क्या यीशु वास्तव में थे
क्या वाकई ईसा मसीह का कोई अस्तित्व था, या ईसाई धर्म हैरी पॉटर जैसे काल्पनिक पात्र पर बनी किसी पौराणिक कथा पर आधारित है?
लगभग दो हज़ार वर्षों से हमारी दुनिया के अधिकतर लोगों ने वास्तव में यीशु का अस्तित्व माना है जिनका असाधारण चरित्र, नेतृत्व और जिनकी प्रकृति पर शक्ति थी। परंतु आज कुछ लोग कह रहे हैं कि वे कभी थे ही नहीं।
कहा जाता है कि यीशु के अस्तित्व के खिलाफ तर्क, ईसा-मिथक सिद्धांत, यीशु जू़डीया की चट्टानी पहाड़ियों पर जाने के सत्रह शताब्दी बाद आरंभ हुआ।
अमेरिकनअथीस्टकेअध्यक्ष, एलनजॉन्सन ने सीएनएन टीवी पर लैरी किंग लाइव में ईसा-मिथक क विचार का सार प्रस्तुत किया:
इस बात का कणमात्र भी कोई लौकिक प्रमाण नहीं है कि कोई ईसा मसीह कभी थे …यीशु अन्य भगवानों के एक संकलन हैं…जिनका उद्गम और जिनकी मृत्यु पौराणिक ईसा मसीह के समान ही थी।
भौचक्के होकर मेज़बान ने जवाब दिया, “तो क्या आप विश्वास नहीं करते कि ईसा मसीह कभी थे?”
जॉनसन ने भावावेश में उत्तर दिया, “नहीं थे…इस बात का कोई लौकिक प्रमाण नहीं है कि ईसा मसीह कभी थे।”
किंग ने तुरंत ही एक मामूली ब्रेक का अनुरोध किया। अंतर्राष्ट्रीय टेलीविज़न दर्शक को संश्यात्मक छोड़ दिया गया।[1]
एक नास्तिक के रूप में ऑक्सफोर्ड विद्वान सी. एस. लुईस अपने आरंभिक वर्षों में यीशु को मिथक मानते थे और उनका विचार यह था कि सभी धर्म महज़ आविष्कार थे।[2]
वर्षों बाद, लुईस ऑक्सफोर्ड के छात्रावास के कमरे में एक मित्र के साथ आग के निकट बैठे थे। ऐसा मित्र जिनके बारे में वे कहते हैं “अभी तक जिन नास्तिकों को जानता हूँ उनमें सबसे अधिक कट्टर नास्तिक है।” अचानक उनके मित्र ने बिना सोचे समझे कहा, “ईसा चरित की ऐतिहासिकता का प्रमाण वास्तव में आश्चर्यजनक रूप से ठीक था…प्राय:ऐसा लगता है कि वास्तव में एक बार ऐसा कुछ हुआ था।”[3]
लुईस भौंचक्का हो गया। उनके मित्र द्वारा यीशु के लिए प्रमाण वास्तविक होने की इस टिप्पणी ने लुईस को स्वयं सत्य की जांच-पड़ताल करने के लिए प्रोत्साहित किया। यह उन्होंने यीशु के बारे में सत्य की खोज पर अपनी प्रतिष्ठित पुस्तक मियर क्रिश्चियानिटी में लिखा है।
तो, लुईस के मित्र ने ईसा मसीह के लिए क्या प्रमाण खोजा था?
प्राचीन इतिहास बताता है
आइए एक अधिक बुनियादी प्रश्न के साथ शुरूआत करें: हम एक मिथकीय पात्र को वास्तव में मौजूद एक व्यक्ति से कैसे अलग कर सकते हैं? उदाहरण के लिए, इतिहासकारों को किस प्रमाण ने भरोसा दिलाया कि सिकंदर महान एक वास्तविक व्यक्ति था? और क्या ऐसा प्रमाण यीशु के लिए मौजूद है?
सिकंदर और यीशु दोनों को करिश्माई नेता के रूप में दर्शाया गया था। बताया गया है कि दोनों का जीवन संक्षिप्त था और तीस से पैंतीस वर्ष की आयु के बीच में उनकी मृत्यु हुई। यीशु के बारे में कहा जाता है कि वे शांति प्रेमी थे जिन्होंने प्रेम के द्वारा विजय प्राप्त की; सिकंदर युद्ध प्रेमी था जिसने तलवार के द्वारा शासन किया।
336 ईसा पूर्व में सिकंदर महान मेसीडोनिया का राजा बना। सैन्य प्रवीण, यह रूपवान, अभिमानी नेता यूनान और फारस के गाँवों, शहरों और साम्राज्यों को कुचलते हुए तब तक बढ़ता चला गया जब तक उसने इस पूरे क्षेत्र पर शासन न कर लिया। कहा जाता है कि जब विश्व का कोई हिस्सा जीतने लायक नहीं बचा तो वह रोने लगा था।
सिकंदर का इतिहास ऐसे पांच प्राचीन स्रोतों से लिया गया जो उसकी मृत्यु के 300 या उससे अधिक वर्षों बाद लिखे गए थे।[4] सिकंदर का कोई भी प्रत्यक्षदर्शी वर्णन नहीं है।
हालांकि, इतिहासकार मानते हैं कि सिकंदर वास्तव था, जिसका मुख्य कारण यह है कि उसके जीवन संबंधी वृत्तांतों की पुष्टि पुरातत्व द्वारा और इतिहास पर उसके प्रभाव द्वारा की गई है।
इसी प्रकार, यीशु वास्तव में थे या नहीं यह निर्धारित करने के लिए हमें निम्नलिखित क्षेत्रों में उनके अस्तित्व के प्रमाण तलाशने की आवश्यकता है:
- पुरातत्व
- प्रारंभिक गैर ईसाई वृत्तांत
- प्रारंभिक ईसाई वृत्तांत
- प्रारंभिक नवविधान हस्तलिपि
- ऐतिहासिक प्रभाव
पुरातत्व
समय की धूल ने यीशु के कई रहस्यों को दफन कर दिया था जो अभी हाल ही में प्रकाश में आए हैं।
संभवतः कई प्राचीन हस्तलिपियों का 18वीं और 20वीं शताब्दियों में पाया जाना सबसे महत्वपूर्ण खोजें हैं। हम बाद के अनुभागों में इन पांडुलिपियों पर बारीकी से नज़र डालेंगे।
पुरातत्त्वविदों ने अनगिनत स्थानों और स्मारकों की भी खोज की है जो यीशु के नवविधान वृत्तांत से मेल खाते हैं। मैल्कम मग्गेरिज़ एक ब्रिटिश पत्रकार थे जो यीशु को तब तक मिथक मानते रहे जब तक उन्होंने इज़राइल में बीबीसी टेलीविज़न असाइनमेंट के दौरान ऐसे प्रमाणों को नहीं देखा था।
यीशु के नवविधान वृत्तांत में वर्णित बिल्कुल उन्हीं स्थानों पर रिपोर्ट करने के बाद, मग्गेरिज़ लिखते हैं, “यीशु के जन्म स्थान, सेवा एवं सूली चढ़ाने की निश्चितता ने अचानक मुझे जकड़ लिया…मैं इस बात से अवगत हुआ कि वास्तव में ऐसा एक व्यक्ति था, यीशु…”[5]
हालांकि, 20वीं शताब्दी के पहले रोमन शासक पन्तुस पिलातुस और मुख्य यहूदी पुजारी जोसेफ काएफ़स के अस्तित्व का कोई प्रमाण मौजूद नहीं था। दोनों ईसा के सूली पर चढ़ाए जाने के मुकदमे में मूल पात्र थे। संशयवादी व्यक्ति ईसा-मिथक सिद्धांत की अपनी इस लडाई में प्रमाण के इस स्पष्ट अभाव को अस्त्र-शस्त्र की तरह उल्लेख करते थे।
हालांकि, 1961 में पुरातत्वविदों को कंकड़ों का एक खंड मिला जिस पर “पन्तुस पिलातुस, जू़डीया का राज्याधिकारी” लिखा हुआ था। और 1990 में पुरातत्वविदों को काएफ़स के शिलालेख के साथ एक अस्थिपात्र (हड्डियों का बक्सा) मिला। इसकी “किसी विचारपूर्ण संदेह से परे” प्रामाणिकता के रूप में पुष्टि हो चुकी है।[6]
इसी प्रकार, 2009 तक इसका कोई वास्तविक प्रमाण नहीं था कि यीशु के जीवन काल में उनका गृह-नगर नाज़ारेथ मौजूद था। रिने साल्म जैसे संशयवादियों ने प्रथम-शताब्दी के नाज़ारेथ हेतु प्रमाण के अभाव को ईसाई धर्म पर घातक प्रहार के रूप में माना। साल्म ने2006 में द मिथ ऑफ़ नाज़ारेथ में लिखा, “स्वतंत्र विचारक, खुशियां मनाएं.… ईसाई धर्म को जिस रूप में हम जानते हैं उसका अंततः अंत हो सकता है!”[7]
हालांकि, 21 दिसंबर 2009 को पुरातत्वविदों ने नाज़ारेथ में प्रथम-शताब्दी के मिट्टी के खपरे मिलने की घोषणा की और इस प्रकार यीशु के काल में इस छोटे गांव के होने की पुष्टि की (“क्या यीशु वाकई नाज़ारेथ के थे?” देखें)।
यद्यपि इन पुरातात्त्विक खोजों से यह प्रमाणित नहीं होता है कि यीशु वहां रहते थे परंतु उनके जीवन से संबंधित ईसा चरित वृत्तांतों का ये प्रमाणित करती हैं। इतिहासकारों ने यह देखा कि पुरातत्व के बढ़ते हुए प्रमाण यीशु के वृत्तांतों का खंडन करने की बजाय उनकी पुष्टि करते हैं।”[8]
प्रारंभिक गैर ईसाई वृत्तांत
एलेन जॉनसन जैसे संशयवादियों ने यीशु के “लौकिक इतिहास का अभाव” का उल्लेख यीशु का अस्तित्व न होने के प्रमाण के रूप में किया था।
फिर भी ईसा के समय के किसी भी व्यक्ति के बारे में बहुत ही कम दस्तावेज़ मौजूद हैं। अधिकतर प्राचीन ऐतिहासिक दस्तावेज़ शताब्दियों के दौरान युद्ध, आगजनी और लूट के कारण, या केवल मौसम या क्षय के कारण नष्ट हो गए।
रोमन साम्राज्य के अधिकतर गैर-ईसाई लेखों को सूचीबद्ध करने वाले ई. एम. ब्लेक्लॉक के अनुसार, “व्यावहारिक रूप से ईसा के समय का लगभग कुछ भी मौजूद नहीं है”, यहां तक कि महान धर्मनिरपेक्ष नेता जूलियस सीज़र तक का भी नहीं।[9] फिर भी कोई इतिहासकार सीज़र के अस्तित्व पर सवाल नहीं उठाता।
और चूंकि वे एक महत्वपूर्ण राजनीतिक या सैन्य नेता नहीं थे, डैरेल बॉक व्याख्या करते हैं, “यह आश्चर्यजनक और महत्वपूर्ण है कि हमारे पास के सभी स्रोतों में यीशु के होने का पता चलता है।”[10]
तो, वे कौन से स्रोत हैं जिनका बॉक ने उल्लेख किया? यीशु के बारे में लिखने वाले किस प्रथम सदी के इतिहासकार का ईसाई एजेंडा नहीं था? सबसे पहले, यीशु के शत्रुओं पर नज़र डालते हैं।
यहूदी इतिहासकार:यीशु के अस्तित्व को नकारने के कारण सबसे ज़्यादा फायदा यहूदियों को होने वाला था। परंतु उन्होंने हमेशा उन्हें वास्तविक माना। “अनेक यहूदी लेखों में यीशु का उल्लेख वास्तव में जीवित व्यक्ति की तरह किया जिसका उन्होंने विरोध किया था।[11]
प्रख्यात यहूदी इतिहासकार फ्लेवियस जोसेफस याकूब के बारे में लिखते हैं, “यीशु के तथाकथित मसीह.भाई “[12] अगर यीशु वास्तव में नहीं थे तो जोसेफस ने ऐसा क्यों नहीं कहा?
एक अन्य किंचित विवादित अंश में जोसेफस यीशु के बारे में बहुत विस्तार से बताते हैं।[13]
इससमयएकव्यक्तिथाजिसेयीशुकेनामसेजानाजाताथा।उसकाआचरणअच्छा था, औरउसेपवित्रमानाजाताथा।औरयहूदियोंमेंसेतथाअन्यराष्ट्रकेअनेकलोगउनकेशिष्यबनगए।पिलातुसनेउन्हेंसूलीपरचढ़ाएजानेकादंडदियाऔरउनकीमृत्युहोगई।औरजोउनकेशिष्यबनगएथेउन्होंनेउनकीशिष्यतानहींछोड़ी।उन्होंनेबतायाकिवेसूलीपरचढ़ाएजानेकेतीनदिन बादप्रकटहुएथेऔरवेजीवितथे।इसलिए, उन्हेंमसीहासमझाजाताथा।“[14]
हालांकि उनके कुछ वचनों पर विवाद है परंतु फिर भी यीशु के अस्तित्त्व के बारे में जोसेफस का पुष्टिकरण विद्वानों द्वारा व्यापक रूप से स्वीकार्य है।[15]
इज़राइली विद्वान शौल्मो पाइंस लिखते हैं, “यहां तक की ईसाई धर्म के सबसे कटु विरोधियों ने भी यीशु के वास्तविकता में जीवित होने के बारे में संदेह नहीं किया।”[16]
विश्व इतिहासकार विल ड्यूरंट लिखते हैं कि प्रथम-शताब्दी के किसी यहूदी या गैर-यहूदी ने कभी यीशु के अस्तित्व को नहीं नकारा है।[17]
रोमन इतिहासकार: प्रारंभिक रोमन इतिहासकारों ने मुख्यतः अपने साम्राज्य की महत्वपूर्ण घटनाओं और लोगों के बारे में लिखा। चूंकि यीशु का रोम के राजनीतिक या सैन्य मामलों में कोई तात्कालिक महत्व नहीं था इसलिए बहुत कम रोमन इतिहासकारों ने उनका उल्लेख किया है। हालांकि, टेसिटस और सूटोनियस इन दो महत्वपूर्ण रोमन इतिहासकारों ने माना था कि यीशु वास्तव में थे।
रोम के महानतम प्रारंभिक इतिहासकार टेसिटस (55-120 ईसवी) लिखते हैं कि क्रिस्टस (यूनानी में ईसा का नाम) टाइबेरियस के शासनकाल में जीवित थे और “पन्तुस पिलातुस के अधीन प्रताड़ित हुए थे और यह, कि यीशु की शिक्षाएं पहले ही रोम में फैल गई थी; और यह कि ईसाइयों को अपराधियों की तरह माना जाता था और सूली पर चढ़ाए जाने के समेत विभिन्न तरीकों से प्रताड़ित किया जाता था।“[18]
सूटोनियस (69-130 ईसवी) “क्रिस्टस” का वर्णन भड़काने वाले के रूप में करते हैं।अधिकतर विद्वान इसे ईसा पर संदर्भ मानते हैं।सूटोनियस ने 64 ईसवी में नीरो द्वारा ईसाइयों को प्रताड़ित किए जाने के बारे में भी लिखा।[19]
रोमन अधिकारी: ईसाइयों को रोम का दुश्मन माना जाता था क्योंकि वे सीज़र के बजाय यीशु को ईश्वर की तरह पूजते थे।
रोम के निम्नलिखित सरकारी अधिकारियों ने दो सीज़र समेत, यीशु और प्रारंभिक ईसाइयों के उद्गम का उल्लेख करते हुए उस दृष्टिकोण के साथ पत्र लिखा।[20]
प्लिनी द यंगर सम्राट त्राजान के अधीन शाही न्यायाधीश था।112 ईसवी में, प्लिनी ने त्राजान को ईसाइयों को ईसा को त्यागने के लिए बाध्य करने के प्रयास के बारे में लिखा जिसे वे “ईश्वर की तरह पूजते थे।”
सम्राट त्राजान (56-117 ईसवी) ने यीशु और प्रारंभिक ईसाइयों के उद्गम का उल्लेख करने वाले पत्र लिखे।
सम्राट हार्डियन (76-136 ईसवी) ने यीशु के अनुयायियों के रूप में ईसाईयों के बारे में लिखा।
मूर्तिपूजक स्रोत: कई प्रारंभिक मूर्तिपूजक लेखकों ने संक्षिप्त रूप से यीशु या ईसाइयों का उल्लेख द्वितीय शताब्दी के अंत के पहले किया है। इनमें थेलस, फ़्लेगॉन, मारा बार-सेरापियोन और सैमोसेट के लयूसियन शामिल हैं।[21] यीशु के बारे में थेलस का टिप्पणियां ईसा के लगभग बीस वर्षों बाद 52 ईसवी में लिखा गया।
कुल मिलाकर, नौ प्रारंभिक गैर-ईसाई धर्मनिरपेक्ष लेखकों ने यीशु के अस्तित्व का उल्लेख उनकी मृत्यु के 150 वर्षों के भीतर किया। दिलचस्प रूप से, इतनी ही संख्या में धर्मनिरपेक्ष लेखकों ने यीशु के समय के रोमन सम्राट, टाइबेरियस सीज़र का उल्लेख किया है। अगर हम ईसाई और गैर-ईसाई स्रोतों पर विचार करना पड़े, तो बयालीस लोगों ने यीशु का उल्लेख किया है जिनकी तुलना में टाइबेरियस का उल्लेख केवल दस ने किया है।[22]
यीशु के बारे में ऐतिहासिक तथ्य:
ये प्रारंभिक गैर-ईसाई स्रोत ईसा मसीह के बारे में निम्नलिखित तथ्य प्रदान करते हैं:
- यीशु नाज़ारेथ के थे।
- यीशु ने विवेकी और पवित्र जीवन जीया।
- यहूदी राजा माने जाने वाले टाइबेरियस सिज़र के शासनकाल में यीशु को पन्तुस पिलातुस के अधीन जू़डीया में पासओवर के दौरान सूली पर चढ़ा दिया गया था।
- यीशु के शिष्यों का मानना था कि उनकी मृत्यु हो गई थी और वे मृत्यु के तीन दिन बाद पुनः जीवित होकर प्रकट हुए थे।
- यीशु के दुश्मन यह मानते थे कि वे असामान्य कारनामों का प्रदर्शन करते थे।
- यीशु के शिष्यों की संख्या रोम तक फैलते हुए तेजी से बढ़ी थी।
- यीशु के शिष्यों ने नैतिक जीवन व्यतीत किया और उन्होंने परमेश्वर के रूप में यीशु को पूजा।
यीशु के जीवन की यह सामान्य रूपरेखा नवविधान से पूरी तरह समान है।[23]
गैरी हैबरमास लिखते हैं, “कुल मिलाकर, इन गैर-ईसाई स्रोतों में से एक तिहाई, पहली शताब्दी के हैं; बहुतों का उद्गम द्वितीय शताब्दी के मध्य के बाद का नहीं है।”[24] इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार “ये स्वतंत्र वृत्तांत प्रमाणित करते हैं कि प्राचीन काल में ईसाई धर्म के विरोधी भी यीशु की ऐतिहासिकता पर संदेह नहीं करते थे।”[25]
प्रारंभिक ईसाई वृत्तांत
प्रारंभिक ईसाईयों ने यीशु के बारे में हज़ारों पत्र, प्रवचन और टीकाएं लिखीं। और यीशु के बारे में बताने वाले पंथ भी, उनके सूली पर चढ़ाए जाने के पांच वर्षों के भीतर ही प्रकट हुए।[26]
ये गैर बाइबिल संबंधी लेख यीशु के सूली पर चढ़ाए जाने और पुनरुत्थान समेत नवविधान के विवरणों की पुष्टि करते हैं।[27]
विस्मयकारी रूप से, ऐसे 36,000 पूर्ण या आंशिक लेख खोजे जा चुकें हैं जिनमें से कुछ पहली शताब्दी के हैं।[28] ये गैर बाइबिल संबंधी लेख कुछ पदों को छोड़कर संपूर्ण नवविधान को पुनःनिर्मित कर सकते हैं।[29]
इनमें से प्रत्येक लेखक ने यीशु के वास्तव में होने के बारे में लिखा है। ईसा-मिथकों ने इन वृत्तांतों को पक्षपातपूर्ण मानते हुए नकार दिया। परंतु जिस प्रश्न का उत्तर उन्हें अवश्य देना चाहिए वह है: कैसे मिथकीय यीशु के बारे में इतने ढेर सारे लेख उनके जीवन काल के बाद के कुछ ही दशकों में लिखे गए?
नवविधान
एलेन जॉनसन जैसे संशयवादियों ने यीशु के प्रमाण के रूप में नवविधान को भी “पक्षपातपूर्ण” कहते हुए नकार दिया है। फिर भी, यहां तक कि सर्वाधिक गैर-ईसाई इतिहासकार प्राचीन नवविधान हस्तलिपियों को यीशु के अस्तित्व के एक ठोस सबूत के रूप में मानते हैं। कैम्ब्रिज़ के एक नास्तिक इतिहासकार माइकल ग्रांट तर्क देते हैं कि अन्य प्राचीन इतिहास की तरह ही नवविधान को भी प्रमाण की तरह मानना चाहिए।
अगर हम नवविधानपर वही मापदंड लागू करते हैं, जैसा हमें करना भी चाहिए, जो हमें किसी भी अन्य ऐतिहासिक सामग्री वाले अन्य प्राचीन लेखों पर लागू करना चाहिए, तो हम उसी प्रकार यीशु के अस्तित्व को और अधिक नहीं नकार सकते जैसे हम उन मूर्तिपूजक व्यक्तियों के अस्तित्व को भी नहीं नकार सकते हैं जिनके ऐतिहासिक पात्रों की वास्तविकता पर कभी प्रश्न नहीं उठाया गया।[30]
ईसा चरित (मत्ती, मरकुस, लूका एवं यूहन्ना) यीशु के जीवन एवं वचनों के मुख्य वृत्तांत हैं। लूका अपने ईसा चरित का प्रारंभ थियुफिलुस के लिए इन वचनों के साथ करते हैं: “सर्वोत्तम थियुफिलुस, चूंकि मैंने स्वयं प्रत्येक चीज़ों को आरंभ से ध्यानपूर्वक देखा है इसलिए मैंने भी आपके लिए विधिपूर्वक वृत्तांत लिखने का निर्णय लिया।”[31]
प्रख्यात पुरातत्वविद सर विलियम रामसे ने यीशु के बारे में लूका के ऐतिहासिक वृत्तांत को पहले अस्वीकृत कर दिया था। हालांकि, उन्होंने बाद में माना, “लूका प्रथम श्रेणी के इतिहासकार हैं.… इस लेखक को सबसे महानतम इतिहासकारों के समकक्ष रखना चाहिए.… लूका का इतिहास इसकी विश्वसनीयता के संदर्भ में अद्वितीय है।”[32]
सिकंदर के बारे में प्रारंभिक वृत्तांत उनके 300 वर्षों बाद लिखे गए थे। परंतु लिखे गए ईसा-चरित यीशु के जीवन के कितने करीब थे? क्या यीशु के प्रत्यक्षदर्शी तब भी जीवित थे, या किसी पौराणिक कथा को विकसित करने के लिए पर्याप्त समय था?
1830 में जर्मन विद्वानों ने तर्क दिया कि नवविधान तीसरी शताब्दी में लिखा गया था जो यीशु के धर्म प्रचारकों द्वारा लिखे जाने के लिए काफी बाद का समय है। हालांकि 19वीं और 20वीं शताब्दी में पुरातत्वविदों द्वारा खोजी गई हस्तलिपि की प्रतिलिपियां यह प्रमाणित करती हैं कि यीशु का वृत्तांत बहुत पहले लिखा गया था। [“परंतु क्या यह सत्य है?” देखें]
विलियम एल्ब्राइट सभी नवविधान पुस्तकों को “50 ईसवी और 75 ईसवी” के बीच कालांकित करते हैं।[33] कैंब्रिज़ के जॉन ए. टी. रॉबिन्सन सभी नवविधान पुस्तकों की तिथि. 40-65 ईसवी मानते हैं। ऐसी आरंभिक तिथियों का मतलब वे तब लिखे गए जब प्रत्यक्षदर्शी जीवित थे, जो किसी मिथक या पौराणिक कथा के विकसित होने के लिए आवश्यक समय से बहुत पहले है।[34]
सी. एस. लुईस ने ईसा चरित पढ़ने के बाद लिखा, “अब, एक साहित्यिक इतिहासकार के रूप में मैं पूरी तरह आश्वस्त हूँ कि…ईसा चरित…पौराणिक कथा नहीं हैं। मैंने बहुत सी पौराणिक कथाएं पढ़ी हैं और मुझे पूरी तरह स्पष्ट है कि ये उस प्रकार की वस्तु नहीं है।”[35]
नवविधान के लिए हस्तलिपियां प्रचुर मात्रा में हैं। उस पुस्तक की पूर्ण या आंशिक हस्तलिपि की 24,000 से अधिक प्रतिलिपियां मौजूद हैं, जो इसे अन्य सभी प्राचीन दस्तावेज़ों से बहुत ऊपर रख देता है।[36]
किसी अन्य धार्मिक या धर्मनिरपेक्ष प्राचीन ऐतिहासिक व्यक्ति के पास इतने अधिक लिखित दस्तावेज़ों समर्थन नहीं है जितना ईसा मसीह का है। इतिहासकार पॉल जॉनसन टिप्पणी करते हैं, “उदाहरण के लिए, अगर हम मानते हैं कि टेसिटस की व्याख्या केवल एक मध्यकालीन हस्तलिपि में बची थी तो ऐसे में नवविधान की संख्या असाधारण हो जाती है।”[37]
(नवविधान की विश्वसनीयता के बारे में और अधिक जानने के लिए, “क्या ईसा चरित विश्वसनीय हैं?” देखें।)
ऐतिहासिक प्रभाव
मिथक अगर हैं भी तो इतिहास पर उसका बहुत कम प्रभाव है। इतिहासकार थॉमस कारलिले कहते हैं, “विश्व का इतिहास कुछ भी नहीं परंतु वास्तव में महान व्यक्तियों की जीवनी है।”[38]
कोई ऐसा राष्ट्र या शासन नहीं है जिसकी बुनियाद या धरोहर किसी मिथकीय व्यक्ति या ईश्वर पर हो।
परंतु ईसा मसीह का क्या प्रभाव रहा है?
रोम के सामान्य नागरिक उनकी मृत्यु के कई वर्ष बाद उनके प्रभाव को महसूस नहीं कर पाए। यीशु ने किसी सेना का नेतृत्व नहीं किया। उन्होंने कोई पुस्तक नहीं लिखी और कोई कानून नहीं बदला। यहूदी नेताओं और रोमन सीज़र ने आशा की थी कि वे उन्हें भुला देंगे और ऐसा प्रतीत होता था कि वे सफल हो जाएँगे।
आज हम प्राचीन रोम का जो कुछ भी देखते हैं वह सब खंडर हो चुका है। सीज़र की शक्तिशाली सेना और रोमन राजसी शक्ति की धूमधाम गुमनामी में खो गई है। फिर भी आज यीशु कैसे याद किए जाते हैं? उनका चिरस्थाई प्रभाव क्या है?
- इतिहास के किसी भी अन्य व्यक्ति के मुकाबले यीशु के बारे में सबसे अधिक पुस्तकें लिखी गई हैं।
- राष्ट्रों ने उनके उपदेशों का उपयोग अपनी सरकारों के आधार के रूप में किया है। ड्यूरंट के अनुसार, “यीशु की सफलता प्रजातंत्र का आरंभ था।[39]
- पर्वत पर दिए गए उनके प्रवचन ने नैतिकता और सदाचार के नए प्रतिमान स्थापित किए।
- उनके नाम पर स्कूल, अस्पताल और मानवीय कार्यों की स्थापना हुई। हावर्ड, येल, प्रिंसटन, डार्टमाउथ, कोलंबिया और ऑक्सफोर्ड समेत 100 से अधिक महान विश्वविद्यालयों का आरंभ उनके अनुयायियों ने किया।[40]
- पश्चिमी संस्कृति में औरतों की बढ़ी हुई भूमिका की जड़ में यीशु थे। (यीशु के दिनों में जब तक उनकी शिक्षाओं का पालन न होने लगा तब तक औरतों को हीन और वस्तुतः गैर मनुष्य माना जाता था ।)
- प्रत्येक मानव जीवन अनमोल है, यीशु की इस शिक्षा के कारण ब्रिटेन और अमेरिका में दासप्रथा समाप्त कर दी गई।
आश्चर्यजनक ढंग से, यीशु ने यह पूरा प्रभाव केवल तीन वर्षों के सार्वजनिक सेवा कार्यों के परिणाम से बनाया। जब विश्व इतिहासकार एच. जी. वेल्स से पूछा गया कि इतिहास में सबसे सर्वोच्च बपौती किसने छोड़ी है, तो उनका उत्तर था, “इस परीक्षा में यीशु सर्वप्रथम हैं।”[41]
येल के इतिहासकार जारोसलाव पेलिकन उनके बारे में लिखते हैं, “इसकी परवाह किए बिना कि कोई व्यक्तिगत रूप से यीशु के बारे में क्या सोचता या विश्वास करता है, नाज़ारेथ के यीशु लगभग बीस शताब्दियों से पश्चिमी संस्कृति के इतिहास में प्रभावशाली व्यक्ति बने रहे हैं… उनके जन्मकाल से ही अधिकतर मानव जाति ने अपने कैलेंडर को कालांकित किया, उनके नाम से ही लाखों व्यक्ति कोसते हैं और लाखों उनके नाम से ही प्रार्थना करते हैं।”[42]
यदि यीशु का अस्तित्व ही नहीं था, तो यह सोचने वाली बात है कि कोई मिथक इस प्रकार इतिहास को कैसे बदल सकता है।
मिथक बनाम यथार्थ
यद्यपि मिथकीय ईश्वरों का वर्णन एक ऐसे महानायक के रूप में होता है जो मानवीय कल्पनाओं और लिप्साओं के परे होते हैं, ईसा चरित यीशु को विनम्रता, करुणा और त्रुटिहीन नैतिक चरित्र के व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करते हैं उनके अनुयायी उनके वास्तव में
उपस्थित होने जैसा प्रस्तुत करते हैं जिन्होंने स्वेच्छा से उनके लिए< अपना जीवन त्याग दिया।
गैर-ईसाई वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टाइन ने कहा, “कोई भी ईसा चरित को यीशु की वास्तविक उपस्थिति को महसूस किए बिना नहीं पढ़ सकता। उनका व्यक्तित्व प्रत्येक शब्द में धड़कता है। कोई भी मिथक जीवन से इतना भरा नहीं होता.… कोई भी व्यक्ति इस तथ्य को नकार नहीं सकता कि यीशु मौजूद थे और न ही इस तथ्य को कि उनके वचन सुंदर हैं।”[43]
क्या यह संभव है कि यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान इन मिथकों से लिए गए थे? यीशु के विरोध में मामला YouTube मूवी, जाइट्गाइस्टमेंप्रस्तुतकियागयाथा,जहांलेखकपीटरजोसेफबेधड़कदावाकरतेहैं,
वास्तविकता यह है कि यीशु…एक मिथकीय पात्र थे….अन्य सभी ईश्वरवाद संबंधी आस्था प्रणाली समेत ईसाई धर्म, युग की धोखाधड़ी है।[44]
जैसे-जैसे कोई ईसा चरित के यीशु की तुलना मिथक के ईश्वर के साथ करता है, अंतर स्पष्ट हो जाता है। ईसा चरित में यीशु की वास्तविकता के खुलासे के विपरीत, मिथकीय ईश्वरों के वृत्तांत काल्पनिक तत्वों के साथ अवास्तविक ईश्वर का वर्णन करते हैं:
- माना जाता है कि मिथ्रा का जन्म चट्टान से हुआ था।[45]
- होरस का वर्णन बाज वाले सर के साथ किया जाता है।[46]
- बैकस, हरक्यूलिस, और अन्य पेगासस घोड़े पर स्वर्ग की तरफ उड़ा दिए गए।[47]
- ओसीरिस की हत्या हो जाती है, उसे 14 टुकड़ों में काट दिया जाता है, और उसकी पत्नी आइसिस उसे फिर से जोड़ती है, और वह पुनर्जीवित हो जाता है।[48]
परंतु क्या यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान इन मिथकों से नकल की गई है?
उनके अनुयायी निश्चित रूप से ऐसा नहीं सोचते थे; उन्होंने यह दावा करते हुए स्वेच्छापूर्वक अपना जीवन दे दिया कि यीशु के पुनरुत्थान का वृत्तांत सत्य है। [“क्या यीशु मृत्यु के पश्चात जीवित हो उठे थे?” देखें]
इसके अतिरिक्त, “ईश्वर की मृत्यु और पुनर्जीवित होने का वृत्तांत कुछ हद तक यीशु के पुनरुत्थान के समान है जो यीशु के पुनरुत्थान के कम से कम 100 वर्षों बाद दिखाई पड़ा था।”[49]
दूसरे शब्दों में, होरस, ओसीरिस, और मिथ्रा के मृत्यु और पुनर्जीवित होने का वृत्तांत मूल पौराणिक कथाओ में नहीं था, परंतु ये यीशु के ईसा चरित वृत्तांतों के लिखे जाने के बाद जोड़े गए थे।
लुंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर टी. एन. डी. मेटिंगर लिखते हैं, “आधुनिक विद्वानों में आम राय है – जो लगभग सार्वभौमिक है— कि किसी भी ईश्वर की मृत्यु और उसके पुनर्जीवित होना की घटना ईसाई धर्म के पहले घटित नहीं हुई थी। वे सभी प्रथम शताब्दी के बाद की तिथि हैं।”[50] [नोट 50 देखें]
अधिकतर इतिहासकारों के अनुसार ईसा मसीह और इन मिथकीय ईश्वर के बीच कोई सही समानता नहीं है। हालांकि, जैसा कि सी. एस. लुईस देखते हैं कि कुछ समान विषय हैं जो आदमी के अमरत्व की इच्छा के बारे में बताते है।
लुईस द लॉर्ड ऑफ़ रिंग्स रचना के लेखक जे.आर.आर. टोल्किन के साथ अपने वार्तालाप के बारे में बताते हैं. टोल्किन कहते हैं कि “ईसा की कहानी बस एक सच्चा मिथक है: एक मिथक…इस आश्चर्यजनक भिन्नता के साथ कि ऐसा वास्तव में हुआ था।”[51]
नवविधान विद्वान एफ़.एफ. ब्रूस निष्कर्ष निकालते हैं, “कुछ लेखक मसीह-मिथक की कल्पना के साथ खेल सकते हैं,’ परंतु वे ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर ऐसा नहीं करते हैं। निष्पक्ष इतिहासकारों के लिए ईसा की ऐतिहासकिता ऐसी ही स्वयंसिद्ध है जैसे जूलियस सीज़र की। ये इतिहासकार नहीं हैं जो ‘ईसा-मिथक’ सिद्धांत का प्रचार कर रहे हैं।”[52]
एक आदमी था
तो, क्या इतिहासकार विश्वास करते हैं कि यीशु वास्तव में थे या मिथक?
इतिहासकार सिकंदर महान और ईसा मसीह दोनों के अस्तित्व को वास्तव में मानते हैं। फिर भी यीशु पर हस्तलिपि प्रमाण सिकंदर के ऐतिहासिक लेखों के मुकाबले बहुत अधिक हैं और उनके जीवन से सैकड़ों वर्ष निकट के हैं। इसके अतिरिक्त, ईसा मसीह का ऐतिहासिक प्रभाव सिकंदर से काफी अधिक है।
इतिहासकार निम्नलिखित प्रमाणों को यीशु के अस्तित्व के रूप में देखते हैं:
- दर्ज किए गए व्यक्तियों और स्थानों के ईसा चरित वृत्तांतों का सत्यापन पुरातत्वीय खोज द्वारा जारी है, जिसमें पिलातुस, काएफ़स और प्रथम-शताब्दी के नाज़ारेथ का अस्तित्व नवीनतम हैं।
- हज़ारों ऐतिहासिक लेखन यीशु के अस्तित्व को प्रमाणित करते हैं। यीशु के जीवन के 150 वर्षों के भीतर नौ गैर-ईसाई स्रोतों समेत 42 लेखकों ने अपने लेखों में उनका उल्लेख किया है। उसी समयावधि के दौरान, केवल नौ धर्मनिरपेक्ष लेखकों ने टाइबेरियस सीज़र का उल्लेख किया है; केवल पांच स्रोत जूलियस सीज़र की सफलताओं के बारे में बताते हैं। फिर भी कोई इतिहासकार उनके अस्तित्व को नहीं नकारता है।.[53]
- धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक दोनों इतिहासकार निःसंकोच यह मानते हैं कि ईसा मसीह ने किसी और व्यक्ति के मुकाबले विश्व को अधिक प्रभावित किया है।
ईसा-मिथक सिद्धांत की जांच-पड़ताल करने के बाद विश्व के महान इतिहासकार विल ड्यूरंट ने निष्कर्ष निकाला कि मिथकीय ईश्वरों के विपरीत, यीशु वास्तव में थे।[54]
इतिहासकार पॉल जॉनसन ने कहा कि सभी गंभीर विद्वानों ने यीशु को वास्तविक माना है।[55]
नास्तिक इतिहासकार. माइकल ग्रांट ने लिखा है, “अंत में, आधुनिक समीक्षात्मक पद्धतियाँ ईसा-मिथक सिद्धांत का समर्थन करने में असफल हैं। प्रथम पंक्ति के विद्वानों द्वारा बार-बार इसका उत्तर दिया गया है और इसे विलोपित किया गया है।”[56]
संभवतः गैर-ईसाई इतिहासकार एच. जी. वेल्स यीशु के अस्तित्व के संबंध में सबसे अच्छे तरीके से अपनी बात रखते हैं:
एकआदमीथा।कहानीकेइसभागकाआविष्कारनहींकियाजासका था।[57]
क्या यीशु वास्तव में मृत्यु के पश्चात वापस लौट आए थे?
ईसा मसीह के प्रत्यक्षदर्शी वास्तव में इस प्रकार बोलते और कार्य करते थे जैसे उन्हें विश्वास था कि यीशु सूली चढ़ाए जाने के बाद वास्तव में मृत्यु से वापस लौट आए थे। किसी भी मिथकीय ईश्वर या अन्य धर्म में दृढ़ विश्वास करने वाले ऐसे उत्साही अनुयायी नहीं हैं।
परंतु क्या हमें ईसा मसीह के पुनरुत्थान को केवल आस्था के रूप में मानना चाहिए, या इसका कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण भी है? अनेक संशयवादी व्यक्तियों ने पुनरुत्थान की बातों को गलत साबित करने के लिए ऐतिहासिक रिकॉर्ड की पड़ताल आरंभ कर दी। उन्होंने क्या पता लगाया?
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संदर्भ
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© 2012 JesusOnline Ministries. यह लेख, ब्राइट मीडिया फाउंडेशन एंड बीएंडएल पब्लिकेशन की पत्रिका Y-Jesus का अनुपूरक है: लैरी चैपमेन, मुख्य संपादक।
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