क्या कोई डा विंची साजिश थी?
डा विंची कोड को काल्पनिक कथानक के रूप में नज़रंदाज नहीं किया जा सकता। राजनीतिक उद्देश्यों के लिए ईसा मसीह को पुनः गढ़ने का इसका आधार सीधा ईसाई धर्म की नींव पर हमला करता है। इसके लेखक डैन ब्राउन ने राष्ट्रीय टेलीविज़न पर कहा कि कथानक के काल्पनिक होने के बावजूद वह यह मानते हैं कि यीशु की पहचान से संबंधित इसका वृत्तांत सत्य है। तो सत्य क्या है? आइए एक नज़र डालें।
• क्या यीशु ने मैरी मग्दलीनि से गुप्त रूप से विवाह किया था?
• क्या यीशु के देवत्व की गढ़ना कॉन्सटेंटाइन और गिरजा द्वारा किया गया था?
• क्या यीशु के वास्तविक रिकॉर्ड नष्ट कर दिए गए?
• क्या हाल में प्राप्त हुई हस्तलिपियां यीशु के बारे में सत्य बताती हैं?
क्या यीशु को पुनः गढ़ना किसी बड़े षड्यंत्र का परिणाम है? पुस्तक और फ़िल्म, डा विंची कोड के अनुसार बिल्कुल ऐसा ही हुआ। पुस्तक में यीशु के बारे में अनेक दावों से षड्यंत्र की बू आती है। उदाहरण के लिए, पुस्तक बताती है:
“यह कोई नहीं कह रहा कि यीशु पाखंडी थे, या उनका पृथ्वी पर आगमन हुआ और उन्होंने लाखों लोगों को बेहतर जीवन जीने के लिए प्रेरित िकिया था। हम केवल इतना कह रहे हैं कि कॉन्सटेंटाइन ने ईसा के गहरे प्रभाव और महत्व का फायदा उठाया था। और ऐसा करते हुए उसने ईसाई धर्म को ऐसा रूप दिया जिसे आज हम जानते हैं।”[1]
क्या डैन ब्राउन की सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तक का चौंकाने वाला यह दावा सही हो सकता है? या इसके पीछे का आधार केवल एक अच्छी साजिश वाले उपन्यास का मसाला भर है—इस पर विश्वास करने के समान है कि अन्यदेशीय, रोज़वेल, न्यू मेक्सिको में दुर्घटनाग्रस्त हुए थे, या JFK की हत्या के समय घास के टीले में एक दूसरा हत्यारा भी था? कहानी दोनों ही तरह से सम्मोहक है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि ब्राउन की पुस्तक दशक की सर्वाधिक बिकने वाली कहानियों में से एक बन गई।
यीशु साजिश
डा विंची कोड का आरंभ फ़्रांसीसी संग्रहालय के निरीक्षक जैक्स सॉनियर नामक व्यक्ति की हत्या से होता है। उसकी मृत्यु से पहले उसके द्वारा छोड़े गए संदेश को समझने के लिए हार्वर्ड के विद्वान प्राध्यापक और एक खूबसूरत फ़्रेंच कूट-विशेषज्ञ को अधिकृत किया जाता है। संदेश ने मानवीय इतिहास की सबसे गंभीर साजिश को प्रकट किया: यूनानी कैथोलिक गिरजा की ओपस डे नामक गुप्त शाखा द्वारा ईसा मसीह का वास्तविक संदेश।
मृत्यु के पहले निरीक्षक के पास ऐसा प्रमाण था जो ईसा के देवत्व को असत्य सिद्ध कर सकता था। हालांकि (कथानक के अनुसार) गिरिजाघर ने सदियों तक प्रमाणों को दबाने का प्रयास किया, महान विचारकों और कलाकारों ने हर जगह सुरागों को छिपाया: डा विंची के चित्रों में जैसे कि मोना लिसा और लास्ट सपर में, प्रधान गिरजा घर की वास्तुकला में, यहां तक की डिज़नी के कार्टून में भी। पुस्तक के मुख्य दावे निम्न हैं:
• रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन ने ईसा मसीह को देवता साबित करने के लिए साजिश की।
• कॉन्सटेंटाइन ने निजी रूप से नवविधान की पुस्तकों का चयन किया।
• महिलाओं के दमन हेतु, पुरुषों द्वारा गूढ़ज्ञानवादी ईसा चरित प्रतिबंधित किए गए।
• यीशु और मैरी मग्दलिनी ने गुप्त रूप से विवाह किया और उनका एक बच्चा हुआ।
• हज़ारों गुप्त दस्तावेज़ ईसाई धर्म की मुख्य बातों को असत्य सिद्ध करते हैं।
ब्राउन अपनी साजिश को पुस्तक की काल्पनिकता के विशेषज्ञ, ब्रिटेन के राजकीय इतिहासकार सर ले टीबिंग के माध्यम से उजागर करते हैं। ज्ञानी वृद्ध विद्वान के रूप में प्रस्तुत किए गए टीबिंग, कूट विशेषज्ञ, सोफी नेवू को बताते हैं कि 325 ई. में नायसिया के परिषद में यीशु के देवत्व समेत “ईसाई धर्म के कई पहलुओं पर बहस हुई और उस पर मत बताए गए।”
वे कहते हैं “इतिहास में उस पल तक यीशु को उनके अनुयायी एक नश्वर पैगंबर … एक महान और शक्तिशाली व्यक्ति के रूप में देखते थे लेकिन फिर भी एक व्यक्ति ही के रूप में।”
नेवू हैरान है। “ईश्वर का पुत्र नहीं?” वह पूछती है।
टीबिंग स्पष्ट करते हैं: “यीशु को ‘ईश्वर के पुत्र के रूप में आधिकारिक तौर पर नायसिया के परिषद में प्रस्तावित किया गया और उस पर मत दिया गया।”
“रुको। आप कह रहे हैं यीशु का देवत्व एक मत का परिणाम था?”
“वह भी अपेक्षाकृत नज़दीकी मत,” टीबिंग ने स्तब्ध कूट विशेषज्ञ से कहा।[2]
इसलिए, टीबिंग के अनुसार यीशु को 325 ईसवी में नायसिया के परिषद तक ईश्वर नहीं माना जाता था, जब यीशु के वास्तविक रिकॉर्ड को कथित रूप से प्रतिबंधित और नष्ट कर दिया गया। इसलिए, सिद्धांत के अनुसार ईसाई धर्म की संपूर्ण बुनियाद एक झूठ पर टिकी है।
डा विंची कोड ने अपनी कहानी को अच्छे से बेचा, पाठकों की टिप्पणियां आकर्षित की, जैसे “अगर यह सत्य नहीं होता तो यह प्रकाशित नहीं हो सकता था!” किसी अन्य ने कहा कि वह “दोबारा कभी गिरजा में कदम नहीं रखेगा।” पुस्तक के एक समीक्षक ने इसकी सराहना इसके “त्रुटिहीन अनुसंधान” के लिए किया है।[3] एक काल्पनिक कृति के लिए अत्यधिक विश्वसनीय।
आइए कुछ पल के लिए मान लें कि शायद टीबिंग का प्रस्ताव सत्य हो। उस स्थिति में क्यों नायसिया के परिषद ने यीशु को ईश्वरत्व के लिए प्रोत्साहित करने का निर्णय किया?
“यह सब केवल सत्ता के लिए था,” टीबिंग जारी रखते हैं। “मसीहा के रूप में ईसा, गिरजा और राज्य के काम काज के लिए महत्वपूर्ण थे। कई विद्वान यह दावा करते हैं कि प्रारंभिक गिरजा ने यीशु को उनके वास्तविक अनुयायियों से पूरी तरह से चुरा लिया, उनके मानवीय संदेशों को हथिया कर उसे देवत्व के अभेद्य लबादे से ढक दिया, और उसका उपयोग अपनी सत्ता के विस्तार में किया।”[4]
डा विंची कोड कई प्रकार से साजिश की सर्वश्रेष्ठ परिकल्पना थी। अगर ब्राउन के दावे सही हैं तो हमसे गिरजाघरों द्वारा, इतिहास द्वारा, और बाइबिल द्वारा—झूठ बोला गया। शायद उनके द्वारा भी जिन पर हम सबसे अधिक विश्वास करते हैं: हमारे माता-पिता या हमारे शिक्षक। और यह सब केवल सत्ता हासिल करने के लिए था।
हालांकि डा विंची कोड काल्पनिक है, उसके ज़्यादातर आधार वास्तविक घटनाओं (नायसिया परिषद), वास्तविक लोग (कॉन्सटेंटाइन और एरियस), और वास्तविक दस्तावेज़ों (गूढ़ज्ञानवादी ईसा चरित) पर आधारित है। अगर हमें साजिश की तह तक जाना है, तो हमारी योजना ब्राउन के आरोपों का पता लगाने और तथ्य को कल्पना से अलग करने की होनी चाहिए।
कॉन्सटेंटाइन और ईसाई धर्म
रोमन साम्राज्य पर कॉन्सटेंटाइन के शासनकाल से पूर्व शताब्दियों में ईसाईयों को निर्दयतापूर्वक सताया जाता था। लेकिन फिर, युद्ध में फंसे रहने के दौरान, कॉन्सटेंटाइन ने आकाश में एक चमकदार क्रूस देखा जिस पर “इसके द्वारा जीतो” खुदा हुआ था। उसने युद्ध में क्रूस के निशान के अधीन रहते हुए कूच किया और साम्राज्य पर नियंत्रण पा लिया।
कॉन्सटेंटाइन का ईसाई धर्म में प्रत्यक्ष धर्म-परिवर्तन गिरजा के इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना थी। रोम एक ईसाई साम्राज्य बन गया। लगभग 300 वर्षों के इतिहास में पहली बार ईसाई होना अपेक्षाकृत सुरक्षित, और यहां तक कि शान की बात थी।
अब ईसाइयों को उनके धर्म के कारण नहीं सताया जाता था। कॉन्सटेंटाइन ने तब अपने पूर्वी और पश्चिमी साम्राज्य को एकजुट करने पर ध्यान दिया जो ज़्यादातर ईसा की पहचान के आधार पर पूरी तरह से फूट, संप्रदायों और पंथ में विभाजित था।
ये डा विंची कोड में सत्य के कुछ सार हैं और किसी भी सफल साजिश वाली परिकल्पना की पहली आवश्यकता सत्य के सार होते हैं। लेकिन पुस्तक का कथानक कॉन्सटेंटाइन को षड्यंत्रकारी में बदल देता है। तो आइए ब्राउन की परिकल्पना द्वारा उठाए गए मुख्य प्रश्न का पता लगाएं: क्या कॉन्सटेंटाइन ने यीशु के देवत्व का ईसाई सिद्धांत प्रतिपादित किया?
यीशु का देवत्वारोपण
ब्राउन के आरोपों का उत्तर देने के लिए हमें सर्वप्रथम यह निर्धारित करना चाहिए कि कॉन्सटेंटाइन द्वारा नायसिया में बुलाई गई परिषद के पहले ईसाई धर्म का सामान्य विश्वास क्या था।
ईसाई लोग यीशु को ईश्वर के रूप में पहली सदी से पूजते आ रहे थे। परंतु चौथी शताब्दी में पूर्व की गिरजा के एक नेता, एरियस ने ईश्वर की एकात्मकता के समर्थन में प्रचार करना आरंभ किया। उसने बताया कि यीशु विशेष रूप से पैदा किए गए थे, वे देवदूतों से ऊपर थे, परंतु ईश्वर नहीं थे। दूसरी ओर एथानेसियस और गिरजा के अधिकतर नेता इस बात से सहमत थे कि यीशु ईश्वर का अवतार थे।
कॉन्सटेंटाइन इस आशा में इस विवाद का समाधान करना चाहते थे कि इससे उनके साम्राज्य में शांति आएगी तथा पूर्वी और पश्चिमी वर्ग एकजुट हो पाएंगे। इसलिए 325 ईसवी में उसने पूरी ईसाई दुनिया से 300 से ज़्यादा बड़े पादरी को नायसिया (अब तुर्की का हिस्सा है) बुलाया था। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि प्रारंभिक गिरजा क्या सोचते थे, यीशु सृजनकर्ता हैं या मात्र एक सृजन हैं—ईश्वर के पुत्र या बढ़ई के बेटे? तो ईसाई प्रचारकों ने यीशु के बारे में क्या सिखाया? उनके सबसे पहले दर्ज किए गए कथनों में ही उन्होंने यीशु को ईश्वर माना। यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान के लगभग 30 वर्षों बाद, पौलुस ने फिलिप्पियों को लिखा था कि यीशु मानवीय रूप में ईश्वर हैं (फिलिप्पियों 2:6-7, NLT)। और एक निकट प्रत्यक्षदर्शी यूहन्ना ने यीशु के देवत्व की निम्नलिखित वाक्यों में पुष्टि की है:
आरंभ में यह शब्द पहले से ही मौजूद था। वह ईश्वर के साथ थे, और वह ईश्वर थे। उसने हर एक चीज बनाई। ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे उन्होंने नहीं बनाया। जीवन स्वयं उनके भीतर था। इसलिए शब्द मानव बन गया और पृथ्वी पर हमारे बीच रहने लगा (यूहन्ना 1: 1-4, 14, NLT)।
यूहन्ना 1 के ये वाक्य एक प्राचीन हस्तलिपि में पाए गए हैं और इसकी कार्बन-तिथि 175-225 ईसवी है। इस प्रकार कॉन्सटेंटाइन द्वारा नायसिया परिषद आयोजित करने के सौ वर्ष पूर्व ही यीशु को निश्चित रूप से ईश्वर बोला जाने लगा था। हम अब देखते हैं कि हस्तलिपि का न्यायिक प्रमाण द डा विंची कोड के इस दावे का खंडन करता है कि यीशु का देवत्व चौथी शताब्दी की कल्पना थी। परंतु इतिहास हमें नायसिया के परिषद के बारे में क्या बताता है? ब्राउन अपनी पुस्तक में टीबिंग के माध्यम से कहते हैं कि नायसिया में बड़े पादरियों ने बहुमत से एरियस के इस विश्वास को नामंज़ूर कर दिया कि यीशु एक “नश्वर पैगंबर” थे और यीशु के देवत्व के सिद्धांत को “अपेक्षाकृत बहुमत” से अपनाया। सही या गलत?
वास्तव में, वोट भारी बहुमत वाले थे: 318 बड़े पादरियों में से केवल दो ने असहमति जताई थी। यद्यपि एरियस का यह विश्वास था कि परमपिता ही एकमात्र ईश्वर थे और यीशु उनका सर्वोच्च सृजन था, परिषद इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यीशु और परमपिता में समान ईश्वरीय गुण थे।
परमपिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा को भिन्न, समकालीन, सहशाश्वत व्यक्ति, परंतु एक ईश्वर माना गया था। तीन व्यक्तियों में एक ईश्वर के सिद्धांत को नायसिन पंथ के रूप में जाना गया और यह ईसाई धर्म का केंद्रीय मूल है। अब यह सही है कि एरियस प्रबोधक थे और उनका काफी प्रभाव था। काफी विवाद के बाद भारी बहुमत मिला। परंतु परिषद ने अंत में ज़बरदस्त ढंग से एरियस को विधर्मी घोषित कर दिया क्योंकि यीशु के देवत्व का वर्णन करने वाली उसकी शिक्षा धर्म प्रचारकों द्वारा दी गई शिक्षा के विरुद्ध थी।
इतिहास भी इसकी पुष्टि करता है कि यीशु अपने अनुयायियों द्वारा अपनी भक्ति को सार्वजनिक रूप से अनदेखा करते थे। और जैसा कि हमने देखा कि पौलुस और अन्य धर्मप्रचारक स्पष्ट रूप से मानते थे कि यीशु ईश्वर हैं और पूजनीय हैं।
ईसाई गिरजा के पहले दिन से ही यीशु मात्र एक मानव से कहीं अधिक माने जाते थे और उनके अधिकतर अनुयायी उन्हें ईश्वर-सृष्टिकर्ता के रूप में पूजते थे। तो यदि गिरजाघर यीशु को 200 वर्ष पूर्व से ईश्वर मान रहे थे तो कॉन्सटेंटाइन कैसे यीशु के देवत्व सिद्धांत का आविष्कार कर सकता था? द डा विंची कोड इस प्रश्न को संबोधित नहीं करता है।
ग्रंथ-संग्रह पर हमला
द डा विंची कोड यह भी उल्लेख करता है कि कॉन्सटेंटाइन ने हमारे वर्तमान नवविधान ग्रंथ-संग्रह (धर्मप्रचारकों के प्रमाणिक प्रत्यक्षदर्शी वृत्तांत के रूप में गिरजा द्वारा मान्यताप्राप्त) में प्राप्त दस्तावेज़ों के अलावा यीशु से संबंधित सभी दस्तावेज़ों को दबा दिया था। यह आगे उल्लेख करता है कि कॉन्सटेंटाइन और बड़े पादरियों ने यीशु को ईश्वर के रूप में ईजाद करने के लिए नवविधान वृत्तांत में फेर बदल किया। द विंची कोड साजिश का अन्य महत्वपूर्ण तत्व यह है कि चार नवविधान ईसा चरित कुल “80 से अधिक ईसा चरित” से लिए गए थे जिसमें से अधिकतर कॉन्सटेंटाइन द्वारा कथित रूप से दबा दिए गए थे।[5]
यहां पर दो केंद्रीय मुद्दे हैं और हमें दोनों पर चर्चा करने की आवश्यकता है। पहला यह है कि क्या कॉन्सटेंटाइन ने नवविधानमें फेरबदल किया या उसके चयन में पक्षपात किया। दूसरा कि क्या उसने उन दस्तावेजों को निकाल दिया जिन्हें बाइबिल में शामिल होना चाहिए था।
पहले मुद्दे के संदर्भ में दूसरी सदी के गिरजा नेताओं और विधर्मियों द्वारा लिखे गए पत्र और दस्तावेज़ समान रूप से नवविधान की पुस्तकों के व्यापक उपयोग की पुष्टि करते हैं। कॉन्सटेंटाइन द्वारा नायसिया परिषद आयोजित करने के लगभग 200 वर्ष पहले, विधर्मी मारसियन ने नवविधान की 27 में से 11 पुस्तकों को धर्मप्रचारकों के प्रमाणिक लेख के रूप में सूचीबद्ध किया।
और लगभग उसी समय एक अन्य विधर्मी, वैलेन्टियस नवविधान के प्रसंगों और वाक्यों की व्यापक विविधता का ज़िक्र करता है। चूंकि ये दोनों विधर्मी प्रारंभिक गिरजा अगुआओं के विरोधी थे तो वे वह नहीं लिख रहे थे जो बड़े पादरी चाहते थे। फिर भी प्रारंभिक गिरजा की तरह वे भी उसी नवविधान की पुस्तकों को उल्लिखित करते थे जिन्हें हम आज पढ़ते हैं।
तो अगर कॉन्सटेंटाइन और नायसिया परिषद के 200 वर्ष पहले ही नवविधान व्यापक रूप से उपयोग में था तो सम्राट कैसे उसका ईजाद या उसमें फेरबदल कर सकता था? उस समय तक गिरजा दूर-दूर तक फैल गया था और लाखों नहीं तो सैकड़ों हज़ारों समर्थकों को शामिल कर चुका था जिनमें से सभी नवविधानके वृत्तांतों से परिचित थे।
अपनी पुस्तक द डा विंची कोड के एक विश्लेषण द डा विंची डिसेप्शन में डा. इर्विन लुत्ज़र कहते हैं,
“कॉन्सटेंटाइन ने यह निर्धारित नहीं किया कि कौन सी पुस्तकें धर्म-ग्रंथ में होंगी; वास्तव में, नायसिया की परिषद् में धर्म-ग्रंथ का विषय आया ही नहीं था। उस समय तक प्रारंभिक गिरजा उन धर्म-ग्रंथों को पढ़ रहे थे जिन्हें तय किया गया था कि वे दो सौ वर्ष पूर्व ईश्वर के बोल थे।”[6]
हालांकि आधिकारिक धर्म-ग्रंथ को अंतिम रूप देने में अभी भी कई वर्ष थे, आज के नवविधान को नायसिया से दो शताब्दी पहले भी प्रमाणिक समझा जाता था।
यह हमें हमारे दूसरे मुद्दे पर लाता है; क्यों ये इन रहस्यमय गूढ़ज्ञानवादी ईसा चरितों को नष्ट किया गया और नवविधानसे निकाला गया? पुस्तक में टीबिंग निश्चित करते हैं कि परिषद में कॉन्सटेंटाइन द्वारा नियुक्त 50 अधिकृत बाइबिल से गूढ़ज्ञानवादी लेखों को हटा दिया गया। वह रोमांचित होकर नेवू से कहता है:
“क्योंकि कॉन्सटेंटाइन ने यीशु की प्रतिष्ठा को उनकी मृत्यु के लगभग चार शताब्दी बाद बढ़ाया, हज़ारों ऐसे दस्तावेज़ पहले से ही मौजूद थे जिसमें यीशु के जीवन को नश्वर व्यक्ति के रूप में लिपिबद्ध किया गया था। कॉन्सटेंटाइन जानता था कि इतिहास की पुस्तकों को पुनः लिखने के लिए उसे एक बड़े प्रहार की ज़रूरत है। यहां से ईसाईयों के इतिहास का सबसे गंभीर पल प्रकट हुआ। …कॉन्सटेंटाइन ने नए बाइबिल के निर्माण को अधिकृत किया और वित्तीय सहायता दी जिससे ईसा की मानवीय विशेषताओं को बताने वाले ईसा चरितों को निकाल दिया और उन वृत्तांतों को अलंकृत किया गया जिन्होंने उन्हें ईश्वरस्वरूप बनाया। पहले के ईसा चरितों को गैरकानूनी करार देकर एकत्रित किया गया और जला दिया गया।”[7]
क्या ये गूढ़ज्ञानवादी लेखन ईसा मसीह का वास्तविक इतिहास हैं? आइए यह देखने के लिए गहराई से नज़र डालें कि क्या हम सत्य को कल्पना से अलग कर सकते हैं।
रहस्य “जानने वाले”
गूढ़ज्ञानवादी ईसा चरितों का संबंध गूढ़ज्ञानवादी (जो यहां एक आश्चर्यजनक बात है) नामक समूह से लगाया जाता है। उनका नाम यूनानी शब्द gnosis से आता है, जिसका मतलब “ज्ञान” है। वे लोग समझते थे कि उनके पास रहस्य था, एक ऐसा विशेष ज्ञान जो सामान्य आदमी से छिपा हुआ था।
52 लेखों में से वास्तव में केवल पाँच ईसा चरित के रूप में सूचीबद्ध हैं। जैसा कि हम देखेंगे ये तथाकथित ईसा चरित स्पष्ट रूप से नवविधान ईसा चरित मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्ना से भिन्न हैं।
जैसे-जैसे ईसाई धर्म का विस्तार हुआ गूढ़ज्ञानवादियों ने ईसाई धर्म के कुछ सिद्धांतों और तत्वों को अपने विचारों में सम्मिलित किया और गूढ़ज्ञानवाद को नकली ईसाई धर्म रूप में बदल दिया। शायद उन्होंने अपनी भर्ती संख्या को बढ़ाए रखने के लिए और यीशु को अपने अभियान के लिए चेहरा बनाने के लिए ऐसा किया। हालांकि, अपनी विचार प्रणाली को ईसाई धर्म के योग्य बनाने के लिए यीशु को फिर से ईजाद करने की, उनकी मानवीयता और पूर्ण देवत्व दोनों को स्पष्ट करने की आवश्यकता थी।
द ऑक्सफ़ोर्ड हिस्ट्री ऑफ़ क्रिस्चनियटी में जॉन मैकमैनर्स ने ईसाई और मिथकीय आस्था के गूढ़ज्ञानवादी मिश्रण के बारे में लिखा।
“गूढ़ज्ञानवाद कई सामग्रियों वाली एक ब्रह्मविद्या थी (और अभी भी है)। गुह्यविद्या और प्राच्य रहस्यवाद को ज्योतिषशास्त्र, जादू के साथ जोड़ दिया गया।
उन्होंने यीशु के कथनों को एकत्र किया, अपनी व्याख्या (जैसा कि थॉमस के वृत्तांत में है) के अनुकूल बनाया, और उनके अनुयायियों को ईसाई धर्म के वैकल्पिक या प्रतिद्वंद्वी के रूप में उसे पेश किया।
प्रारंभिक आलोचक
ब्राउन के दावों के विपरीत यह कॉन्सटेंटाइन नहीं था जिसने गूढ़ज्ञानवादी मत को विधर्मी घोषित किया; ये स्वयं ईसाई धर्मप्रचारक थे। दर्शन की एक विकृति तो यीशु की मृत्यु के कुछ दशक बाद से ही पहली शताब्दी में फैल रही थी। ईसाई धर्म प्रचारकों ने अपनी शिक्षा और लेखों में बढ़-चढ़ कर इन मान्यतों की निंदा की क्योंकि ये यीशु की सच्चाई के विरुद्ध थे जिसके वे प्रत्यक्षदर्शी थे।
उदाहरण के लिए, धर्मप्रचारक यूहन्ना ने प्रथम शताब्दी के अंत में जो लिखा उसे देखें:
“कौन बड़ा झूठा है? वह जो कहता है कि यीशु ईसा नहीं थे। ऐसे लोग ईसा विरोधी हैं, क्योंकि इन लोगों ने परमपिता और पुत्र को नकार दिया है।” (1 यूहन्ना 2:22)
ईसाई धर्म प्रचारकों की शिक्षा का पालन करते हुए, प्रारंभिक गिरजा के नेताओं ने सामूहिक रूप से पंथ के रूप में गूढ़ज्ञानवादियों की निंदा की। नायसिया परिषद के 140 वर्ष पूर्व के लेखन में गिरजा के पादरी इरानियस ने इसकी पुष्टि की कि गिरजा द्वारा गूढ़ज्ञानवादियों की विधर्मियों के रूप में निंदा की गई। उन्होंने उनके “ईसा चरितों” को भी नकार दिया। जबकि चार नवविधानका हवाला देते हुए वे कहते हैं, “यह संभव नहीं है कि ईसा चरित जितने हैं उनकी संख्या उससे ज़्यादा या कम हो सकती है।”[9]
ईसाई धर्मशास्त्री औरिजेन ने यह तीसरी शताब्दी की शुरुआत में, नायसिया से सौ वर्ष से भी अधिक पहले लिखा:
एक ईश्वर का यह सिद्धांत
मैं कुछ ईसा चरितों को जानता हूं जो कहते हैं “थॉमस के अनुसार ईसा चरित” और एक “मत्ती के अनुसार ईसा चरित,” और कई अन्य जिन्हें हमने पढ़ा है—कदाचित हमें उन लोगों के कारण किसी भी प्रकार से अज्ञानी न मान लिया जाए जो कल्पना करते हैं उनके पास ज्ञान हैं यदि वे इनसे परिचित हैं। तब भी, उन सब के बीच हमने केवल उसी का अनुमोदन किया है जिसे गिरजा ने मान्यता दी है कि केवल चार ईसा चरितों को ही स्वीकार किया जाना चाहिए।[10]
हमारे पास यह गिरजा के उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त नेताओं के वचनों के रूप में है। नायसिया के परिषद के पहले गूढ़ज्ञानवादियों को गैर-ईसाई पंथ के रूप में माना जाता था। परंतु अनेक प्रमाण हैं जो द डा विंची कोड के दावों को चुनौती देते हैं।
लैंगिकवादी कौन है?
ब्राउन यह सुझाव देते हैं कि कॉन्सटेंटाइन द्वारा गूढ़ज्ञानवादी लेखों के कथित प्रतिबंध का उद्देश्य गिरजा में स्त्रीयों के दमन की इच्छा थी। इसके विपरीत, यह थॉमस का गूढ़ज्ञानवादी ईसा चरित था जो स्त्रियों की प्रतिष्ठा को कम करता था। यह इस आश्चर्यजनक बयान द्वारा (कथित रूप से पतरस को उद्धृत करते हुए) स्थापित किया जाता है: “मेरी को हमसे दूर जाने दिया जाए क्योंकि औरतें जीवित रहने के योग्य नहीं हैं” (114)। फिर यीशु कथित रूप से पतरस से कहते हैं कि वे मेरी को पुरुष बना देंगे जिससे कि वह स्वर्ग में प्रवेश कर सके। पढ़ें: महिलाएं निम्न होती हैं। इस तरह की भावनाओं के प्रदर्शन के साथ, गूढ़ज्ञानवादी लेखों की महिला मुक्ति के नारे के रूप में कल्पना करना कठिन है।
इसके ठीक विपरीत, बाइबिल ईसा चरित के यीशु ने हमेशा महिलाओं के साथ गरिमा और सम्मान के साथ व्यवहार किया। नवविधान में पाए गए निम्न प्रकार के क्रांतिकारी छंद महिलाओं की प्रतिष्ठा में वृद्धि करने वाले प्रयासों के नींव रहे हैं:
“अब कोई यहूदी या नास्तिक, दास या स्वतंत्र, पुरुष या महिला नहीं है। क्योंकि आप सब ईसाई हैं-आप ईसा मसीह में एक हैं” (गलातियों 3:28, NLT)।
गूढ़ज्ञानवादी लेखक
जब बात गूढ़ज्ञानवादी ईसा चरितों की होती है, तो लगभग प्रत्येक पुस्तक पर एक नवविधान के चरित्र का नाम होता है: फिलिप का ईसा चरित, पतरस का ईसा चरित, मेरी का ईसा चरित, यहूदा का ईसा चरित, और अन्य। (एक घिरे हुए स्कूल की हाजिरी जैसा प्रतीत होता है।) ये वे पुस्तके हैं जिस पर द डा विंची कोड जैसे षड्यंत्र सिद्धांत आधारित हैं। परंतु क्या वे अपने तथाकथित लेखकों द्वारा लिखे गए थे?
गूढ़ज्ञानवादी ईसा चरित, ईसा पश्चात् लगभग 110 से लेकर 300 वर्षों तक के हैं और कोई भी विश्वसनीय विद्वान यह नहीं मानता है कि उनमें से कोई भी उनके हमनाम द्वारा लिखे हो सकते हैं। जेम्स एम. रॉबिंसन के द नाग हम्मादी लाइब्रेरी के विस्तार से हमें यह ज्ञात होता है कि गूढ़ज्ञानवादी ईसा चरित “मोटे तौर पर असंबंधित और अनाम लेखकों” द्वारा लिखे गए थे।[12] डलास अध्यात्मविद्या विद्यालय में नवविधान अध्ययन के प्राध्यापक, डा. डैरल एल. बॉक लिखते हैं,
“सामग्री के मूल्यांकन के दौरान याद रखने लायक एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस सामग्री का बहुत बड़ा हिस्सा ईसाई धर्म की बुनियाद से कई पीढ़ियों बाद का है, ।”[13]
नवविधान के विद्वान नॉर्मन गिज़्लर दो गूढ़ज्ञानवादी लेखों, पतरस का ईसा चरित और यूहन्ना का प्रेरितों के काम पर टिप्पणी करते हैं। (ये गूढ़ज्ञानवादी लेख यूहन्ना और पतरस द्वारा लिखित नवविधान की पुस्तकें नहीं हैं।):
“गूढ़ज्ञानवादी लेखों को ईसाई धर्मप्रचारकों द्वारा नहीं लिखा गया था बल्कि अपनी स्वयं की शिक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिए धर्मदूतीय अधिकारप्राप्त होने का दावा करने वाले द्वितीय शताब्दी के (और बाद के) लोगों द्वारा लिखा गया था। आज हम इसे धोखाधड़ी और जालसाज़ी कहते हैं।”[14]
गूढ़ज्ञानवादी ईसा चरित यीशु के जीवन का ऐतिहासिक वृत्तांत नहीं हैं बल्कि ऐतिहासिक विवरणों जैसे कि नामों, स्थानों, और घटनाओं को छोड़कर मोटे तौर पर रहस्य में लिपटे हुए गूढ़ वचन हैं। यह नवविधान ईसा चरित के एकदम विपरीत है जिनमें यीशु के जीवन, रहस्य, और वचनों के बारे में अनगिनत ऐतिहासिक तथ्य शामिल हैं।
श्रीमती यीशु
डा विंची साजिश के दावों में सबसे दिलचस्प भाग यह है कि यीशु और मेरी मग्दलिनी ने गुप्त रूप से विवाह किया था जिससे एक पुत्र हुआ। इसके अतिरिक्त, पुस्तक में प्रसिद्ध होली ग्रेल के रूप में प्रस्तुत यीशु की संतान को संभाले हुए मेरी मग्दलिनी का गर्भ एक रहस्य है जिसे प्रायरी ऑफ़ सायन नामक कैथोलिक संगठन द्वारा गुप्त रूप से रखा गया है। सर आइजै़क न्यूटन, बोत्तीचेल्ली, विक्टर ह्यूगो और लियोनार्डो दा विंची सभी को सदस्यों के रूप में उद्धृत किया गया था।
रोमांस। लांछन। गुप्त प्रेम संबंध। साजिश की परिकल्पना के लिए शानदार मसाला है। परंतु क्या यह सत्य है? आइए देखें विद्वान क्या कहते हैं।
प्रमुख विद्वानों के विचारों का सार प्रस्तुत करने वाली न्यूज़वीक पत्रिका का एक लेख यीशु और मेरी मग्दलिनी द्वारा गुप्त रूप से विवाह कर लेने का कोई ऐतिहासिक आधार न होने का निष्कर्ष देता है।[15] द डा विंची कोड फिलिप के ईसा चरित के एकमात्र पद पर आधारित है जिसमें बताया गया है कि यीशु और मेरी साथी थे। पुस्तक में टीबिंग एक मामला बनाने का प्रयास करता है कि साथी का मतलब पत्नी (कोइनोनोस) हो सकता है। परंतु टीबिंग की परिकल्पना विद्वानों द्वारा स्वीकार नहीं की गई है।
फिलिप के ईसा चरित में एक पद और भी है जो कहता है कि यीशु ने मेरी का चुंबन लिया। मित्रों का स्वागत चुंबन से करना पहली सदी में आम था और उसका कोई कामुक संकेतार्थ नहीं था। परंतु फिर भी अगर द डा विंची कोड की व्याख्या सही है तो इसकी पुष्टि के लिए कोई और ऐतिहासिक दस्तावेज़ नहीं है। और चूंकि फिलिप का ईसा चरित अज्ञात लेखक द्वारा ईसा के मृत्यु के 150-220 वर्ष बाद लिखा गया एक जाली दस्तावेज़ है तो यीशु के बारे में उसका कथन ऐतिहासिक रूप से विश्वसनीय नहीं है।
संभवतः गूढ़ज्ञानवादीयों ने सोचा नवविधान रोमांस के मामले में थोड़ा संकोची था इसलिए थोड़ा चटकदार बनाने का निर्णय लिया। कारण कुछ भी हो, ईसा के दो शताब्दी बाद लिखा गया एक पृथक और अस्पष्ट पद साजिश के सिद्धांत का आधार बनाने लायक नहीं है। पढ़ने में दिलचस्प है परंतु निश्चित रूप से इतिहास नहीं।
होली ग्रेल और प्रायरी ऑफ़ सायन के जैसे ही, ब्राउन का काल्पनिक वृत्तांत फिर से इतिहास को बिगाड़ता है। प्रसिद्ध होली ग्रेल यीशु के अंतिम रात्रि भोजन का प्याला माना जाता है, और उसका मेरी मग्दलिनी से कोई लेना-देना नहीं है। और लियोनार्डो डा विंची कभी प्रायरी ऑफ़ सायन के बारे में नहीं जान सकते थे क्योंकि वह उनकी मृत्यु के 437 वर्ष बाद 1956 तक प्राप्त नहीं हुआ था, । फिर, एक दिलचस्प कल्पना, परंतु नकली इतिहास।
“गुप्त” दस्तावेज़
परंतु टीबिंग के इस खुलासे का क्या जो कहता है “हज़ारों गुप्त दस्तावेज़” साबित करते हैं कि ईसाई धर्म एक छल है? क्या यह सत्य हो सकता है?
अगर ऐसा कोई दस्तावेज़ होता तो विद्वानों के ईसाई धर्म का विरोध करने वाले विद्वानों का उनके साथ प्रतियोगिता दिवस होगा। कपटपूर्ण लेख जो प्रारंभिक गिरजों द्वारा विधर्मी विचारों के कारण अस्वीकृत कर दिया गया था वह सदियों से ज्ञात होने पर भी रहस्य नहीं है। वहां कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। उन पर कभी भी ईसाई धर्मप्रचारकों के प्रमाणिक लेखों के हिस्से के रूप में विचार नहीं किया गया।
और अगर ब्राउन (टीबिंग) मनगढ़ंत या शैशव ईसा चरित का संदर्भ दे रहा है तो उसका भी राज़ खुल चुका है। वे रहस्य नहीं हैं और ना ही वे ईसाई धर्म का खंडन करते हैं। नवविधान के विद्वान रेमंड ब्राउन ने गूढ़ज्ञानवादी ईसा चरितों के बारे में कहा,
“हमें ऐतिहासिक यीशु के रहस्य के बारे में प्रमाण योग्य एक भी नया तथ्य नहीं मिला है और केवल कुछ नए कथन मिले हैं जो संभवतः उनके हो सकते हैं।”[18]
ऐसे गूढ़ज्ञानवादी ईसा चरित जिनके लेखक अज्ञात हैं और जो प्रत्यक्षदर्शित नहीं थे उनके विपरीत आज हमारे पास जो नवविधान है वह प्रामाणिकता के अनगिनत परीक्षणों से गुज़रा है। (Jesus.doc पढ़ने के लिए क्लिक करें) साजिश के सिद्धांत को आगे बढ़ाने वालों के लिए अंतर सदमा पहुंचाने वाला है। नवविधान के इतिहासकार एफ. एफ. ब्रूस लिखते हैं:
“विश्व में प्राचीन काल का कोई ऐसा साहित्य नहीं है जो नवविधान की तरह के बढ़िया मूलग्रंथ अनुप्रमाणन की संपन्नता का रसास्वादन करता हो।”[19]
नवविधान के विद्वान ब्रूस मेत्सगर ने खुलासा किया कि क्यों थॉमस के ईसा चरित को प्रारंभिक गिरजा द्वारा नहीं स्वीकार किया गया:
“यह कहना उचित नहीं होता कि थॉमस के ईसा चरित को परिषद के किंचित आदेश द्वारा निकाल दिया गया था: इसे पेश करने का सही ढंग यह है कि थॉमस का ईसा चरित स्वयं निकल गया! वह यीशु के बारे में अन्य साक्ष्य से सुसंगत नहीं हो पाया जिसे प्रारंभिक ईसाइयों ने विश्वासयोग्य स्वीकार किया था।”[17]
“क्या कोई डा विंची साजिश थी?” का वर्णन करने वाले पृष्ठ 10 पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
इतिहास का निर्णय
तो, ईसा मसीह के बारे में विभिन्न साजिश की परिकल्पनाओं के संबंध में हमें क्या निष्कर्ष निकालना चाहिए? हार्वर्ड में गिरजा संबंधी इतिहास के प्राध्यापक कैरेन किंग ने गूढ़ज्ञानवादियों के ईसा चरितों पर कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें द गॉस्पेल ऑफ़ मेरी मैग्डेला और व्हॉट इज़ नास्टिसिज़्म शामिल हैं? किंग, यद्यपि गूढ़ज्ञानवादी की शिक्षा के मज़बूत समर्थक हैं, यह निष्कर्ष निकालते हैं कि, “साजिश के सिद्धांत के बारे में ये विचार…हाशिये के विचार हैं जिनका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है।”[20]
ऐतिहासिक प्रमाणों के अभाव के बावजूद, साजिश का सिद्धांत अभी भी लाखों पुस्तकें बेचेगा और बॉक्स ऑफ़िस पर रिकॉर्ड बनाएगा। सभी संबंधित क्षेत्रों के विद्वानों ने द डा विंची कोड के दावे का विरोध किया है उनमें से कुछ ईसाई हैं और कुछ का कोई धर्म नहीं है। हालांकि, आसानी से प्रभावित हो जाने वाले अभी भी सोचेंगे; क्या इसमें अभी भी कुछ हो सकता है?
पुरस्कार प्राप्त टेलीविज़न पत्रकार फ़्रैंक सेस्नो ने इतिहास के विद्वानों के एक पैनल से साजिश की परिकल्पनाओं के प्रति लोगों में आकर्षण के बारे में पूछा है। विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय के प्राध्यापक स्टेनली कटलर उत्तर देते हैं, “हम सभी को रहस्य पसंद हैं-परंतु हम साज़िशों को अधिक पसंद करते हैं।”[21]
इसलिए, अगर आप यीशु के बारे में एक शानदार साजिश की परिकल्पना पढ़ना चाहते हैं तो डैन ब्राउन के उपन्यास, द डा विंची कोड पढ़ें, शायद यह आपके लिए उपयुक्त हो। परंतु अगर आप ईसा मसीह के बारे में सही वृत्तांत पढ़ना चाहते हैं तो मत्ती, मरकुस, लूका या यूहन्ना आपको वहां वापस ले जाएंगे जो प्रत्यक्षदर्शियों ने देखा, सुना और लिखा था। आप किस पर अधिक विश्वास करेंगे?
क्या यीशु वास्तव में मृत्यु से वापस लौट आए थे?
हमारे समय का सबसे बड़ा प्रश्न “असली ईसा मसीह कौन है?” क्या वे केवल असाधारण व्यक्ति थे, या वे परमेश्वर का अवतार थे, जैसा कि पौलुस, यूहन्ना और उनके अन्य शिष्य मानते थे?
ईसा मसीह के प्रत्यक्षदर्शी वास्तव में इस प्रकार बोलते और कार्य करते थे जैसे कि उन्हें विश्वास था कि यीशु सूली चढ़ाए जाने के बाद वास्तव में मृत्यु से वापस लौट आए। यदि वे गलत थे तो ईसाई धर्म एक झूठी नींव पर बना है। परंतु अगर वे सही थे, तो ऐसा चमत्कार उन सब बातों को सिद्ध करेगा जो उन्होंने परमेश्वर, अपने, और हमलोगों के बारे में कहा था।
परंतु क्या हमें ईसा मसीह के पुनरुत्थान को केवल आस्था के रूप में मानना चाहिए, या इसका कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण भी है? अनेक संशयवादी व्यक्तियों ने पुनरुत्थान की बातों को गलत साबित करने के लिए ऐतिहासिक रिकॉर्ड की पड़ताल आरंभ कर दी। उन्होंने क्या पता लगाया?
आज तक का सर्वाधिक शानदार दावा—ईसा मसीहा का पुनरुत्थान—का प्रमाण देखने के लिए यहां क्लिक करें!
यहां क्लिक करके हमें बताएँ कि आपको इस लेख ने किस प्रकार मदद की।
क्या यीशु ने बताया कि मृत्यु के बाद क्या होता है?
यदि यीशु सचमुच मृत्यु से वापस लौट आए थे, तो उन्हें पता होना चाहिए कि दूसरी तरफ क्या है। यीशु ने जीवन का अर्थ और हमारे भविष्य के बारे में क्या बताया? क्या परमेश्वर तक पहुँचने के अनेक मार्ग हैं या यीशु ने केवल एक मार्ग के बारे में बताया था? चौंका देने वाले उत्तरों के लिए “यीशु क्यों?” पढ़ें।
“यीशु क्यों?” पढ़ने और यीशु ने मृत्यु पश्चात् जीवन के बारे में कही बातें जानने के लिए यहां क्लिक करें।
क्या यीशु जीवन को एक उद्देश्य प्रदान कर सकते हैं?
“यीशु क्यों?” उन प्रश्नों की तरफ देखता है कि क्या यीशु आज प्रासंगिक हैं। क्या यीशु जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं: “मैं कौन हूं?” “मैं यहां क्यों हूं?” और, “मैं कहां जाने वाला हूं?” प्राणहीन गिरजे और सूलियों ने कुछ लोगों को ऐसा विश्वास दिलाया कि वे ऐसा नहीं कर सकते और यह कि यीशु ने हमें अनियंत्रित दुनिया से निपटने के लिए अकेला छोड़ दिया। परंतु यीशु ने जीवन और धरती पर हमारे उद्देश्य के बारे में कुछ दावे किए जिनकी जाँच उन्हें अस्नेही या अशक्त बताने से पहले करने की ज़रूरत है। यह लेख इस रहस्य की पड़ताल करता है कि यीशु धरती पर क्यों आए।
यहां क्लिक करके जाने कि किस प्रकार यीशु जीवन को एक उद्देश्य प्रदान कर सकते हैं।
संदर्भ
1. Dan Brown, The Da Vinci Code (New York: Doubleday, 2003), 234.
2. Brown, 233.
3. Quoted in Erwin Lutzer, The Da Vinci Deception (Wheaton, IL: Tyndale, 2004), xix.
4. Brown, 233.
5. Brown, 231.
6. Lutzer, 71.
7. Brown, 234.
8. John McManners, ed., The Oxford History of Christianity (New York: Oxford University Press, 2002), 28.
9. Darrell L. Bock, Breaking the Da Vinci Code (Nashville: Nelson, 2004), 114.
10.Bock, 119-120.
11. Quoted in James M. Robinson, ed., The Nag Hammadi Library: The Definitive Translation of the Gnostic Scriptures (HarperCollins, 1990), 138.
12. Ibid.,13.
13. Bock, 64.
14. Norman Geisler and Ron Brooks, When Skeptics Ask (Grand Rapids, MI: Baker, 1998), 156.
15. Barbara Kantrowitz and Anne Underwood, “Decoding ‘The Da Vinci Code,’” Newsweek, December 8, 2003, 54.
16. Quoted in Robinson, 126.
17. Quoted in Lee Strobel, The Case for Christ (Grand Rapids, MI: Zondervan. 1998), 68.
18. Quoted in Lutzer, 32.
19. Quoted in Josh McDowell, The New Evidence that Demands a Verdict (San Bernardino, CA: Here’s Life, 1999, 37.)
20. Linda Kulman and Jay Tolson, “Jesus in America,” U. S. News & World Report, December 22, 2003, 2.
21. Stanley Kutler, interview with Frank Sesno, “The Guilty Men: A Historical Review,” History Channel, April 6, 2004.
इस लेख की प्रतिलिपि और वितरण हेतु अनुमति: गैर-लाभकारी उपयोग के लिए लिखित स्वीकृति के बिना प्रतिलिपि बनाने और बांटने के लिए प्रकाशक अनुदान अनुमति। बगैर लिखित अनुमति के इसका कोई हिस्सा परिवर्तित या संदर्भ के बाहर उपयुक्त नहीं किया जा सकता है। Y-Origins और Y-Jesus पत्रिका की मुद्रित प्रतियां निम्न स्थान से ऑर्डर की जा सकती हैं: www.JesusOnline.com/product_page
© 2010 JesusOnline Ministries. यह लेख, ब्राइट मीडिया फाउंडेशन एंड बीएंडएल पब्लिकेशन की पत्रिका Y-Jesus का अनुपूरक है: लैरी चैपमेन, मुख्य संपादक। ईसा मसीह के प्रमाण संबंधित अन्य लेखों के लिए, www.y-jesus.com देखें।