आपराधिक मामलों में, कुछ ही पूर्ण क्षमादान अस्वीकार कर देते हैं। 1915 में, न्यूयॉर्क ट्रिब्यून के नगर संपादक, जॉर्ज बर्डिक, ने स्रोतों की जानकारी देने से इनकार किया और कानून को तोड़ा। राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने बर्डिक को उनके द्वारा “किए गए या संभवतः किए गए” सभी अपराधों के लिए पूर्ण क्षमादान की घोषणा की। जिस बात ने बर्डिक के मामले को ऐतिहासिक बना दिया वह यह था कि उन्होंने क्षमादान से इनकार कर दिया। जिससे मुकदमा उच्चतम न्यायालय में गया, जिसने बर्डिक का साथ दिया, और कहा कि राष्ट्रपति का क्षमादान किसी के ऊपर बलपूर्वक लागू नहीं किया जा सकता।
जब ईसा मसीह के पूर्ण क्षमादान को नकारने की बात आती है, तो लोग कई प्रकार के कारण बताते हैं। कई कहते हैं पर्याप्त प्रमाण नहीं है परन्तु, बर्ट्रांड रसेल और अन्य संशयवादियों की तरह, उन्हें वास्तव में पड़ताल करने में उतनी रुचि नहीं है। अन्य लोग अपने परिचित कुछ ढोंगी ईसाइयों से परे देखने से इनकार करते हैं, और प्रेमरहित या असंगत व्यवहार का बहाना पेश करते हैं। और इसके बाद भी कुछ लोग यीशु को नकारते हैं क्योंकि वे अपने द्वारा अनुभव किए गए किसी अशुभ या दुखद त्रासदी के लिए ईश्वर को दोष देते हैं।
हालाँकि, सैकड़ों कॉलेज कैम्पस में बुद्धिजीवियों के साथ तर्क-वितर्क करने वाले जकारिया मानते हैं कि अधिकतर लोगों द्वारा ईश्वर को नकारने का वास्तविक कारण नैतिक है। वे लिखते हैं:
“कोई व्यक्ति ईश्वर को न तो बौद्धिक मांग के कारण न ही प्रमाण की कमी के कारण नकारता है। कोई व्यक्ति ईश्वर को उस नैतिक प्रतिरोध के कारण नकारता है जो उसे उसकी ईश्वर की आवश्यकता को स्वीकार करने से इनकार करता है।”[19]
नैतिक स्वतंत्रता की इच्छा ने सी. एस. लुईस को कॉलेज के अधिकतर वर्षों के दौरान ईश्वर से दूर रखा। जब सत्य की खोज उसे ईश्वर के पास ले गई, लुईस बताते हैं कि कैसे यीशु की स्वीकृति तथ्यों के बौद्धिक बहस कुछ ज्यादा है। वे लिखते हैं:
“परास्त व्यक्ति केवल एक दोषपूर्ण प्राणी नहीं होता जिसे सुधार की आवश्यकता होती है: वह एक विद्रोही है जिसे अपने हथियार डाल देने चाहिए। अपने हथियार डालना, समर्पण करना, खेद व्यक्त करना, गलत पथ में होने का पता चलना और जीवन फिर से आरंभ करने के लिए तैयार होना…इन्हें ही ईसाई पश्चाताप कहते हैं।”[20]