वे कहते हैं कि शायद हिटलर न्याय का हकदार है, लेकिन वे नहीं जो “मर्यादित जीवन” जीते हैं। यह कुछ ऐसा कहने जैसा है कि ईश्वर लोगों को सौंदर्य पर दर्जा देते हैं, जिन्हें डी- या बेहतर दर्जा मिलता है वे अंदर आ सकते हैं। लेकिन इससे एक द्वंद्व सामने आता है।
जैसा कि हमने देखा है, पाप ईश्वर के पवित्र चरित्र के बिल्कुल विपरीत है। इस प्रकार हमने उन्हें अप्रसन्न किया जिन्होंने हमें बनाया, और हमें इतना प्रेम किया कि हमारे लिए स्वयं अपने ही बेटे का त्याग किया। एक मायने में हमारा विद्रोह उनके चेहरे पर थूकने के समान है। न ही अच्छे कार्य, धर्म, ध्यान, या कर्म भी हमारे द्वारा किए गए अपराधों की भरपाई कर सकते हैं।
धर्मशास्त्री आर. सी. एस्प्रौल के अनुसार, केवल यीशु ही इस ऋण का भुगतान कर सकते हैं। वे लिखते हैं:
“मूसा कानून पर मध्यस्थता कर सकते थे; मोहम्मद तलवार भाँज सकते थे; बुद्ध व्यक्तिगत परामर्श दे सकते थे; कन्फ्यूशियस विवेकी उपदेश दे सकते थे; लेकिन इनमें से कोई भी दुनिया के पापों के लिए प्रायश्चित्त करने के योग्य थे। केवल यीशु ही असीमित श्रद्धा एवं सेवा के पात्र हैं।”[10]
एक अनर्जित उपहार
ईश्वर के अबाध क्षमा का यीशु के बलिदानी मृत्यु के माध्यम से वर्णन करने वाला बाइबिल का शब्द कृपा है। क्षमा जबकि हमें अपने कार्यों के फल से बचाता है, ईश्वर की अनुकंपा हमें वह प्रदान करती है जिसके हम हकदार नहीं है। आइये एक मिनट के लिए इस बात की समीक्षा करें कि यीशु ने किस प्रकार हमारे लिए वह सब किया जो हम स्वयं अपने आप नहीं कर पाए:
• ईश्वर हम लोगों से प्रेम करते हैं और उन्होंने हमें अपने के साथ एक संबंध के लिए बनाया।[11]
• हमें इस संबंध को स्वीकार या अस्वीकार करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई।[12]
• हमारे पाप और ईश्वर तथा उनके कानूनों के प्रति हमारे विद्रोह ने हम लोगों और उनके बीच एक अलगाव की दीवार बना दी है।[13]
• यद्यपि हम लोग शाश्वत ईश्वरीय दंड के हकदार हैं, ईश्वर ने हमारी जगह यीशु की मृत्यु के द्वारा हमारे ऋणों का पूर्णतः भुगतान कर दिया है, इससे उनके साथ अनादि जीवन संभव हो पाया।[14]
बोनो इस कृपा पर अपना दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
“कृपा दलील और तर्क की अवज्ञा करता है। अगर आप चाहें, तो प्रेम आपके कर्मों के परिणाम को बाधित करता है, जो कि मेरे मामले में वाकई एक अच्छा समाचार है, क्योंकि मैंने बहुत सारी बेवकूफियां की हैं…मैं बड़ी मुश्किल में होता यदि कर्म ही मेरे जज होते…यह मेरी गलतियों को माफ नहीं करता, लेकिन मैं कृपा का इंतजार कर रहा हूँ। मैं प्रस्ताव कर रहा हूँ कि यीशु मेरे पापों को अपना कर सूली पर चढ़े, क्योंकि मुझे पता है कि मैं कौन हूँ, और आशा करता हूँ कि मुझे अपने धार्मिकता पर निर्भर न रहना पड़े।”[15]
अब हमारे पास पीढ़ियों को एक साथ लाने की ईश्वर की योजना का चित्र है। लेकिन अभी भी एक घटक अनुपस्थित है। यीशु और न्यू टेस्टामेंट के लेखकों के अनुसार, यीशु द्वारा प्रस्तुत मुफ्त उपहार के बदले हम सबको अलग-अलग कुछ करना चाहिए। वे इसके लिए हम पर दबाव नहीं डालेंगे।