क्या ईसा चरित सत्य हैं?
क्या नवविधान ईसा चरित ईसा मसीह के इतिहास के वास्तविक प्रत्यक्षदर्शी हैं, या साल दर साल कहानी में बदलाव आ गया है? क्या हमें नवविधान के वृत्तांतों को केवल यीशु पर आस्था के आधार पर मानना चाहिए, या उनकी विश्वसनीयता का कोई प्रमाण है?
ABC समाचार वाचक स्वर्गीय पीटर जेनिंग्स इज़राइल प्रसारण में थे जो ईसा मसीह पर एक विशेष टेलीविज़न हुआ करता था। उनके कार्यक्रम, “यीशु की खोज,” ने इस प्रश्न पर अन्वेषण किया कि क्या नवविधान के यीशु, ऐतिहासिक रूप से ठीक हैं।
जेनिंग्स ने ईसा चरित वृत्तांतों पर डिपॉल प्रोफेसर जॉन डॉमिनिक क्रॉसन, यीशु संगोष्ठी से क्रॉसन के तीन सहकर्मी, और दो अन्य बाइबिल विद्वानों के विचारों को विशेष रूप से दिखाया। (यीशु संगोष्ठी उन विद्वानों का समूह है जो यीशु के दर्ज शब्दों और कार्यों पर तर्क-वितर्क करते हैं और फिर ईसा चरित के कथनों की सच्चाई में वे कितना विश्वास करते हैं वह बताने के लिए लाल, गुलाबी, सलेटी, या काले मोतियों का उपयोग करके वोट देते हैं।)[1]
कुछ टिप्पणियां अद्भुत थीं। डा. क्रॉसन ने राष्ट्रीय टेलीविज़न पर न केवल यीशु के 80 प्रतिशत कथनों पर संदेह व्यक्त किया बल्कि यीशु के ईश्वरत्व, उनके चमत्कारों, और उनके पुनरुत्थान को भी नकार दिया। जेनिंग्स स्पष्ट रूप से क्रॉसन द्वारा प्रस्तुत किए गए यीशु की छवि से कुतूहल में थे।
वास्तविक बाइबिल इतिहास की खोज हमेशा समाचार होता है, इसलिए प्रत्येक वर्ष टाइम और न्यूज़वीक मरीयम, यीशु, मूसा, या इब्राहीम पर एक मुख्य लेख तलाशते हैं। या—किसे पता? —संभवतः इस वर्ष “बॉब होंगे: गायब हुए 13वें अनुयायी की अनकही कहानी।”
यह मनोरंजन है, और इसलिए न तो कभी जाँच-पड़ताल खत्म होगी और न ही उत्तर मिलेंगे, क्योंकि यह भविष्य के कार्यक्रमों को खत्म कर देगा। इसके बजाय, पूरी तरह भिन्न विचार वालों को सर्वाइवर के एपिसोड की तरह इकट्ठा कर दिया जाता है, जिससे मामले में स्पष्टता के बजाय निराशाजनक रूप से पेचीदगी पैदा हो जाती है।
लेकिन जेनिंग्स की रिपोर्ट एक मामले पर केंद्रित रही जिस पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए। क्रॉसन का कहना था कि यीशु के मूल वृत्तांत मौखिक परंपरा द्वारा संवार दिए गए और ये ईसाई धर्म प्रचारकों की मृत्यु के पश्चात् ही लिखे गए थे। इसलिए वे मुख्य रूप से अविश्वसनीय हैं और हमें वास्तविक यीशु का सटीक चित्रण प्रदान करने में असफल रहते हैं। हम यह कैसे जानें कि यह वास्तव में सही है?
अनुवाद में लुप्त?
तो, प्रमाण क्या दर्शाते हैं? हम दो साधारण प्रश्नों से आरंभ करते हैं: नवविधान के मूल दस्तावेज़ कब लिखे गए थे? और उन्हें किसने लिखा?
इन प्रश्नों का महत्व स्पष्ट होना चाहिए। अगर यीशु के वृत्तांत प्रत्यक्षदर्शियों की मृत्यु के पश्चात् लिखे गए थे, तो उनकी सटीकता कोई प्रमाणित नहीं कर सकता। परंतु अगर वास्तविक ईसाई धर्म प्रचारकों के जीवित रहते नवविधान लिखा गया हो, तो उनकी प्रामाणिकता स्थापित की जा सकती है। पतरस अपने नाम में हुई धांधली के बारे में बता सकते हैं, “अरे, मैंने यह नहीं लिखा है।” और मत्ती, मरकुस, लूका या यूहन्ना अपने यीशु के वृत्तांतों पर उठाए गए प्रश्नों या चुनौतियों का जवाब दे सकते हैं।
नवविधान के लेखक यीशु के प्रत्यक्षदर्शी वृत्तांतों का प्रतिपादन करने का दावा करते हैं। धर्मदूत पतरस इसे एक पत्र में इस प्रकार व्यक्त करते हैं: “जब हमने आपको प्रभु ईसा मसीह की शक्ति और उनके पुनरुत्थान के बारे में बताया था तो हम कोई धूर्त कहानी नहीं बना रहे थे। हमने स्वयं अपनी आँखों से उनका राजसी वैभव देखा था” (2 पतरस 1:16NLT)।
नवविधान का एक बड़ा हिस्सा धर्म प्रचारक पौलुस द्वारा नए गिरजों और निजी लोगों को लिखे गए 13 पत्र हैं। पौलुस का पत्र, मध्य 40 और मध्य 60 (ईसा मसीह पश्चात् 12 से 33 वर्ष के बीच) के बीच के हैं, और ये यीशु के जीवन और उनकी शिक्षा के आरंभिक प्रमाण हैं। विल ड्यूरंट ने पौलुस के पत्रों के ऐतिहासिक महत्व के बारे में लिखा है, “ईसा मसीह के ईसाई प्रमाणों की शुरुआत संत पौलुस के पत्रों से होती है। … किसी ने भी पौलुस के अस्तित्व, या उनके पतरस, याकूब और यूहन्ना से लगातार मुलाकात पर सवाल नहीं उठाया है; और पौलुस ईर्ष्यापूर्वक स्वीकार करते हैं कि ये लोग ईसा मसीह को व्यक्तिगत रूप से जानते थे।”[2]
परंतु क्या यह सत्य है?
पुस्तकों, पत्रिकाओं, और टीवी वृत्तचित्रों में, यीशु संगोष्ठी इस बात की ओर संकेत देती है कि ईसा चरित 130 से 150 ईसवी के बीच अज्ञात लेखकों द्वारा लिखे गए थे। अगर बाद की तिथियां सही हैं, तो ईसा की मृत्यु से लगभग 100 वर्षों का अंतर हो जाएगा (विद्वानों ने यीशु की मृत्यु 30 और 33 ईसवी के बीच मानते हैं)। और चूंकि सभी प्रत्यक्षदर्शियों की मृत्यु हो गई होगी इसलिए ईसा चरित केवल अज्ञात, कपटी लेखकों द्वारा ही लिखा जा सकता था।
तो, इस बात का हमारे पास क्या प्रमाण है कि यीशु के ईसा चरित वृत्तांत वाकई में कब लिखे गए थे? अधिकतर विद्वानों की सहमति यह है कि ईसा चरित धर्म प्रचारकों द्वारा पहली शताब्दी के दौरान लिखे गए थे। उन्होंने कई कारणों का उल्लेख किया जिसकी समीक्षा हम इसी आलेख में बाद में करेंगे। अभी के लिए, हालांकि, यह ध्यान रखें कि प्रमाणों के तीन प्राथमिक रूप उनके निष्कर्षों को ठोस बनाते प्रतीत होते हैं:
- मार्शियन और वैलेन्टिनस मत जैसे विधर्मियों की नवविधान पुस्तकों, प्रसंगों, और अनुच्छेदों का उल्लेख करने वाले प्रारंभिक दस्तावेज़ ( “मोना लिसा की कृत्रिम मुस्कुराहट” देखें)
- प्रारंभिक ईसाई स्रोत जैसे कि क्लेमेंट ऑफ़ रोम, इग्नेशियस, और पॉलीकार्प के अनगिनत लेख
- कार्बन-तिथि के अनुसार 117 ईसवी तक के ईसा चरित के अंशों की खोजी गई प्रतियाँ।
बाइबिल पुरातत्त्वविद् विलियम एल्ब्राइट ने अपने अनुसंधानों के आधार पर यह निष्कर्ष दिया कि सभी नवविधान पुस्तकें अधिकतर ईसाई धर्म प्रचारकों के जीवित रहते लिखी गईं थीं। उन्होंने लिखा, “हम पहले से ही सुस्पष्ट रूप से कह सकते हैं लगभग 80 ईसवी के बाद, आज के अधिक मौलिक नवविधान आलोचकों द्वारा 130 और 150 ईसवी के बीच दी गई तिथियों से पूरी दो पीढ़ियां पहले अब किसी पुस्तक की तिथि निर्धारण का कोई ठोस आधार नहीं है।[4] अन्यत्र एल्ब्राइट संपूर्ण नवविधान के लेखन को “संभवतः 50 ईसवी और 75 ईसवी के बीच कहीं रखते है।”[5]
प्रत्यक्ष रूप से संशयवादी विद्वान जॉन ए. टी. रॉबिन्सन नवविधान को सर्वाधिक रूढ़िवादी विद्वानों के मुकाबले ज्यादा पुराना मानते हैं। रीडेटिंगदनवविधान में रॉबिन्सन बलपूर्वक कहते हैं कि अधिकतर नवविधान 40 ईसवी और 65 ईसवी के मध्य लिखा गया था जिससे इसका लेखन ईसा के जीवित रहने के सात वर्ष बाद तक का हो जाता है।[6]अगर यह सही है, तो कोई भी ऐतिहासिक त्रुटि प्रत्यक्षदर्शियों और ईसाई धर्म के विरोधियों दोनों के द्वारा तत्काल ही उजागर कर दी गई होती।
तो आइए उन सूत्रों के निशान पर नज़र डालें जो हमें मूल दस्तावेजों से लेकर आज की नवविधान प्रतिलिपियों तक ले जाते हैं।
किंको की किसे आवश्यकता है?
ईसाई धर्म प्रचारकों के मूल लेख श्रद्धेय थे। गिरजाघरों ने उनका अध्ययन किया, उन्हें साझा किया, उन्हें गढ़े हुए खजाने की तरह सावधानीपूर्वक संरक्षित और संग्रहीत किया।
परंतु, हाय, 2,000 वर्षों की यात्रा, रोमन अधिकरण, और ऊष्मा-गतिकी (थर्मोडायनामिक्स)के दूसरे नियम का दुष्प्रभाव हुआ। तो, आज, हमारे पास उन मूल लेखों में से क्या है? कुछ नहीं। सभी मूल हस्तलिपियां लुप्त हो गईं (यद्यपि प्रत्येक सप्ताह बाइबिल के विद्वान, निस्संदेह इस आशा के साथ एंटिक्सरोडशो देखते हैं कि शायद कुछ प्रकट हो जाए)।
फिर भी यह अकेला नवविधान का दुर्भाग्य नहीं है; प्राचीन इतिहास का कोई अन्य तुलनायोग्य दस्तावेज भी आज मौजूद नहीं है। इतिहासकारों के पास अगर परीक्षण के लिए विश्वसनीय प्रतिलिपियां होती हैं तो वे मूल हस्तलिपियों के अभाव के कारण परेशान नहीं होते हैं। परंतु क्या नवविधान की प्राचीन प्रतिलिपियां उपलब्ध हैं, और हैं, तो क्या वे मूल के हूबहू हैं?
जैसे-जैसे गिरजाघरों की संख्या में गुणात्मक वृद्धि हुई, गिरजाघर प्रधानों के निरीक्षण में सैकड़ों प्रतिलिपियां सावधानीपूर्वक तैयार करवाई गईं। प्रत्येक अक्षर कुशलतापूर्वक चर्मपत्र या भोजपत्र पर लिपिबद्ध किए गए। और इसलिए, आज, विद्वान बची हुई प्रतिलिपियों (और प्रतिलिपियों की प्रतिलिपियां, और प्रतिलिपियों की प्रतिलिपियों की प्रतिलिपियां—आप समझ गए न) की प्रामाणिकता के निर्धारण और मूल दस्तावेजों के अत्यंत निकट के अनुमान पर पहुँचने के लिए उसका अध्ययन कर सकते हैं।
वास्तव में, प्राचीन साहित्य का अध्ययन करने वाले विद्वानों ने पाठ-आलोचना विज्ञान को दओडिसी जैसे दस्तावेजों की प्रामाणिकता के निर्धारण के उद्देश्य से जाँच करने, और अन्य प्राचीन दस्तावेजों से उनकी तुलना करने के लिए विकसित किया है। बहुत हाल ही में, सैन्य इतिहासकार चार्ल्स सैंडर ने तीन-खंड परीक्षण करके पाठ-आलोचना को संवर्धित किया है जो न केवल प्रतिलिपि की यथार्थता बल्कि लेखकों की विश्वसनीयता पर भी विचार करता है। उनके परीक्षण निम्नलिखित हैं:
1. ग्रंथ-सूची संबंधी परीक्षण
2. आंतरिक प्रमाण परीक्षण
3. बाहरी प्रमाण परीक्षण[7]
आइए देखें कि इन परीक्षणों को प्रारंभिक नवविधान की हस्तलिपियों पर लागू करने पर क्या होता है।
ग्रंथ-सूची संबंधी प्रमाण
यह परीक्षण दस्तावेज़ की तुलना उसी काल के अन्य प्राचीन इतिहास से करता है। यह प्रश्न करता है:
- मूल दस्तावेज़ की कितनी प्रतिलिपियां मौजूद हैं?
- मूल लेख और प्रारंभिक प्रतिलिपियों के बीच समय में अंतर है?
- अन्य प्राचीन इतिहास से दस्तावेज़ की तुलना कितनी अच्छी रहती है?
कल्पना करें अगर हमारे पास मूल नवविधान हस्तलिपियों की केवल दो या तीन प्रतिलिपियां होतीं। नमूना इतना छोटा होता कि संभवतः हम उसकी सटीकता सत्यापित नहीं कर पाते। दूसरी तरफ, अगर हमारे पास सैकड़ों या हजारों होती, तो हम आसानी से गलत तरीके से प्रेषित दस्तावेज़ों की त्रुटियों को निकाल देते।
तो, प्रतिलिपियों की संख्या और मूल से समयान्तर, इन दोनों के संदर्भ में अन्य प्राचीन लेखों से नवविधान की तुलना कितनी सही है? आज नवविधान की 5,000 से ज़्यादा हस्तलिपियां मूल यूनानी भाषा में मौजूद हैं। जब अन्य भाषाओं में अनुवाद की गिनती करते हैं, तो संख्या 24,000 हो जाती है जो कि चौंका देने वाली संख्या है—ये दूसरी से चौथी सदी के बीच की है।
इसकी तुलना प्राचीन ऐतिहासिक हस्तलिपि के दूसरे सबसे अच्छे दस्तावेज़, होमर की ईलियाद की 643 प्रतिलिपियों से करें।[8] और याद रखें कि अधिकतर प्रचीन ऐतिहासिक कार्यों के पास इसके मुकाबले में बहुत कम हस्तलिपियां हैं (सामान्यतः 10 से भी कम)। नवविधान विद्वान ब्रूस मेत्सगर ने टिप्पणी की, “इन आंकड़ों के विपरीत [अन्य प्राचीन हस्तलिपियों के आंकड़े], नवविधान के पाठ-आलोचक इसकी सामग्री की संपन्नता से घबड़ाए हुए हैं।”[9]
समयान्तर
न केवल हस्तलिपियों की संख्या महत्वपूर्ण है, बल्कि उतना ही महत्वपूर्ण मूल के लेखन समय और उसकी प्रतिलिपि बनने के मध्य समयान्तर है। प्रतिलिपि बनाने के क्रम में हजारों वर्षों के दौरान, यह कहा नहीं जा सकता कि पाठ किस रूप में विकसित हुआ होगा—लेकिन सौ वर्षों में, कहानी कुछ अलग होगी।
जर्मन आलोचक फर्डिनेंड क्रिस्चियन बौर (1792–1860) ने एक बार तर्क दिया था कि यूहन्ना का ईसा चरित 160 ईसवी तक नहीं लिखा गया था; इसलिए, यह यूहन्ना द्वारा नहीं लिखा गया हो सकता है। अगर यह सत्य है, तो न केवल यह यूहन्ना के लेखों को खोखला बनाएगा परंतु संपूर्ण नवविधान पर भी संदेह उत्पन्न कर देगा। लेकिन फिर, जब मिस्र में नवविधान के भोजपत्र का गुप्त भंडार मिला, उसमें यूहन्ना के ईसा चरित का टुकड़ा भी था (विशेष रूप से, P52: यूहन्ना 18:31-33) जिसकी तिथि यूहन्ना के मूल लेखन से करीब 25 वर्ष बाद की थी।
मेत्सगर बताते हैं, “जिस प्रकार रॉबिन्सन क्रूसो बालू में एक पैर के निशान को देखकर, इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि दो पैरों वाला कोई अन्य व्यक्ति उसके साथ उस द्वीप पर मौजूद था, इसी तरह P52 [टुकड़े का लेबल] दूसरी शताब्दी के पूर्वार्ध के दौरान चौथे ईसा चरित के अस्तित्व और नील नदी के साथ लगे प्रांतीय शहर में चौथे ईसा चरित की रचना के पारंपरिक स्थान (एशिया माइनर में एफिसस) से बहुत दूर इसके उपयोग की पुष्टि करता है।”[10]खोज दर खोज, पुरातत्व ने नवविधान के मुख्य भागों का पता लगाया है जिनकी तिथि मूल के 150 वर्षों के अंदर पाई गई।[11]
अधिकतर अन्य प्राचीन दस्तावेज़ों का समयान्तर 400 से 1,400 वर्षों तक का है। उदाहरण के लिए, अरस्तु का काव्यशास्त्र लगभग 343 ईसा पूर्व लिखा गया था, फिर भी सबसे प्रारंभिक प्रति की तिथि 1100 ईसवी है और इसकी केवल पाँच प्रतिलिपियां ही मौजूद हैं। और फिर भी कोई व्यक्ति यह दावा करते हुए ऐतिहासिक प्लैटो की खोज नहीं करता कि वे वास्तव में एक दार्शनिक नहीं बल्की तसल्ली देने वाले थे।
वास्तव में, कोडेक्स वैटिकनस नामक बाइबिल की लगभग पूर्ण प्रति मौजूद है जो ईसाई धर्म प्रचारकों के मूल लेख के केवल 250 से 300 वर्षों बाद ही लिखी गई थी। प्राचीन अन्सियल लिपि में, नवविधान की मानी गई सबसे पुरानी संपूर्ण प्रति कोडेक्स सिनाइटिकस अब ब्रिटिश संग्रहालय में है।
कोडेक्स वैटिकेनस की ही तरह, यह भी चौथी शताब्दी की है। ईसाई धर्म के प्रारंभिक इतिहास में, वैटिकेनस और सिनाइटिकस अन्य प्रारंभिक बाइबिल हस्तलिपि की ही तरह के हैं, इस मायने में कि वे एक दूसरे से मामूली रूप से ही भिन्न हैं और हमें यह अच्छी तरह बताती हैं कि मूल दस्तावेज में क्या कहा गया होगा।
यहां तक कि विद्वान आलोचक जॉन ए. टी. रॉबिन्सन ने भी यह स्वीकार किया, “हस्तलिपि की संपन्नता, और खास करके लेख और आरंभिक प्रचलित प्रति के बीच छोटा अंतराल, इसे विश्व के अब तक की प्राचीन लेखों की प्रतियों में सर्वोत्तम प्रमाणिक बनाती है।”[12]कानून के प्रोफेसर जॉन वारविक मोंटगोमरी ने पुष्टि की, “नवविधान पुस्तकों के परिणामी पाठ के बारे में संशयवादी होना, सभी पारंपरिक पुरावस्तुओं को अंधकार में खिसक जाने देने के समान है, क्योंकि प्राचीन काल का कोई भी दस्तावेज़ नवविधान के मुकाबले इतनी अच्छी तरह से प्रमाणित नहीं है।”[13]
बात यह है कि: अगर नवविधान का निर्माण वास्तविक घटना के इतना निकट हुआ और वह प्रसारित हुई, तो उनके द्वारा किए गए यीशु के चित्रण के सटीक होने की संभावना सर्वाधिक होगी। लेकिन विश्वसनीयता के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए बाहरी प्रमाण ही एकमात्र तरीका नहीं है; विद्वान इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए आंतरिक प्रमाणों का भी उपयोग करते हैं।
कोडेक्स सिनाइटिकस की खोज
1844 में जर्मन विद्वान कॉन्सटेंटाइन टिस्शेंडॉर्फ नवविधान की हस्तलिपियों की खोज कर रहे थे। संयोगवश, उन्होंने माउंट सिनाई के सेंट कैथरीन मठ के पुस्तकालय में पुराने पृष्ठों से भरी एक टोकरी देखी। जर्मन विद्वान उल्लासित होने के साथ-साथ हैरान हो गए थे। उन्होंने कभी भी इतनी पुरानी यूनानी हस्तलिपियां नहीं देखी थीं। टिस्शेंडॉर्फ ने पुस्ताकाध्यक्ष से उनके बारे में पूछा और यह जानकर ़डर गए कि पृष्ठों को ईंधन के रूप में उपयोग के लिए खतम कर दिया गया था। ऐसी दो भरी टोकरियों के पृष्ठों को पहले ही जला दिया गया था!
टिस्शेंडॉर्फ के उत्साह ने भिक्षुओं को सजग कर दिया, और उन्होंने और कोई हस्तलिपि उन्हें नहीं दिखाई। हालांकि, उन्होंने टिस्शेंडॉर्फ को उनके खोजे 43 पृष्ठों को ले जाने की अनुमति दे दी।
पंद्रह वर्षों बाद, टिस्शेंडॉर्फ इस बार रूसी ज़ार सिकंदर द्वितीय की सहायता से वापस सिनाई मठ में लौटे। वहाँ पहुंचने के बाद, एक भिक्षु टिसशेंडॉर्फ को अपने कमरे में ले गया और कपड़े में लिपटी हुई एक हस्तलिपि को बाहर निकाला जो कि एक अलमारी में कप और प्लेटों के साथ रखा हुई थी। टिस्शेंडॉर्फ ने तत्काल ही उस हस्तलिपि के बचे हुए मूल्यवान हिस्से को पहचान लिया जिसे उन्होंने पहले देखा था।
मठ, रूस के सार को यूनानी गिरजाघर के संरक्षक के रूप में हस्तलिपि प्रदान करने के लिए सहमत हो गया। 1933 में सोवियत संघ ने ब्रिटिश संग्रहालय को हस्तलिपि £100,000 में बेच दी।
कोडेक्स सिनाइटिकस हमारे पास नवविधान की सबसे प्रारंभिक पूर्ण हस्तलिपियों में से और सबसे महत्वपूर्ण प्रतिलिपियों में से एक है। कुछ व्यक्ति अंदाज़ा लगाते हैं कि यह उन 50 बाइबिलों में से एक है जिसे सम्राट कोनस्टेंटाइन ने यूसेबियस को चौथी सदी की शुरुआत में तैयार करने के लिए अधिकृत किया था। कोडेक्स सिनाइटिकस नवविधान की सत्यता की जांच करने वाले विद्वानों के लिए अत्यधिक मददगार रहा है।
आंतरिक प्रमाण परीक्षण
अच्छे जासूसों के समान, इतिहासकार गोपनीय सूत्रों को देखकर विश्वसनीयता सत्यापित करते हैं।
ऐसे सुराग लेखकों के उद्देश्यों तथा सत्यापित किए जा सकने वाले विवरणों और अन्य विशेषताओं के बारे में बताने की उनकी इच्छा को प्रकट करते हैं। इन विद्वानों द्वारा विश्वसनीयता के परीक्षण के लिए उपयोग किए जाने वाले मुख्य आंतरिक सुराग निम्नलिखित हैं:
- प्रत्यक्षदर्शियों के रिपोर्ट की अनुकूलता
- नाम, स्थान, और घटनाओं का विवरण
- व्यक्तियों या छोटे समूहों के लिए पत्र
- लेखकों को शर्मिंदा करने वाली विशेषताएँ
- अप्रासंगिक या प्रतिकूल सामग्री की उपस्थिति
- प्रासंगिक सामग्री का अभाव[14]
आइए फ़िल्म फ्राइडेनाइटलाइटकोउदाहरणकेरूपमेंलेतेहैं। वह ऐतिहासिक घटनओं पर आधारित होने का दावा करती है, परंतु वास्तविक घटनाओं पर अस्पष्ट रूप से आधारित अनेक फ़िल्मों की तरह ही यह आपको लगातार ऐसे प्रश्नों के साथ छोड़ देती है कि, “क्या घटनाएं सचमुच इस प्रकार हुई थीं?” तो, आप कैसे इसकी ऐतिहासिक विश्वसनीयता निर्धारित करेंगे?
एक सुराग अप्रासंगिक सामग्री की मौजूदगी होगा। मान लें कि फ़िल्म के मध्य में कोच, बगैर किसी स्पष्ट कारण के, एक फ़ोन कॉल प्राप्त करता है कि उसकी माँ को ब्रेन कैंसर है। इसका कथानक से कोई लेना-देना नहीं है और इसका उल्लेख दुबारा फिर नहीं होता है। इस अप्रासंगिक तथ्य की मौजूदगी की एकमात्र व्याख्या यह होगी कि ऐसा वास्तव में हुआ था और निर्देशक की इच्छा ऐतिहासिक रूप से सटीक होने की होगी।
उसी फ़िल्म से एक और उदाहरण। नाटक की निरंतरता क साथ-साथ हम यह चाहते हैं कि पर्मियन पैंथर्स राज्य प्रतियोगिता जीते। लेकिन वे नहीं जीतते हैं। यह नाटक के प्रतिकूल लगता है, और तत्काल ही हमें ज्ञात होता है कि यह इसलिए हुआ क्योंकि वास्तविक जीवन में पर्मियन खेल हार गया था। प्रतिकूल सामग्री की मौजूदगी भी ऐतिहासिक सटीकता का एक सुराग है।
अंत में, वास्तविक नगर और परिचित स्थलों जैसे कि ह्यूस्टन एस्ट्रोडम का उपयोग हमें कहानी के उन तत्वों को इतिहास की तरह मानने के लिए प्रेरित करता है, क्योंकि उनकी पुष्टि या खंडन बहुत आसान हैं।
ये आंतरिक प्रमाण इस बात के कुछ उदाहरण हैं कि किस प्रकार आंतरिक प्रमाण इस निष्कर्ष की ओर या इससे दूर ले जाते हैं कि दस्तावेज़ ऐतिहासिक रूप से विश्वसनीय है। हम कुछ समय के लिए नवविधान की ऐतिहासिकता के लिए आंतरिक प्रमाण पर नज़र डालेंगे।
नवविधान के कई पहलू हमें इसकी अपनी सामग्री और गुणों के आधार पर इस पर विश्वसनीयता के निर्धारण में सहायता करते हैं।
अनुकूलता
जाली दस्तावेज़ या तो प्रत्यक्षदर्शियों के रिपोर्ट को छोड़ देते हैं या वे अनुचित होते हैं। इसलिए ईसा चरितों में पूर्ण विरोधाभास यह सिद्ध करेगा कि उनमें त्रुटियां हैं। लेकिन एक ही समय पर, अगर ईसा चरित एकदम वही चीज़ बताते हैं, तो यह मिलीभगत का संदेह उत्पन्न करेगा। यह ऐसा होगा जैसे सह षड्यंत्रकारी अपनी योजना के हरेक विवरण पर सहमत होने का प्रयास कर रहा है। अत्यधिक संगतता वैसे ही संदेहास्पद है जैसे बहुत थोड़ी।
किसी अपराध या दुर्घटना के प्रत्यक्षदर्शी, सामान्यतः मुख्य घटनाओं को सही समझते हैं परंतु उन्हें भिन्न दृष्टिकोणों से देखते हैं। इसी तरह, चारों ईसा चरित यीशु के जीवन की घटनाओं का भिन्न दृष्टिकोणों से वर्णन करते हैं। फिर भी, इन दृष्टिकोणों के बावजूद, बाइबिल विद्वान उनके वृत्तांतों की संगतता और समपूरक रिपोर्टों के माध्यम से यीशु के जीवन और उनकी शिक्षा के स्पष्ट चित्रण के कारण हैरान हैं।
विवरण
इतिहासकार किसी दस्तावेज़ में विवरणों को बहुत पसंद करते हैं क्योंकि उनसे विश्वसनीयता सत्यापित करने में आसानी होती है। पौलुस के पत्र विवरणों से भरे हुए हैं। और ईसा चरित उनसे परिपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, लूका का ईसा चरित और प्रेरितों के काम की पुस्तक थियुफिलुस नामक एक कुलीन व्यक्ति के लिए लिखी गई थी, जो निस्संदेह उस समय का एक जाना-माना व्यक्ति था।
अगर ये लेख केवल ईसाई प्रचारकों की कल्पना होते तो उनके दुश्मन, यहूदियों और यूनानी नेताओं द्वारा जाली नामों, स्थानों, और घटनाओं की तुरंत पहचान कर ली गई होती। यह प्रथम शताब्दी का वॉटरगेट बन जाता। इसके बावजूद नवविधान के कई विवरण स्वतंत्र सत्यापन द्वारा सही सिद्ध हो चुके हैं। उदाहरण के लिए, पारंपरिक इतिहासकार, कोलिन हेमर “प्रेरितों के काम के अंतिम 16 अध्याय में 84 तथ्यों की शिनाख्त करते हैं जिनकी पुष्टि पुरातात्त्विक खोजों द्वारा हो चुकी है।”[15]
पूर्व की कुछ शताब्दियों में, बाइबिल के संशयवादी विद्वानों ने लूका के साहित्यिक कार्य और उनकी तिथि दोनों पर इस बात पर ज़ोर देते हुए आक्षेप किया, कि यह द्वितीय शताब्दी में किसी अज्ञात लेखक द्वारा लिखा गया था। पुरातत्त्वविद् सर विलियम रामसे इस पर आश्वस्त थे कि वे सही थे, और उन्होंने जाँच-पड़ताल आरंभ की। व्यापक खोज के पश्चात्, पुरातत्त्वविद ने अपना विचार पलट दिया। रामसे ने स्वीकार किया, “लूका प्रथम श्रेणी के इतिहासकार हैं। …इस लेखक को महानतम इतिहासकारों की श्रेणी में रखना चाहिए। …लूका का इतिहास अपनी विश्वसनीयता के संदर्भ में अद्वितीय है।”[16]
प्रेरितों के काम का वृतांत पौलुस की धर्म प्रचार की यात्राएं, उनके द्वारा भ्रमण किए गए स्थानों, उनके द्वारा देखे गए लोग, उनके द्वारा दिए गए संदेशों, और उनके द्वारा सहे गए उत्पीड़न को लिपिबद्ध करता है। क्या ये सभी विवरण जाली हो सकते हैं? रोमन इतिहासकार, ए. एन. शेर्विन-व्हाइट लिखते हैं, “प्रेरितों के काम के लिए ऐतिहासिकता की पुष्टि ज़बरदस्त है। …इसकी मौलिक ऐतिहासिकता को नकारने का कोई भी प्रयास अब बेतुका होना चाहिए। रोमन इतिहासकारों ने काफी समय तक इसे महत्व नहीं दिया।”[17]
पौलुस के पत्रों से लेकर ईसा चरित के वृत्तांतों तक, नवविधान के लेखकों ने खुले तौर पर विवरणों की व्याख्या की, यहां तक कि उस समय के जीवित व्यक्तियों के नामों का उल्लेख किया। इतिहासकारों ने कम से कम तीस ऐसे नामों का सत्यापन किया है।[18]
छोटे समूहों के लिए पत्र
अधिकतर जाली पाठ इस पत्रिका के लेख की तरह सामान्य और सार्वजनिक दोनों प्रकृति वाले दस्तावेज़ों से हैं (इसमें कोई संदेह नहीं है कि अनगिनत जाली चीजें पहले से ही चोर बाज़ार में वितरित की जा चुकी हैं)। ऐतिहासिक विशेषज्ञ लूई गौट्सचॉक यह देखते हैं कि छोटे समूह को संबोधित किए गए निजी पत्रों के विश्वसनीय होने की संभावना बहुत ज़्यादा होती है।[19] नवविधान के दस्तावेज़ किस श्रेणी में आते हैं?
ठीक है, उनमें कुछ स्पष्ट तौर पर व्यापक रूप से वितरित किए जाने वाले थे। इसके बावजूद नवविधान के एक बड़े भाग में छोटे समूहों और अकेले लोगों को लिखे गए निजी पत्र शामिल हैं। कम से कम इन दस्तावेजों को जालसाज़ी के प्राथमिक प्रत्याशी के रूप में नहीं देखा जाएगा।
शर्मनाक विशेषताएं
अधिकतर लेखक स्वयं को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा नहीं करना चाहते हैं। इसलिए इतिहासकारों ने यह देखा कि लेखकों को शर्मिंदा करने वाले दस्तावेज़ सामान्यतः विश्वास किए जाने योग्य होते हैं। नवविधान के लेखक स्वयं अपने बारे में क्या कहते हैं?
आश्चर्यजनक है कि नवविधान के लेखकों ने अपने आपको अधिकतर कम अक्लमंद, कायर, और बेईमान के रूप में प्रस्तुत किया है। उदाहरण के लिए, पतरस द्वारा सबसे महान कौन है के ऊपर यीशु या अनुयायियों द्वारा आपस में बहस के ऊपर तिगुनी अस्वीकृति —दोनों कहानियाँ ईसा चरित में दर्ज हैं। चूँकि शुरुआती गिरजाघरों में ईसाई धर्म प्रचारकों के प्रति सम्मान महत्वपूर्ण था, इस तरह की सामग्री को शामिल करने का कोई अर्थ नहीं है बशर्ते ईसाई धर्म प्रचारक इसे सच्चाई से न बता रहे हों।[20]
दस्टोरीऑफ़सिविलाइज़ेशनमें, विलड्यूरंटनेईसाईधर्मप्रचारकोंकेबारेमेंलिखाहै, “ये लोग किसी भी तरह वैसे नहीं थे कि उन्हें विश्व बदलने के लिए चुना गया होगा। ईसा चरित वास्तविक रूप से उनके चरित्रों में भेद करता है, और ईमानदारी से उनकी गलतियों को उजागर करता है।”[21]
प्रतिकूल या अप्रासंगिक सामग्री
ईसा चरित हमें बताते हैं कि यीशु की खाली कब्र की खोज एक औरत ने की थी, हालांकि इज़राइल में औरतों की गवाही लगभग निरर्थक मानी जाती थी, और यहां तक की कोर्ट में स्वीकार्य नहीं होती थी। यीशु की माँ और परिवार के सदस्य के कथन दर्ज हैं कि उनका मानना था कि वे मानसिक रूप से असंतुलित हो गए थे। ऐसा कहा जाता है कि सूली पर यीशु के कुछ अंतिम शब्द “हे प्रभु, हे प्रभु, आपने मुझे क्यों त्याग दिया?” थे। और इस तरह नवविधान में दर्ज ऐसे दृष्टांतों की सूची बढ़ती चली जाती है जो प्रतिकूल होते हैं यदि लेखक का उद्देश्य ईसा मसीह के जीवन और शिक्षा का सटीक प्रसार के बजाय कुछ और था।
प्रासंगिक सामग्री की कमी
यह व्यंगपूर्ण (या शायद तार्किक) है कि पहली सदी के गिरजाघर द्वारा सामना किए जाने वाले प्रमुख मुद्दे—गैर-यहूदी मिशन, आध्यात्मिक उपहार, बप्तिस्मा, नेतृत्व—में से बहुत कम यीशु के दर्ज शब्दों में प्रत्यक्ष रूप से संबोधित थे। यदि उनके अनुयायी केवल प्रगतिशील गिरजाघरों को प्रोत्साहित करने के लिए सामग्री तैयार कर रहे थे, तो यह अबोध्य है कि क्यों उन्होंने इन मुद्दों पर यीशु के निर्देशों की कल्पना नहीं की। एक मामले में, धर्म प्रचारक पौलुस एक खास विषय पर दो टूक कहते हैं, “इस संबंध में हमें प्रभु से कोई शिक्षा नहीं मिली है।”
बाहरी प्रमाण परीक्षण
दस्तावेज़ की विश्वसनीयता का तीसरा और अंतिम पैमाना बाहरी प्रमाण परीक्षण है, जो पूछता है, “क्या नवविधान से परे ऐतिहासिक रिकॉर्ड इनकी विश्वसनीयता की पुष्टि करते हैं?” तो, गैर-ईसाई इतिहासकारों ने ईसा मसीह के बारे में क्या कहा?
“कुल मिला कर, कम से कम सत्रह गैर-ईसाई लेख यीशु के जीवन, शिक्षा, मृत्यु और पुनरुत्थान, साथ ही प्रारंभिक गिरजाघरों से संबंधित पचास से अधिक विवरण दर्ज करते हैं।”[22] अगर उस काल से अन्य इतिहास की कमी को ध्यान में रखें तो यह चौंकाने वाली बात है,। उसी काल के दौरान अधिक स्रोतों द्वारा सीज़र के विजयों से अधिक यीशु का उल्लेख किया गया है। यह और भी अधिक चौंकाने वाला है क्योंकि नवविधान की ये पुष्टियाँ यीशु पश्चात 20 से 150 वर्षों के बीच की हैं, “प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथों के मुकाबले काफी पुरानी।”[23]
नवविधान की विश्वसनीयता 36,000 से अधिक अतिरिक्त बाइबिल संबंधी ईसाई दस्तावेज़ों (पहली तीन सदियों के गिरजाघरों के नेताओं के बोल) द्वारा और अधिक पुष्ट होती हैं जो कि नवविधान के अंतिम लेखन के दस वर्षों तक के हैं।[24] यदि नवविधान की सभी प्रतिलिपियां खो गई हों, तो कुछ छंदों के अपवाद के साथ आप इन दूसरे पत्रों और दस्तावेज़ों से यह पुनः बना सकते हैं।[25]
बोस्टन विश्वविद्यालय के सेवामुक्त प्रोफेसर होवार्ड क्लार्क की, इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि, “नवविधान से परे स्रोतों के परीक्षण का परिणाम जो …यीशु पर हमारा ज्ञान उनके ऐतिहासिक अस्तित्व, उनके अनुयायियों की भक्ति, उनकी मृत्यु के बाद आंदोलन का निरंतर अस्तित्व और उत्तरकालीन पहली सदी तक स्वयं रोम में …ईसाई धर्म के प्रसार …की पुष्टि करना है।”[26]
इस प्रकार बाहरी प्रमाण परीक्षण अन्य परीक्षणों द्वारा उपलब्ध प्रमाण पर स्थापित होता है। कुछ बुनियादी संशयवादियों की अटकलबाज़ी के बावजूद, वास्तविक ईसा मसीह का नवविधान चित्रण वस्तुतः दाग रोधी है। हालांकि यीशु संगोष्ठी जैसे कुछ विरोधी मौजूद हैं, विशेषज्ञों की सर्वसम्मति, उनकी धार्मिक आस्थाओं पर ध्यान दिए बगैर, इस बात की पुष्टि करती है कि जो नवविधान आज हम पढ़ते हैं वह यीशु के बोल और घटनाओं दोनों को यथार्थता के साथ दर्शाता है।
मैकमास्टर डिविनिटी कॉलेज में व्याख्या के प्रोफेसर, क्लार्क पिनॉक ने इस बात का उचित सार प्रस्तुत किया जब उन्होंने कहा, “प्राचीन दुनिया का कोई ऐसा दस्तावेज़ मौजूद नहीं है जिसकी गवाही इतने श्रेष्ठ मौलिक तथा ऐतिहासिक प्रमाणों के समूह देते हों। …एक ईमानदार [व्यक्ति] इस प्रकार के स्रोत को नजरअंदाज नहीं कर सकता। ईसाई धर्म के ऐतिहासिक प्रत्यायकों से संबंधित संशयवाद अतार्किक नींव पर आधारित है।”[27]
क्या यीशु वास्तव में मृत्यु से वापस लौट आए थे?
हमारे समय का सबसे बड़ा प्रश्न है कि “असली ईसा मसीह कौन है?” क्या वे केवल असाधारण व्यक्ति थे, या वे परमेश्वर का अवतार थे, जैसा कि पौलुस, यूहन्ना और उनके अन्य शिष्य मानते थे?
ईसा मसीह के प्रत्यक्षदर्शी वास्तव में इस प्रकार बोलते और कार्य करते थे जैसे कि उन्हें विश्वास था कि यीशु सूली चढ़ाए जाने के बाद वास्तव में मृत्यु से वापस लौट आए। यदि वे गलत थे तो ईसाई धर्म एक झूठ की नींव पर बनी है। परंतु अगर वे सही थे, तो ऐसा चमत्कार उन सब बातों को सिद्ध करेगा जो उन्होंने परमेश्वर, स्वयं, और हमलोगों के बारे में कहा था।
परंतु क्या हमें ईसा मसीह के पुनरुत्थान को केवल आस्था के रूप में मानना चाहिए, या इसका कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण भी है? अनेक संशयवादी व्यक्तियों ने पुनरुत्थान की बातों को गलत साबित करने के लिए ऐतिहासिक रिकॉर्ड की पड़ताल आरंभ कर दी। उन्होंने क्या पता लगाया?
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“>क्या यीशु ने बताया कि मृत्यु के बाद क्या होता है?
यदि यीशु सचमुच मृत्यु से वापस लौट आए थे, तो उन्हें पता होना चाहिए कि दूसरी ओर क्या है। यीशु ने जीवन का अर्थ और हमारे भविष्य के बारे में क्या बताया? क्या परमेश्वर तक पहुँचने के अनेक मार्ग हैं या यीशु ने केवल एक मार्ग के बारे में बताया था? चौंका देने वाले उत्तरों के लिए “यीशु क्यों?” पढ़ें
क्या यीशु जीवन को एक< उद्देश्य प्रदान कर सकते हैं>?
“यीशु क्यों?” उन प्रश्नों की ओर देखता है कि यीशु आज प्रासंगिक हैं या नहीं। क्या यीशु जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं: “मैं कौन हूँ?” “मैं यहाँ क्यों हूँ?” और, “मैं कहाँ जाने वाला हूँ?” खाली गिरजों और सूलियों ने कुछ लोगों को ऐसा विश्वास दिलाया कि वे ऐसा नहीं कर सकते, और यह कि यीशु ने हमें अनियंत्रित दुनिया से निपटने के लिए अकेला छोड़ दिया है। परंतु उन्हें अस्नेही या अशक्त बताने से पहले यीशु ने जीवन और जीवन के उद्देश्यों पर हमारे उद्देश्य के बारे में जो कुछ दावे किए हैं उनकी जांच करने की ज़रूरत है। यह लेख इस रहस्य की पड़ताल करता है कि यीशु धरती पर क्यों आए।
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संदर्भ
1. According to jesusseminar.org, “The Jesus Seminar was organized under the auspices of the Westar Institute to renew the quest of the historical Jesus. At the close of debate on each agenda item, Fellows of the Seminar vote, using colored beads to indicate the degree of authenticity of Jesus’ words or deeds.”
2. Will Durant, Caesar and Christ, vol. 3 of The Story of Civilization (New York: Simon & Schuster, 1972), 555.
3. Josh McDowall, The New Evidence That Demands A Verdict (Nashville: Thomas Nelson Publishers, 1999), 38.
4. William F. Albright, Recent Discoveries in Biblical Lands (New York: Funk & Wagnalls, 1955), 136.
5. William F. Albright, “Toward a More Conservative View,” Christianity Today, January 18, 1993, 3.
6. John A. T. Robinson, Redating the New Testament, quoted in Norman L. Geisler and Frank Turek, “I Don’t Have Enough Faith to Be an Atheist” (Wheaton, IL: Crossway, 2004), 243.
7. McDowell, 33-68.
8. McDowell, 34. Bruce M. Metzger, The Text of the New Testament (New York: Oxford University Press, 1992), 34.
9. McDowell, 38.
10. Metzger, 39.
11. Metzger, 36-41.
12. John A. T. Robinson, Can We Trust the New Testament? (Grand Rapids: Eerdmans, 1977), 36.
13. Quoted in McDowell, 36.
14. J. P. Moreland, Scaling the Secular City (Grand Rapids: Baker, 2000), 134-157.
15. Quoted in Geisler and Turek, 256.
16. Quoted in McDowell, 61.
17. Quoted in McDowell, 64.
18. Geisler and Turek, 269.
19. J. P. Moreland, 136-137.
20. Geisler and Turek, 276.
21. Durant, 563.
22. Gary R. Habermas, “Why I Believe the New Testament is Historically Reliable,” Why I am a Christian, eds Norman L. Geisler & Paul K. Hoffman (Grand Rapids, MI: Baker, 2001), 150.
23. Ibid.
24. Ibid.
25. Metzger, 86.
26. Quoted in McDowell, 135.
27. Quoted in Josh McDowell, The Resurrection Factor (San Bernardino, CA: Here’s Life Publishers, 1981), 9.