ग्रंथ-संग्रह पर हमला
द डा विंची कोड यह भी उल्लेख करता है कि कॉन्सटेंटाइन ने हमारे वर्तमान नवविधान ग्रंथ-संग्रह (धर्मप्रचारकों के प्रमाणिक प्रत्यक्षदर्शी वृत्तांत के रूप में गिरजा द्वारा मान्यताप्राप्त) में प्राप्त दस्तावेज़ों के अलावा यीशु से संबंधित सभी दस्तावेज़ों को दबा दिया था। यह आगे उल्लेख करता है कि कॉन्सटेंटाइन और बड़े पादरियों ने यीशु को ईश्वर के रूप में ईजाद करने के लिए नवविधान वृत्तांत में फेर बदल किया। द विंची कोड साजिश का अन्य महत्वपूर्ण तत्व यह है कि चार नवविधान ईसा चरित कुल “80 से अधिक ईसा चरित” से लिए गए थे जिसमें से अधिकतर कॉन्सटेंटाइन द्वारा कथित रूप से दबा दिए गए थे।[5]
यहां पर दो केंद्रीय मुद्दे हैं और हमें दोनों पर चर्चा करने की आवश्यकता है। पहला यह है कि क्या कॉन्सटेंटाइन ने नवविधानमें फेरबदल किया या उसके चयन में पक्षपात किया। दूसरा कि क्या उसने उन दस्तावेजों को निकाल दिया जिन्हें बाइबिल में शामिल होना चाहिए था।
पहले मुद्दे के संदर्भ में दूसरी सदी के गिरजा नेताओं और विधर्मियों द्वारा लिखे गए पत्र और दस्तावेज़ समान रूप से नवविधान की पुस्तकों के व्यापक उपयोग की पुष्टि करते हैं। कॉन्सटेंटाइन द्वारा नायसिया परिषद आयोजित करने के लगभग 200 वर्ष पहले, विधर्मी मारसियन ने नवविधान की 27 में से 11 पुस्तकों को धर्मप्रचारकों के प्रमाणिक लेख के रूप में सूचीबद्ध किया।
और लगभग उसी समय एक अन्य विधर्मी, वैलेन्टियस नवविधान के प्रसंगों और वाक्यों की व्यापक विविधता का ज़िक्र करता है। चूंकि ये दोनों विधर्मी प्रारंभिक गिरजा अगुआओं के विरोधी थे तो वे वह नहीं लिख रहे थे जो बड़े पादरी चाहते थे। फिर भी प्रारंभिक गिरजा की तरह वे भी उसी नवविधान की पुस्तकों को उल्लिखित करते थे जिन्हें हम आज पढ़ते हैं।
तो अगर कॉन्सटेंटाइन और नायसिया परिषद के 200 वर्ष पहले ही नवविधान व्यापक रूप से उपयोग में था तो सम्राट कैसे उसका ईजाद या उसमें फेरबदल कर सकता था? उस समय तक गिरजा दूर-दूर तक फैल गया था और लाखों नहीं तो सैकड़ों हज़ारों समर्थकों को शामिल कर चुका था जिनमें से सभी नवविधानके वृत्तांतों से परिचित थे।
अपनी पुस्तक द डा विंची कोड के एक विश्लेषण द डा विंची डिसेप्शन में डा. इर्विन लुत्ज़र कहते हैं,
“कॉन्सटेंटाइन ने यह निर्धारित नहीं किया कि कौन सी पुस्तकें धर्म-ग्रंथ में होंगी; वास्तव में, नायसिया की परिषद् में धर्म-ग्रंथ का विषय आया ही नहीं था। उस समय तक प्रारंभिक गिरजा उन धर्म-ग्रंथों को पढ़ रहे थे जिन्हें तय किया गया था कि वे दो सौ वर्ष पूर्व ईश्वर के बोल थे।”[6]
हालांकि आधिकारिक धर्म-ग्रंथ को अंतिम रूप देने में अभी भी कई वर्ष थे, आज के नवविधान को नायसिया से दो शताब्दी पहले भी प्रमाणिक समझा जाता था।