अल्फ़ा और ओमेगा
जब धर्मदूत यूहन्ना पटमोस द्वीप में देश निकाला पर थे, यीशु ने उसे स्वप्न में अंतिम दिनों में होने वाली घटनाओं के बारे में बताया। यूहन्ना स्वप्न में देखे गए निम्नलिखित अविश्वसनीय दृश्य का वर्णन करते हैं:
“देखो! वे स्वर्ग के बादलों पर आते हैं। और हर कोई उन्हें देखेगा—वे भी जिन्होंने उन्हें छेदा था…. ‘मैं अल्फ़ा और ओमेगा हूँ—आरंभ और अंत,’ प्रभु परमेश्वर कहते हैं। ‘मैं ही हूँ जो है, जो हमेशा था, और जो आगे आएगा, सर्वशक्तिमान।’” तो यह कौन व्यक्ति है जिसे “अल्फ़ा और ओमेगा”, “प्रभु परमेश्वर,” “सर्वशक्तिमान”कहा जाता है? हमें बताया जाता है कि उन्हें “छेद दिया गया” था। यह स्पष्ट कर देता है कि अल्फ़ा और ओमेगा यीशु है। उन्हें ही सूली पर छेद दिया गया था।
अन्य अनुयायियों के मुकाबले में यीशु के ज़्यादा करीब, यूहन्ना, उनसे बात करने वाले व्यक्ति की छवि देखते हैं। वे लिखते हैं:
“और दीपकों के बीच मनुष्य का पुत्र खड़ा था….उसका सर और उसके केश ऊन की तरह उजले, बर्फ की तरह सफेद थे। और उसकी आंखें अग्नि की लपटों की तरह चमक रही थीं….और उसका चेहरा सूर्य के समान चमक रहा था (प्रकाशित वाक्य 1:13, 14, 16b)।
यूहन्ना की उन भावनाओं को समझना असंभव है जब वे सूर्य के समान चमकते व्यक्ति को देखते हैं, जिसकी आंखें अग्नि की लपटों की तरह चमक रही थीं। वे तत्काल उस व्यक्ति के सामने मृत व्यक्ति की तरह गिर पड़े। यदि यह व्यक्ति यीशु थे, तो यूहन्ना ने उन्हें क्यों नहीं पहचाना? शायद उन्हें लगा कि वह कोई फरिश्ता है? आइये यूहन्ना के शब्दों को सुनें।
“फिर उसने अपना दाहिना हाथ रखते हुए कहा, ‘डर मत! मैं ही आदि और मैं ही अंत भी हूँ। मैं ही वह जीवित हूँ जो मर गया था। देख, मैं अब सदा-सर्वदा के लिए जीवित हूँ’” (प्रकाशना 1:17)!
यूहन्ना से बात करने वाले ने स्वयं को “आदि और अंत” कहा जो उसकी अनंतता का एक स्पष्ट उल्लेख है। और चूंकि केवल परमेश्वर ही अनंत हैं, उसे परमेश्वर होना चाहिए। लेकिन उसी वाक्य में वे यूहन्ना से कहते हैं कि वे ही “जीवित है जो मर गया था।” ऐसा हम जानते हैं कि वह परमपिता परमेश्वर नहीं हो सकता क्योंकि परमपिता का कभी मनुष्य की तरह अंत नहीं हुआ।
“और मैंने एक विशाल श्वेत सिंहासन को देखा और मैंने उसे भी देखा जो उस पर विराजमान था….और उस सिंहासन पर बैठने वाले ने मुझसे फिर बोला… ‘मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूँ—मैं ही आदि हूँ और अंत हूँ।’” (प्रकाशित वाक्य 20:11; 21:6)
ये प्रभु ईसा मसीह हैं जो विशाल श्वेत सिंहासन से शासन करते हैं। यीशु ने पहले ही अपने अनुयायियों से कहा था कि वे मनुष्य के अंतिम न्यायकर्ता होंगे। उन्होंने भरोसा दिलाया कि जो उन पर आस्था रखेगा उसे पाप के निर्णय से बख़्श दिया जाएगा, लेकिन उन्हें अस्वीकार करने वालों के बारे में फैसला सुनाया जाएगा।
निष्कर्ष
तो क्या यीशु ने कभी परमेश्वर होने का दावा किया, या उन्हें गलत समझा गया। आइये यीशु के अन्य दावों पर नज़र डालें और पूछें: अगर यीशु परमेश्वर नहीं थे तो क्या वे ऐसा विलक्षण दावा करते?
- यीशु ने अपने लिए परमेश्वर के नाम का उपयोग किया
- यीशु ने स्वयं को “मनुष्य का पुत्र” कहा
- यीशु ने स्वयं को “परमेश्वर का पुत्र” कहा
- यीशु ने पाप को क्षमा करने का दावा किया
- यीशु ने परमेश्वर के साथ एकात्मकता का दावा किया
- यीशु ने पूर्ण सत्ता का दावा किया
- यीशु ने आराधना स्वीकार की
- यीशु ने स्वयं को “अल्फ़ा और ओमेगा” कहा
कुछ लोग कह सकते हैं, “हम यीशु के दावों पर कैसे विश्वास करें? उन्होंने क्या सबूत छोड़ा है? सूली पर चढ़ाए जाने के तीन दिन बाद उनके अनुयायियों ने दावा किया कि उन्होंने उन्हें जीवित देखा। अगर उनकी कहानी गलत थी तो इसे तब ही खत्म हो जाना चाहिए था जब रोम ने उन्हें मनुष्यों की समझ में सबसे भयानक यातना दी। लेकिन उनका दृढ़ निश्चय और निष्कपटता ने रोम को हरा दिया औ दुनिया को परिवर्तित कर दिया (“क्या यीशु मृत्यु के बाद फिर से जीवित हो उठे थे?” देखें)। लुईस उनके दृढ़ निश्चय के बारे में बताते हैं:
“क्या है जो समय और अंतराल से परे है, जो अनिर्मित है, अनंत है, जो प्रकृति में अवतरित हुए, स्वयं के ब्रह्मांड में उतरे, और पुनः जीवित हो गए।”[16]
इस प्रतिभाशाली विद्वान ने पहले यीशु को बहुत हद तक प्राचीन यूनान और रोम के मानव-निर्मित देवताओं की तरह मिथक मान लिया था। लेकिन जब उन्होंने ईसा मसीह के प्रमाणों की खोज प्रारंभ की तब उन्हें पता चला कि ईसा मसीह के बारे में नवविधान के वृत्तांत ठोस, ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित हैं। इस पूर्व संशयवादी व्यक्ति ने ईसा मसीह के प्रमाण हेतु अपनी खोज को निम्न विचारों के साथ समाप्त किया:
“आपको अपना चुनाव करना पड़ेगा: या तो यह व्यक्ति परमेश्वर का पुत्र था, और है: या कोई पागल व्यक्ति या कुछ और खराब…. परंतु उनके बारे में मानव जाति का महान गुरु जैसी कोई निरर्थक अवधारणा न बनाएं। उन्होंने हमें इस बारे में उन्मुक्त नहीं छोड़ा है।”[17]
लुईस को पता लगा कि यीशु के साथ उनके निजी संबंध ने उनके जीवन को एक अर्थ, उद्देश्य और ऐसी खुशी प्रदान की जो उनकी सारे महत्वाकांक्षाओं से परे थी। उन्होंने कभी अपने निर्णय पर अफसोस नहीं किया और ईसा मसीह के लिए अग्रणी प्रवक्ता बन गए। आपने क्या किया? क्या आपने अपना निर्णय लिया?
“यीशु क्यों?” आलेख में आपके लिए यीशु के संदेशों के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें
“क्या धर्मदूत यीशु को परमेश्वर मानते थे?”
अगर यीशु परमेश्वर हैं, तो हम उनके निकटतम शिष्यों के लिखित कथनों में उनके ईश्वरत्व की घोषणा करने की अपेक्षा करते हैं। ईसाई धर्म अपनी आस्था को यीशु के ही सत्य शब्दों में उनके देवत्व पर संस्थापित करता है।
उनकी धारणाओं और शिक्षाओं के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
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© 2010 JesusOnline Ministries. यह लेख, ब्राइट मीडिया फाउंडेशन एंड बीएंडएल पब्लिकेशन की पत्रिका Y-Jesus का अनुपूरक है: लैरी चैपमेन, मुख्य संपादक। ईसा मसीह के प्रमाण संबंधित अन्य लेखों के लिए, www.y-jesus.com देखें।
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