समयान्तर
न केवल हस्तलिपियों की संख्या महत्वपूर्ण है, बल्कि उतना ही महत्वपूर्ण मूल के लेखन समय और उसकी प्रतिलिपि बनने के मध्य समयान्तर है। प्रतिलिपि बनाने के क्रम में हजारों वर्षों के दौरान, यह कहा नहीं जा सकता कि पाठ किस रूप में विकसित हुआ होगा—लेकिन सौ वर्षों में, कहानी कुछ अलग होगी।
जर्मन आलोचक फर्डिनेंड क्रिस्चियन बौर (1792–1860) ने एक बार तर्क दिया था कि यूहन्ना का ईसा चरित 160 ईसवी तक नहीं लिखा गया था; इसलिए, यह यूहन्ना द्वारा नहीं लिखा गया हो सकता है। अगर यह सत्य है, तो न केवल यह यूहन्ना के लेखों को खोखला बनाएगा परंतु संपूर्ण नवविधान पर भी संदेह उत्पन्न कर देगा। लेकिन फिर, जब मिस्र में नवविधान के भोजपत्र का गुप्त भंडार मिला, उसमें यूहन्ना के ईसा चरित का टुकड़ा भी था (विशेष रूप से, P52: यूहन्ना 18:31-33) जिसकी तिथि यूहन्ना के मूल लेखन से करीब 25 वर्ष बाद की थी।
मेत्सगर बताते हैं, “जिस प्रकार रॉबिन्सन क्रूसो बालू में एक पैर के निशान को देखकर, इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि दो पैरों वाला कोई अन्य व्यक्ति उसके साथ उस द्वीप पर मौजूद था, इसी तरह P52 [टुकड़े का लेबल] दूसरी शताब्दी के पूर्वार्ध के दौरान चौथे ईसा चरित के अस्तित्व और नील नदी के साथ लगे प्रांतीय शहर में चौथे ईसा चरित की रचना के पारंपरिक स्थान (एशिया माइनर में एफिसस) से बहुत दूर इसके उपयोग की पुष्टि करता है।”[10]खोज दर खोज, पुरातत्व ने नवविधान के मुख्य भागों का पता लगाया है जिनकी तिथि मूल के 150 वर्षों के अंदर पाई गई।[11]
अधिकतर अन्य प्राचीन दस्तावेज़ों का समयान्तर 400 से 1,400 वर्षों तक का है। उदाहरण के लिए, अरस्तु का काव्यशास्त्र लगभग 343 ईसा पूर्व लिखा गया था, फिर भी सबसे प्रारंभिक प्रति की तिथि 1100 ईसवी है और इसकी केवल पाँच प्रतिलिपियां ही मौजूद हैं। और फिर भी कोई व्यक्ति यह दावा करते हुए ऐतिहासिक प्लैटो की खोज नहीं करता कि वे वास्तव में एक दार्शनिक नहीं बल्की तसल्ली देने वाले थे।
वास्तव में, कोडेक्स वैटिकनस नामक बाइबिल की लगभग पूर्ण प्रति मौजूद है जो ईसाई धर्म प्रचारकों के मूल लेख के केवल 250 से 300 वर्षों बाद ही लिखी गई थी। प्राचीन अन्सियल लिपि में, नवविधान की मानी गई सबसे पुरानी संपूर्ण प्रति कोडेक्स सिनाइटिकस अब ब्रिटिश संग्रहालय में है।
कोडेक्स वैटिकेनस की ही तरह, यह भी चौथी शताब्दी की है। ईसाई धर्म के प्रारंभिक इतिहास में, वैटिकेनस और सिनाइटिकस अन्य प्रारंभिक बाइबिल हस्तलिपि की ही तरह के हैं, इस मायने में कि वे एक दूसरे से मामूली रूप से ही भिन्न हैं और हमें यह अच्छी तरह बताती हैं कि मूल दस्तावेज में क्या कहा गया होगा।
यहां तक कि विद्वान आलोचक जॉन ए. टी. रॉबिन्सन ने भी यह स्वीकार किया, “हस्तलिपि की संपन्नता, और खास करके लेख और आरंभिक प्रचलित प्रति के बीच छोटा अंतराल, इसे विश्व के अब तक की प्राचीन लेखों की प्रतियों में सर्वोत्तम प्रमाणिक बनाती है।”[12]कानून के प्रोफेसर जॉन वारविक मोंटगोमरी ने पुष्टि की, “नवविधान पुस्तकों के परिणामी पाठ के बारे में संशयवादी होना, सभी पारंपरिक पुरावस्तुओं को अंधकार में खिसक जाने देने के समान है, क्योंकि प्राचीन काल का कोई भी दस्तावेज़ नवविधान के मुकाबले इतनी अच्छी तरह से प्रमाणित नहीं है।”[13]
बात यह है कि: अगर नवविधान का निर्माण वास्तविक घटना के इतना निकट हुआ और वह प्रसारित हुई, तो उनके द्वारा किए गए यीशु के चित्रण के सटीक होने की संभावना सर्वाधिक होगी। लेकिन विश्वसनीयता के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए बाहरी प्रमाण ही एकमात्र तरीका नहीं है; विद्वान इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए आंतरिक प्रमाणों का भी उपयोग करते हैं।