इसके लिए हम पर दबाव नहीं डालेंगे।
आप अंत का चुनाव करते हैं
हम निरंतर रूप से पसंद तय करते रहते हैं—क्या पहनना है, क्या खाना है, हमारा व्यवसाय, विवाह के लिए जोड़ीदार, इत्यादि। भगवान के साथ संबंध बनाते समय भी ऐसा ही होता है। लेखक रवि जकारिया लिखते हैं:
“यीशु का संदेश यह बताता है कि प्रत्येक व्यक्ति…भगवान को अपनी जन्म की खूबी के कारण नहीं, परन्तु जानबूझकर उसे अपने व्यक्तिगत जीवन पर शासन करने की अनुमति देकर जानता है।”[16]
हमारी पसंद अकसर दूसरों से प्रभावित होती है। परंतु कुछ दृष्टांतों में हमें गलत सलाह दी जाती है। 11 सितंबर, 2001 में, 600 निश्छल लोगों ने अपना विश्वास गलत सलाह पर रखा, और भोलेपन के साथ परिणामों को झेला। सही कहानी इस प्रकार है:
एक व्यक्ति जो वर्ल्ड ट्रेड टावर के दक्षिणी टावर के 92वें माले पर था, उसने सुना एक जहाज उत्तरी टावर से टकराया है। विस्फोट से अचंभित, क्या करें यह जानने के लिए उसने पुलिस को कॉल किया। “हम यह जानना चाहते हैं कि क्या हमें यहां से बाहर निकल जाना चाहिए, क्योंकि हम जानते हैं कि विस्फोट हुआ है,” उसने जल्दी से फ़ोन पर कहा।
दूसरी तरफ की आवाज ने उसे स्थान खाली न करने की सलाह दी। “मैं अगली सूचना तक इंतजार करना चाहूँगा।”
“ठीक है,” कॉल करने वाले ने कहा। “खाली न करें।” फिर उसने फोन काट दिया।
सुबह 9:00 बजे के कुछ देर बाद ही, एक और जहाज दक्षिणी टावर के 80वें माले से टकराया। दक्षिणी टावर के सबसे ऊपरी मंजिल के लगभग सभी 600 लोग मर गए। भवन को खाली करने में असफलता उस दिन की त्रासदियों में से एक थी।[17]
वे 600 लोग मरे क्योंकि उन्होंने गलत सूचना पर विश्वास किया, यद्यपि वह उस व्यक्ति द्वारा दिया गया था जो कि उनकी सहायता करने का प्रयास कर रहा था। वह दुखद घटना नहीं घटित होती यदि 600 लोगों को सही सूचना प्राप्त होती।
यीशु के बारे में हमारी अभिज्ञ पसंद गलत रूप से सूचित 9/11 के पीड़ित लोगों के मुकाबले बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। अमरत्व दांव पर है। हम तीन भिन्न उत्तरों में से एक चुन सकते हैं। हम उनकी अवहेलना कर सकते हैं। हम उन्हें नकार सकते हैं। या, हम उन्हें स्वीकार सकते हैं।
कई लोगों द्वारा जीवन भर ईश्वर की अवहेलना करने का कारण उनके द्वारा अपने कार्यक्रम को बढ़ाने में अत्यधिक व्यस्त रहना है। चक कोल्सन इसी तरह के थे। 39 वर्ष की उम्र में, कोल्सन ने अमेरिका के राष्ट्रपति के बगल वाले कार्यालय पर कब्जा कर लिया। वह निक्सन के व्हाइट हाउस के “कड़क आदमी” थे, “खतरनाक व्यक्ति” जो कठोर निर्णय कर सकते थे। फिर भी, 1972 में, वाटरगेट कांड ने उनकी प्रतिष्ठा को तहस-नहस कर दिया और उसकी दुनिया एकदम बिखर गई। बाद में उन्होंने लिखा:
“मैं स्वयं के बारे में चिंतित था। मैंने यह किया और वह किया, मैंने हासिल किया, मैं सफल रहा और मैंने ईश्वर को कोई श्रेय नहीं दिया, उनके द्वारा मुझे दिए गए किसी भी उपहार के लिए एक बार भी उन्हें धन्यवाद नहीं दिया। मैंने कभी भी अपने से ज्यादा किसी को भी ‘पर्याप्त रूप से बेहतर’ नहीं पाया था, या अगर मैं किसी अस्थायी क्षण में ईश्वर की असीम शक्ति के बारे में सोचा भी हो, मैंने उन्हें अपने जीवन से संबंधित नहीं पाया।”[18]
कई लोग कोल्सन के साथ तादात्म्य स्थापित कर सकते हैं। जीवन की तेज गति में उलझ जाना और ईश्वर के लिए थोड़ा या बिल्कुल भी समय नहीं उपलब्ध कर पाना बहुत सरल है। तब भी ईश्वर के क्षमा के कृपापूर्ण प्रस्ताव की अवहेलना करने का वैसा ही भयानक नतीजा होता है जैसा उन्हें पूरी तरह से नकारने का। हमारे पापों का ऋण अभी भी चुकाया जाना शेष रहता है।
आपराधिक मामलों में, कुछ ही पूर्ण क्षमादान अस्वीकार कर देते हैं। 1915 में, न्यूयॉर्क ट्रिब्यून के नगर संपादक, जॉर्ज बर्डिक, ने स्रोतों की जानकारी देने से इनकार किया और कानून को तोड़ा। राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने बर्डिक को उनके द्वारा “किए गए या संभवतः किए गए” सभी अपराधों के लिए पूर्ण क्षमादान की घोषणा की। जिस बात ने बर्डिक के मामले को ऐतिहासिक बना दिया वह यह था कि उन्होंने क्षमादान से इनकार कर दिया। जिससे मुकदमा उच्चतम न्यायालय में गया, जिसने बर्डिक का साथ दिया, और कहा कि राष्ट्रपति का क्षमादान किसी के ऊपर बलपूर्वक लागू नहीं किया जा सकता।
जब ईसा मसीह के पूर्ण क्षमादान को नकारने की बात आती है, तो लोग कई प्रकार के कारण बताते हैं। कई कहते हैं पर्याप्त प्रमाण नहीं है परन्तु, बर्ट्रांड रसेल और अन्य संशयवादियों की तरह, उन्हें वास्तव में पड़ताल करने में उतनी रुचि नहीं है। अन्य लोग अपने परिचित कुछ ढोंगी ईसाइयों से परे देखने से इनकार करते हैं, और प्रेमरहित या असंगत व्यवहार का बहाना पेश करते हैं। और इसके बाद भी कुछ लोग यीशु को नकारते हैं क्योंकि वे अपने द्वारा अनुभव किए गए किसी अशुभ या दुखद त्रासदी के लिए ईश्वर को दोष देते हैं।
हालाँकि, सैकड़ों कॉलेज कैम्पस में बुद्धिजीवियों के साथ तर्क-वितर्क करने वाले जकारिया मानते हैं कि अधिकतर लोगों द्वारा ईश्वर को नकारने का वास्तविक कारण नैतिक है। वे लिखते हैं:
“कोई व्यक्ति ईश्वर को न तो बौद्धिक मांग के कारण न ही प्रमाण की कमी के कारण नकारता है। कोई व्यक्ति ईश्वर को उस नैतिक प्रतिरोध के कारण नकारता है जो उसे उसकी ईश्वर की आवश्यकता को स्वीकार करने से इनकार करता है।”[19]
नैतिक स्वतंत्रता की इच्छा ने सी. एस. लुईस को कॉलेज के अधिकतर वर्षों के दौरान ईश्वर से दूर रखा। जब सत्य की खोज उसे ईश्वर के पास ले गई, लुईस बताते हैं कि कैसे यीशु की स्वीकृति तथ्यों के बौद्धिक बहस कुछ ज्यादा है। वे लिखते हैं:
“परास्त व्यक्ति केवल एक दोषपूर्ण प्राणी नहीं होता जिसे सुधार की आवश्यकता होती है: वह एक विद्रोही है जिसे अपने हथियार डाल देने चाहिए। अपने हथियार डालना, समर्पण करना, खेद व्यक्त करना, गलत पथ में होने का पता चलना और जीवन फिर से आरंभ करने के लिए तैयार होना…इन्हें ही ईसाई पश्चाताप कहते हैं।”[20]
पश्चाताप वह शब्द है जिसका मतलब सोच में एक नाटकीय परिवर्तन है। निक्सन के पूर्व “खतरनाक व्यक्ति” के साथ यहीं हुआ था। वाटरगेट के उजागर होने के बाद, कोल्सन ने जीवन के बारे में भिन्न तरीके से सोचना आरंभ किया। अपनी उद्देश्यहीनता को महसूस करके, उसने अपने एक मित्र द्वारा दिए गए लुईस की मियर क्रिश्चियानिटी पढ़ना आरंभ किया। एक वकील के रूप में प्रशिक्षित, कोल्सन ने एक पीला कानूनी पैड लिया और लुईस के तर्कों को लिखना आरंभ किया। कोल्सन याद करते हैं:
“मैं जानता था कि मेरा समय आ गया है… क्या मैं बगैर किसी रूकावट के अपने जीवन में ईसा मसीह को ईश्वर स्वीकार करता? यह एक तरीके से मेरे सामने एक द्वार जैसा था। उसके बगल से निकल जाने का कोई रास्ता नहीं था। या तो मैं उसके भीतर कदम रखूंगा, या मैं बाहर ही रहूँगा। ‘शायद’ या ‘मुझे और समय की आवश्यकता है’ अपने आप से मजाक करना होता।”
एक अंदरूनी संघर्ष के बाद, अमेरिका के राष्ट्रपति के इस पूर्व सहयोगी ने अंततः अहसास किया कि ईसा मसीह उनकी पूरी निष्ठा के योग्य थे। वे लिखते हैं:
“और इस प्रकार शुक्रवार एकदम सुबह, जब मैं अकेले बैठे हुए समुद्र को निहार रहा था जो मुझे पसंद है, उस दौरान, शब्द जिनके बारे में मैं निश्चित रूप से कह नहीं सकता कि मैं उन्हें समझ पा रहा था या वे बस स्वाभाविक रूप से ही मेरे होठों से निकल पड़े: ‘प्रभु यीशु, मैं आप पर विश्वास करता हूँ। मैं आपको स्वीकार करता हूँ। कृपया मेरे जीवन में आएँ। मैं इसे आपको समर्पित करता हूँ।’”[21]
कोल्सन को पता चला कि उसके प्रश्नों, “मैं कौन हूँ?” “मैं यहाँ क्यों हूँ?” और “मैं कहाँ जाने वाला हूँ?” का उत्तर ईसा मसीह के साथ निजी संबंध में है। धर्म प्रचारक पौलुस लिखते हैं, “यीशु में ही हमें यह पता चलता है कि हम क्या हैं और किस लिए जी रहे हैं।” (इफिसियों 1:11, संदेश)
जब हम ईसा मसीह के साथ निजी संबंध बनाते हैं, तो वे हमारी आंतरिक रिक्तता को भर देते हैं, हमें शांति प्रदान करते हैं, और अर्थ और आशा की हमारी इच्छा को संतुष्ट करते हैं। और हमें हमारी पूर्ति के लिए क्षणिक उत्तेजना के सहारे की आवश्यकता नहीं रहती। जब वे हमारे भीतर प्रवेश करते हैं, वे हमारी वास्तविक, स्थायी प्रेम और सुरक्षा की गहरी अभिलाषाओं और आवश्यकताओं को भी संतुष्ट करते हैं।
और आश्चर्यजनक बात यह है कि ईश्वर स्वयं हमारे संपूर्ण ऋण चुकाने के लिए मानव रूप आए। इसलिए, हम अब पाप के दंड के अधीन नहीं हैं। पौलुस कुलुस्सियों को यह स्पष्ट रूप से कहते हैं जब वे लिखते हैं,
“आप उनके दुश्मन थे, अपने बुरे विचारों एवं कार्यों द्वारा उनसे पृथक, फिर भी वे आपको अपने दोस्त की तरह वापस लाते हैं। उन्होंने ऐसा अपने स्वयं के मानवीय शरीर को सूली पर चढ़ा प्राण त्याग करके किया। परिणामस्वरूप, वे आपको ईश्वर की उपस्थिति में ले आते हैं, और आप पवित्र और बेदाग हो जाते हैं जब आप उनके समक्ष बगैर किसी दोष के खड़े होते हैं।”
(कुलुस्सियों 1:21b-22a NLT)।
इस प्रकार ईश्वर वह कर देते हैं जो हम अपने आप करने में सक्षम नहीं थे। हम यीशु के त्यागपूर्ण मृत्यु द्वारा अपने पापों से मुक्त हो जाते हैं। यह इस प्रकार है कि कोई जनसंहार करने वाला व्यक्ति जज के सामने हो और उसे पूरा और संपूर्ण क्षमादान दे दिया जाए। वह क्षमादान के योग्य नहीं है, और न ही हम। ईश्वर द्वारा शाश्वत जीवन का उपहार बिल्कुल मुफ़्त है –और यह लेने के लिए है। परंतु इसके बावजूद हमें क्षमादान का प्रस्ताव दिया जाता है, उसे स्वीकार करना हमारे ऊपर है। निर्णय आपका है।
क्या आप अपने जीवन के उस बिंदु पर हैं, जहाँ आप प्रभु के मुफ़्त पेशकश को स्वीकार करना चाहेंगे?
शायद मैडोना, बोनो, लुईस और कोल्सन की तरह, आपका जीवन भी खाली है। आपने जो कुछ भी आजमाया उसने आपके अंदरूनी खालीपन को नहीं दूर किया। ईश्वर उस खालीपन को भर सकते हैं और आपको एक क्षण में परिवर्तित कर सकते हैं। उन्होंने आपको बनाया ताकि आपके जीवन में अभिप्रायों और उद्देश्यों की भरमार हो। यीशु ने कहा, “मेरा उद्देश्य संपूर्ण जीवन प्रदान करना है।” (यूहन्ना 10:10b)
या संभवतः आपके जीवन में चीज़ें सही ढंग से हो रही हैं परंतु आप बेचैन और अशांत हैं। आप महसूस करते हैं कि आपने ईश्वर के नियमों को तोड़ा है और उनके प्रेम और क्षमा से अलग हो गए हैं। आप ईश्वर के दंड से डरते हैं। यीशु ने कहा, “मैं तुम्हारे लिए एक उपहार छोड़ रहा हूँ—मन और हृदय की शांति। और मैं जो शांति देता हूँ, वह दुनिया से मिलने वाली शांति जैसी नहीं है।”
तो या आप बस व्यर्थ अनुसरणों वाली जीवन से थक गए हैं या अपने निर्माता के साथ शांति की कमी से परेशान हैं, इनका उत्तर ईसा मसीह हैं।
जब आप ईसा मसीह में अपना भरोसा रखते हैं, ईश्वर आपके सभी पापों को क्षमा कर देंगे—भूत, वर्तमान, और भविष्य और आपको अपनी संतान बना लेंगे। और उनकी प्यारी संतान के रूप में, वे आपको धरती पर जीवन का उद्देश्य और अभिप्राय प्रदान करते हैं तथा उनके साथ शाश्वत जीवन का भरोसा दिलाते हैं।
ईश्वर के बोल हैं, “जिन्होंने उन पर विश्वास किया और उन्हें स्वीकार किया, उन सबको उन्होंने अपनी संतान होने का अधिकार दिया।” (यूहन्ना 1:12)
पापों के लिए क्षमा, जीवन का उद्देश्य, और शाश्वत जीवन यह सब आपके लिए ही है। आप आस्थापूर्वक प्रार्थना करके बिल्कुल अभी यीशु को अपने जीवन में आमंत्रित कर सकते हैं। प्रार्थना ईश्वर से बातें करने के समान है। ईश्वर आपके हृदय को जानते हैं और आपके बोल की चिंता नहीं करते क्योंकि वे आपके हृदय की प्रवृत्ति के साथ हैं। एक सुझावित प्रार्थना निम्न है:
“प्रिय ईश्वर, मैं आपको निजी रूप से जानना चाहता हूँ तथा आपके साथ शाश्वत जीवन व्यतीत करना चाहता हूँ। हमारे पापों के लिए यीशु पर प्राण त्यागने के लिए धन्यवाद प्रभु यीशु। मैं अपने जीवन का द्वारा खोल रहा हूँ और अपने उद्धारक और प्रभु के रूप में आपका स्वागत करता हूँ। मेरे जीवन को अपने नियंत्रण में लें और मुझे बदल डालें, तथा मुझे वैसा व्यक्ति बना दें जैसा आप मुझे देखना चाहते हैं।
क्या यह प्रार्थना आपके हृदय की इच्छा को व्यक्त करती है? यदि ऐसा है, तो बस ऊपर सुझावित प्रार्थना को अपनी मातृभाषा में बोलें।
जब आप ईसा मसीह के प्रति प्रतिबद्ध होते हैं, वे आपके जीवन में प्रवेश कर जाते हैं, और आपके मार्गदर्शक, आपके परामर्शदाता, आपको सांत्वना प्रदान करने वाले तथा आपके सबसे बढ़िया मित्र बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त, वे आपको मुसीबतों और प्रलोभनों से निपटने की शक्ति देते हैं, और आपको एक नया अर्थपूर्ण, उद्देश्यपूर्ण और शक्तिमान जीवन का अनुभव करने के लिए मुक्त कर देते हैं।
चक कोल्सन ने नए उद्देश्य और शक्ति को पाया। कोल्सन निःसंकोच स्वीकार करते हैं कि ईसाई बनने से पहले, वे महत्वाकांक्षी, घमंडी, और आत्म—केंद्रित थे। उनमें जरूरतमंदों से प्रेम करने की कोई इच्छा या शक्ति नहीं थी। परंतु उनके विचारों और इरादों में यीशु के प्रति समर्पित होने के पश्चात् बुनियादी परिवर्तन हुए।
यीशु आपके लिए क्या करते हैं?
एक बार आप यीशु द्वारा हमें अपनी संतान बनाए रखने के लिए चुकाए गए मूल्य को समझ जाते हैं, हमारा जीवन पहले जैसा नहीं रह जाएगा। नए आस्तिक के रूप में, आप अभी भी प्रलोभन का अनुभव करेंगे, और अनेकों बार शंका और असफलता हो सकती है। लेकिन वे कभी भी आपको नहीं त्यागेंगे, और जैसे-जैसे आप उन्हें अपने जीवन में शामिल करते हैं, आप उनकी भक्ति तथा उनके लिए जिंदगी जीने की शक्ति का अनुभव करेंगे। यदि आप यीशु के साथ इस नए जीवन को आरंभ करने के लिए तैयार हैं, तो हम आपको वचन और विकास सिद्धांतों की समीक्षा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं:
यीशु आपके लिए क्या करते हैं?
यीशु में नया जीवन
यदि आप ईसा मसीह को अपने निजी उद्धारक और प्रभु स्वीकार करने का निर्णय ले लेते हैं, तो आप हमेशा के लिए उनकी संतान बन जाते हैं। उनकी संतान के रूप में, आपको एक विरासत प्रदान की जाती है जिसमें निम्नलिखित अद्भुत वादे शामिल हैं:
- यीशु आपके जीवन में प्रवेश करते हैं, फिर कभी छोड़ने के लिए नहीं।
- यीशु आपके सभी पापों को क्षमा कर देते हैं।
- यीशु आपको अपने साथ अनादि जीवन प्रदान करते हैं।
- यीशु आपकी सभी प्रार्थनाओं को सुनते हैं और उनका जवाब देते हैं।
- यीशु आपको उनके आज्ञापालन की शक्ति देते हैं।
यीशु का बिना शर्त प्रेम पाना
यीशु आप में अंतर्निवास, हमेशा आपके मित्र और प्रभु बने रहने का विश्वास दिलाते हैं।2 उनका प्रेम इस बात पर आधारित नहीं होता कि आप कितने अच्छे हैं या आप कैसा महसूस कर रहे हैं। अब आप जो भावनात्मक प्रखरता अनुभव कर सकते हैं, वह हमेशा नहीं रहेगा, परंतु यीशु रहेंगे।
युवा नेता समांथा टिडबॉल हमें बताती हैं कि जब वे किशोरावस्था में थीं, तब किस प्रकार उन्होंने कई लड़कों के साथ डेटिंग की और हर बार कुछ सप्ताहों की डेटिंग के बाद बोर हो जाती थी। उसने महसूस किया कि वह पीछा किए जाने से भावनात्मक खुशी मिलती थी – जो टिकाऊ नहीं होती थी। और वह कहती है कि पहली बार ईश्वर के साथ संबंध स्थापित करने पर पहली बार ऐसा ही कुछ था। जब प्रारंभिक भावनात्मक उत्तेजना समाप्त हो जाती, तो वह अंदर से खाली महसूस करती और अन्यत्र ध्यान पाने की तलाश जारी रखती थी। वह जानती थी कि ईश्वर उससे प्रेम करते हैं, परंतु उसने हमेशा उनका प्रेम महसूस नहीं किया।
उसने एक ब्लॉग लिखा,
मैंने यह जाना है कि मैं किसी भावना पर बल प्रयोग नहीं कर सकती। परंतु अब मैं अपनी जानकारी पर विचार कर सकती हूँ और भरोसा करती हूँ कि ईश्वर सचमुच मुझसे प्रेम करते हैं। मुझे इस पर भरोसा है कि यीशु ने जो बातें 1 यूहन्ना 4:9-10 में कही वे सब उनके लिए मायने रखते थे, “ईश्वर ने अपने इकलौते बेटे को इस दुनिया में भेज कर हमें दिखाया कि वह हम लोगों से कितना प्रेम करतेहैं, ताकि हम उनके माध्यम से सनातन जीवन जी पाएँ। यह असली प्रेम है – यह नहीं कि हम ईश्वर से प्रेम करते हैं, बल्कि वे हम लोगों से प्रेम करते थे और उन्होंने हमारे पापों को दूर करने के लिए अपने बेटे का त्याग किया।” यदि यीशु ने आपके और हमारे लिए प्राण त्यागे, तो यह हमारे अपने मोल के बारे में क्या कहता है? यीशु कहते हैं, “अपने किसी मित्र के लिए जीवन न्योछावर करने से बड़ा कोई प्रेम नहीं होता” (यूहन्ना 15:13)। स्पष्ट रूप से ईश्वर हमसे इतना प्रेम करते हैं कि हमारे लिए प्राण भी त्याग दें; इससे बढ़कर कोई और प्रेम नहीं हो सकता।
हम जैसे भी हैं ईश्वर हमसे प्रेम करते हैं। बेहतर जीवन जीना या गहरे विचार सोचने से ईश्वर आपको उससे ज्यादा प्रेम करने नहीं लगेंगे जितना वे हमें पहले से ही करते हैं। टिडबॉल कहती हैं, “ईश्वर के प्रेम को उस प्रेम से भ्रमित न करें जो आपको अन्य लोगों से मिलता है। लोगों से मिलने वाला प्रेम अकसर प्रदर्शन के साथ बढ़ता और गलतियों से घटता है। ईश्वर के प्रेम के साथ यह बात नहीं है। आप जहाँ भी हों वे आपसे प्रेम करते रहते हैं।”3
अपने जीवन को उनके लिए अर्थपूर्ण बनाना
जब आप इस बात पर विचार करते हैं कि यीशु ने आपके लिए क्या किया है, आप उनके लिए अपने जीवन को अर्थपूर्ण बनाना चाहेंगे। धर्मप्रचारक पौलुस इसे इस प्रकार व्यक्त करते हैं: “यीशु का प्रेम हमें बाध्य करता है, क्योंकि किसी ने सभी के लिए प्राण त्यागे, और इसलिए सभी मरे। और उन्होंने सभी के लिए प्राण त्यागे, ताकि जीवन जीने वाले अब अपने लिए न जिएँ, बल्कि उनके लिए, जिन्होंने उनके लिए प्राण त्यागे और पुनः जीवित हुए।”4
एक बार आप यीशु के साथ यात्रा आरंभ करते हैं, वे आपको वैसे व्यक्ति में परिवर्तित करना शुरू कर देते हैं, जैसा उन्होंने आपके बारे में सोच रखा था। लेकिन तत्काल परिणाम की अपेक्षा न करें; ईसाई जीवन एक मैराथन की तरह है स्प्रिंट की तरह नहीं। सर्वश्रेष्ठ धावक प्रशिक्षण में घंटों लगाते हैं।
ईसाई जीवन प्रशिक्षण में मूलतः पाँच क्षेत्र शामिल हैं:
- ईश्वर के उपदेशों में समय व्यतीत करें।
- प्रार्थना में उनके साथ समय बिताएँ।
- आस्था से उनका आज्ञापालन करना सीखें।
- दूसरों के साथ उनकी पूजा करें।
- दूसरों को उनके प्रेम एवं कृपा के बारे में बताएँ।
हम आपको मुफ्त संसाधन “चरम जीवन आरंभ करना” डाउनलोड करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जो आपको यह समझने में मदद करेंगे कि ईसाई विकास के इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों का किस प्रकार अभ्यास करें और उन्हें लागू करें। y-jesus.com/blog/downloads