इज़राइल के युद्धग्रस्त इतिहास पर विचार करने पर, मसीहा की व्याख्या में राजनीतिक स्वतंत्रता सेनानी की कल्पना को पाना मुश्किल नहीं है। यह समझने योग्य है कि पहली सदी के यहूदी व्यक्ति ने किस प्रकार सोचा होगा, किस प्रकार मसीहा आएँगे और, और फिर भी इज़राइल रोमन साम्राज्य के अधीन उत्पीड़ित रहेगा?
जब यीशु मसीही भविष्यवाणियों को पूरा कर रहे थे, तो उन्होंने यह सब इस प्रकार किया जिस तरह की अपेक्षा किसी ने नहीं की थी। उन्होंने नैतिक एवं आध्यात्मिक क्रांति चाही, न कि राजनीतिक और अपने उद्देश्यों को आत्म बलिदान और नम्र सेवा, उपचार और शिक्षण के माध्यम से पूरा किया। इसी दौरान, इस दौरान इज़राइल एक अन्य मूसा या जोशुआ का इंतजार कर रहा था जो उनका नेतृत्व करके उन्हें उनका खोया साम्राज्य वापस दिलाएगा।
निस्संदेह, यीशु के दिनों के कई यहूदियों ने उन्हें मसीहा के रूप में पहचाना-ईसाई धर्म की संपूर्ण नींव यहूदी है। हालांकि, अधिकांश लोगों ने उन्हें नहीं पहचाना। और ऐसा क्यों यह समझना मुश्किल नहीं है।
पहली सदी के यहूदियों की गलतफ़हमियों के बेहतर समझने के लिए, यीशु के जन्म से 700 वर्ष पूर्व पैगंबर यशयाह द्वारा लिखित इस मसीही भविष्यवाणी पर विचार करें। क्या यह यीशु का उल्लेख कर रहा था?
“हम सब भेड़ों की तरह भटके हैं। हमने परमेश्वर के मार्ग को छोड़ स्वयं अपने राह को अपनाया। फिर भी परमेश्वर ने हम सबके पाप और गुनाहों को अपने ऊपर ले लिया।”
“वे उत्पीड़ित हुए और उनके साथ कठोरतापूर्वक व्यवहार हुआ, फिर भी उन्होंने एक शब्द नहीं कहा। उन्होंने वध किए जाने वाले मेमने की तरह ले जाया गया। और जिस प्रकार मेमना काटने वालों के सामने मौन हो जाता है, उन्होंने अपना मुँह नहीं खोला। कारागार और मुकदमे के बाद उन्हें उनकी मृत्यु की ओर ले जाया गया। लेकिन वहाँ कौन लोग समझ पाए कि वे उन लोगों के पाप के लिए खत्म हो रहे थे-कि वे उन लोगों की सजा सह रहे थे? उन्होंने किसी के लिए गलत नहीं किया, और उन्होंने किसी को धोखा नहीं दिया। लेकिन उन्हें अपराधी की तरह दफनाया गया; उन्हें किसी अमीर व्यक्ति के कब्र में डाला गया।”
“लेकिन यह परमेश्वर की योजना थी कि उन्हें रौंद दिया जाए और पश्चाताप् से भर दिया जाए। फिर भी जब उनके जीवन को पाप हेतु अर्पण कर दिया गया, उनके बहुतायत बच्चे, और अनेक उत्तराधिकारी होंगे। …और चूँकि उन्होंने जो अनुभव किया, उसके कारण, मेरा न्यायसंगत दास अनेक लोगों के लिए न्यायसंगत होना संभव हो जाएगा, क्योंकि वह उन सभी के पापों का बोझ उठाएगा।” (यशयाह के अंश 53:6-11, NLT)
जब यीशु सूली पर टंगे थे, कुछ लोगों ने स्वभाविक रूप से यह सोचा होगा कि, यह मसीहा कैसे हो सकता है?’ उसी समय, अन्य सोच रहे होंगे, यीशु के अलावा और किसके बारे में यशयाह सोच रहे होंगे?’